जीवन में गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है या नहीं जानने के लिए पढ़ें यह प्रसंग

Edited By ,Updated: 28 Nov, 2015 04:51 PM

mentor guidance

महात्मा विसोबा खेचर ने नामदेव जी को परमेश्वर के बारे में ज्ञान दिया और शब्द मार्ग का उपदेश दिया। इस तरह सच्चे मार्ग का नामदेव जी को ज्ञान प्राप्त हुआ। विसोबा खेचर को गुरु बनाकर वह भक्तिपथ में अग्रसर हुए और बिठोवा की भक्ति में अपने जीवन को उत्सर्ग...

महात्मा विसोबा खेचर ने नामदेव जी को परमेश्वर के बारे में ज्ञान दिया और शब्द मार्ग का उपदेश दिया। इस तरह सच्चे मार्ग का नामदेव जी को ज्ञान प्राप्त हुआ। विसोबा खेचर को गुरु बनाकर वह भक्तिपथ में अग्रसर हुए और बिठोवा की भक्ति में अपने जीवन को उत्सर्ग करके एक उच्चकोटि के संत हो गए। यह ज्ञान (नाम दान) प्राप्त होने के बाद नामदेव पूरे बदल गए। इससे पहले नामदेव पंढरपुर में स्थित  विट्ठल की मूर्ति की उपासना करते थे। उपवास, तीर्थयात्रा, पवित्र नदियों व स्थानों में स्नान आदि पर उनका विश्वास था। गुरु विसोबा खेचर से ज्ञान प्राप्त होने के बाद अब सब कुछ इन्हें निरर्थक मालूम पडऩे लगा। 

अपने एक पद में वे लिखते हैं-‘‘पत्थर की मूर्त जो कि ईश्वर मानी जाती है कभी बोलती नहीं है, फिर वह दुनियावी दुख कैसे दूर कर सकती है? अगर ऐसी मूर्त मनुष्य की इच्छा पूर्ण कर सकती होती, तो वह जरा से धक्के से टूट क्यों जाती है? तीर्थों में केवल पत्थर और पानी ही है। मेरे गुरु खेचर की कृपा से नामा को परमेश्वर का पता चला है।’’
 
संत नामदेव जी कहते हैं कि परमात्मा की खोज में बाहर तीर्थों में भटकना, नदियों, सरोवरों में स्नान करना, पहाड़ों और जंगलों में जाना व्यर्थ है-
 
तीरथ जाऊ न जल में पैसू।
जीव जंत न सताऊंगा।।
अठ सठि तीरथ गुरु लगाए।
घट ही भीतर न्हाऊंगा।।
 
पूर्जा-अर्चना आदि बाह्य कर्म न केवल निरर्थक हैं बल्कि अभ्यासी को भरमा देते हैं-
 
सेवा पूजा सुमिरन ध्यान। 
झूठा कीजि बिन भगवान।।
तीरथ बरत जगत की आस
फोकट कीजे बिन विश्वास।।
 
नामदेव जी कहते हैं कि शरीर के भीतर परमेश्वर मौजूद है, उसे छोड़ कर मनुष्य बाहर की पूजा करता है, पत्थर पूजता है। वे कहते हैं कि अपने अंदर के परमात्मा की पूजा करो।
 
कहा करूं जग देखत अंधा। 
तजि आनंद बिचारै धंधा।।
नामदेव कहै सुनौ रे धगड़ा। 
आतमदेव न पूजौ दगड़ा।।
 
सतगुरु के प्रति कृतज्ञता व प्रेम से भरने के उपरांत नामदेव जी कहते हैं- जिस गुरु ने मेरे श्रवणों में मंत्र दिया, मेरे मस्तक पर हाथ रखा और मुझे आवागमन के चक्कर से मुक्त कर दिया ऐसा सतगुरु प्रेम का भंडार है। नाम का उन्होंने गूढ़ ज्ञान देकर अगोचर कर दिया। इस सतगुरु के प्राप्त होने की कृपा की अखंड छाया मिली और मेरे जन्म-मरण के बंधन छूट गए। बंधन और मोक्ष की चिंता छूट गई। मेरी समाधि लग गई और मुझे स्वयं में सब-कुछ दिखने लगा। ऐसे सतगुरु को मैं नहीं भूल सकता हूं।

 

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