संसार का एकमात्र शिवलिंग जिसकी पूजा नहीं होती, डरते हैं लोग!

Edited By ,Updated: 22 May, 2016 02:14 PM

shivling

शिवलिंग प्रतीक हैं विश्व ब्रह्मांड का जिसके कण-कण में भगवान शिव का वास है और शिवलिंग पर विभिन्न सामग्रियों जैसे दूध, दही, गंगाजल, घृत, गन्ने का रस, सुगंधित द्रव्य आदि से अभिषेक करने का यही तात्पर्य है कि इन विभिन्न सामग्रियों के माध्यम से हम विश्व...

शिवलिंग प्रतीक हैं विश्व ब्रह्मांड का जिसके कण-कण में भगवान शिव का वास है और शिवलिंग पर विभिन्न सामग्रियों जैसे दूध, दही, गंगाजल, घृत, गन्ने का रस, सुगंधित द्रव्य आदि से अभिषेक करने का यही तात्पर्य है कि इन विभिन्न सामग्रियों के माध्यम से हम विश्व वसुधा को समुन्नत कर रहे हैं। अपने कर्मों को विभिन्न रूपों में शिवरूपी ब्रह्मांड को अर्पण कर रहे हैं। यह समर्पण की भावना ही हमें शिव की ओर अर्थात कल्याण की ओर ले जाती है।
 
 
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 70 किलोमीटर की दूरी पर कस्बा थल है वहां से औसत छह किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है ग्राम सभा बल्तिर। इस स्थान पर हथिया देवाल नाम से प्रसिद्ध अभिशप्त देवालय है जो भगवान शिव को समर्पित है।मंदिर की अद्भुत स्थापत्य कला को देखने व शिवलिंग के दर्शन करने देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं लेकिन पूजन नहीं करते क्योंकि उन्हें डर होता है की उनके साथ कोई अनिष्ट न हो जाए।
 
 
यह मंदिर आधुनिक युग की देन नहीं है बल्कि काफी प्राचीन है। प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। एक हाथ से बना होने के कारण इसका नाम हथिया देवाल पड़ा। पुरातन काल में इस स्थान पर राजा कत्यूरी राज करते थे। उस समय में जितने भी शासक हुए हैं उन्हें स्थापत्य कला से बहुत लगाव था। उनमें इस मामले को लेकर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा की दौड़ लगी रहती थी।
 
 
मान्यता है कि एक समय इस स्थान पर किसी कुशल कारीगर ने मंदिर का निर्माण करना चाहा। वह एक हाथ से काम में जुट गया और एक ही रात में मंदिर बनकर तैयार भी हो गया। प्रात: सभी गांववासी मंदिर को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। कारीगर को गांव में हर जगह ढूंढा गया, लेकिन उसका कहीं आता-पता नहीं मिला।
 
 
ग्रामीणों और पंडितों ने जब मंदिर का निरीक्षण किया तो पता चला कि शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में है और ऐसे शिवलिंग की पूजा फलदायक नहीं होती। कहते हैं की ऐसे शिवलिंग का पूजन करने से कोई अनहोनी घटना घटित हो सकती है। पूजा करने से कोई अनिष्ट न हो जाए यह डर लोगों के मन में घर कर गया इसलिए आज तक इस मंदिर में लोग दर्शन करने तो आते हैं लेकिन पूजा नहीं करते।
 
 

मंदिर के समीप एक सरोवर है जिसको पावन मानते हुए लोग यहां मुण्डन कार्य व दूसरे संस्कार करते हैं। 

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