Edited By ,Updated: 19 Nov, 2016 05:29 PM
दिल्ली के वजीरपुर में एक बेडरूम के घर में रहने वाला फूलन परिवार एक-दूसरे के साथ रहकर बेहद खुश है।
नई दिल्लीः दिल्ली के वजीरपुर में एक बेडरूम के घर में रहने वाला फूलन परिवार एक-दूसरे के साथ रहकर बेहद खुश है। लेकिन जैसे ही वे अपने घर से बाहर कदम रखते है, उनकी ये खुशी कहीं खाे जाती है। अपनी त्वचा के कारण उन्हें लाेगाें की तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती है। उनकी पीली त्वचा की वजह से लोग उन्हें 'सूरज-मुखी' या 'अंग्रेज' (ब्रिटिश) कहकर बुलाते है।
बेहतर भविष्य के लिए अाए दिल्ली
उनके परिवार के सभी 10 सदस्याें में से काेई भी विदेशी नहीं हैं। लेकिन उनकी त्वचा, बाल और आंखे एक जन्मजात राेग की वजह से वह एेसे दिखते है। इस राेग का नाम है Albinism। वे मूल रूप से दक्षिण भारत से हैं। 1983 में शादी के बाद Rosetauri और मणि बेहतर भविष्य की तलाश में दिल्ली चले अाए। 61 साल के Rosetauri का सबसे छोटा बेटा रामकिशन 21 साल का है। आज वे अपने सबसे बड़े बेटे विजय(29) और कुछ लाेगाें की मदद से अपना गुजारा कर रहे हैं। एेसा इसलिए कि एक शहर जहां लोग अापको अननैचुरल हाेने का लेबल दे दें, उस जगह एक नौकरी ढूंढना मुश्किल हाे जाता है।
इस बीमारी से हाेती है ये दिक्कतें
खासताैर पर जहां अापकाे 'Surajmukhi' कहा जाता हाे। एक देश जहां फेयरनेस की क्रीम का जाेरशाेर से विज्ञापन किया जाता है और सांवले या काले रंग वालाें के साथ भेदभाव किया जाता है। एेसे देश में और यहां के समाज में पीली चमड़ी वाले लाेगाें के साथ भी खुलकर भेदभाव किया जाता है, ये परिवार इसका जीता जागता उदाहरण है। बता दें कि Albinism की बीमारी 17,000 लोगों में से किसी एक को हाेती है, जाेकि अांखाें की राेशनी और सूरज की किरणाें से भी त्वचा काे प्रभावित करती है। इस राेग की वजह से उन्हें माेबाइल फाेन यूज करने भी दिक्कत अाती है।