स्वामी प्रभुपाद: कौन नहीं बन सकता योगी

Edited By Prachi Sharma,Updated: 21 Apr, 2024 11:55 AM

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हे अर्जुन, जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता, उसके योगी

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नात्यश्रतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्रनत:।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥6.16॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : हे अर्जुन, जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता, उसके योगी बनने की कोई संभावना नहीं है।

यहां पर योगियों के लिए भोजन तथा नींद के नियमन की संस्तुति की गई है। अधिक भोजन का अर्थ है शरीर तथा आत्मा को बनाए रखने के लिए आवश्यकता से अधिक भोजन करना। मनुष्यों को मांसाहार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रचुर मात्रा में अन्न, शाक, फल तथा दुग्ध उपलब्ध हैं। 

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ऐसे सादे भोज्य पदार्थ भगवद्गीता के अनुसार सतोगुणी माने जाते हैं। मांसाहार तो तमोगुणियों के लिए है। अत: जो लोग मांसाहार करते हैं, मद्यपान करते हैं, धूम्रपान करते हैं और कृष्ण को भोग लगाए बिना भोजन करते हैं, वे पापकर्मों का भोग करेंगे क्योंकि वे केवल दूषित वस्तुएं खाते हैं। 

कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कभी भी ऐसा भोजन नहीं करता, जो इससे पूर्व कृष्ण को अॢपत न किया गया हो। कृष्णाभावनाभावित व्यक्ति शास्त्रों द्वारा अनुमोदित उपवास करता है। न तो वह आवश्यकता से अधिक उपवास  रखता है और न ही अधिक खाता है। 

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मनुष्य को प्रतिदिन छ: घंटे से अधिक नहीं सोना चाहिए। जो व्यक्ति छ: घंटों से अधिक सोता है वह अवश्य ही तमोगुणी है। तमोगुणी व्यक्ति आलसी होता है और अधिक सोता है। ऐसा व्यक्ति योग नहीं साध सकता।

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