क्या यू.पी. में कांग्रेस को ले डूबी प्रशांत किशोर की सलाह?

Edited By ,Updated: 19 Mar, 2017 11:23 AM

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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी निशाने पर हैं।

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी निशाने पर हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने और प्रशांत किशोर की सलाह के मुताबिक काम करने की वजह से कांग्रेस डूब गई जिससे कई नेता राहुल गांधी से अपसैट हैं। कांग्रेस हाईकमान पर उत्तर प्रदेश में पार्टी कार्यकर्त्ताओं की तरफ से भारी दबाव था कि कांग्रेस प्रदेश में अकेले चुनाव लड़े।

जब राहुल गांधी ने अपनी किसान यात्रा शुरू की थी तो कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं में नव उत्साह आया था और एक उम्मीद जगी थी कि देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य में पार्टी फिर से मजबूत हो सकती है। यू.पी. के कार्यकर्त्ता अचानक सक्रिय हो गए थे लेकिन जब कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान किया तो पार्टी कार्यकर्त्ता निराश हो गए और काम करना बंद कर दिया। इस बीच यू.पी. में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रदेश कार्यालय के बाहर पोस्टर लगाए गए हैं जिनमें प्रशांत किशोर को खोजने वाले को 5 लाख रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है।

सपा व कांग्रेस की आपसी जंग
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को 100 से अधिक सीटें तो दे दीं लेकिन जिन समाजवादियों को टिकट दिया जा चुका था। उनसे टिकट वापस नहीं लिया गया। भले ही समझौते के तहत वे सीटें कांग्रेस को दे दी गईं। ऐसी 17 सीटें थीं जहां सपा और कांग्रेस का मुकाबला हुआ और दोनों दलों ने एक-दूसरे के वोट काटे जिसका फायदा भाजपा को हुआ। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण सीटों में अमेठी, देवबंद, सहारनपुर शामिल थीं। देवबंद में कांग्रेस इसलिए हारी क्योंकि वहां सपा के उम्मीदवार ने वोट काटे। इसी तरह से सहारनपुर में इमरान नसीब को भी सपा उम्मीदवार की वजह से चुनाव हारना पड़ा।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में बड़ा संगठनात्मक परिवर्तन किया जा सकता है। जिन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है उनमें दिग्विजय सिंह, बी.के. हरि प्रसाद और मोहन प्रकाश शामिल हैं। इन तीनों नेताओं के खिलाफ शिकायतों का ढेर लगा है कि उन्हीं की वजह से मध्य प्रदेश में पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ी और प्रदेश कांग्रेस की कमजोरी के पीछे भी दिग्विजय ही जिम्मेदार हैं। दिग्विजय को हिंदू ध्रुवीकरण का जिम्मेदार माना जाता है क्योंकि वह अक्सर मुस्लिम समर्थक बयान देते रहे हैं। यही कारण है कि उन्हें बिहार और उत्तर प्रदेश चुनावों से दूर रखा गया। जब वह बिहार के प्रभारी हुआ करते थे तो उन्होंने लालू के साथ कांग्रेस का गठबंधन नहीं होने दिया और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। फिर उसके बाद वह आंध्र प्रदेश गए तो वहां भी कांग्रेस को तकरीबन समाप्त कर दिया।

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