आज श्री छिन्नमस्तिका जयंती: ये है मंदिर की स्थापना का इतिहास

Edited By ,Updated: 04 May, 2015 03:07 PM

article

पूर्व काल में माईदास नामक एक भक्त थे जिनका समय पूजा पाठ व देवी अर्चना में ही बीतता था। वह व्यापार में अपने भाइयों का साथ नहीं दे पाते थे जिस कारण माईदास उनसे अलग ही रहते थे।

पूर्व काल में माईदास नामक एक भक्त थे जिनका समय पूजा पाठ व देवी अर्चना में ही बीतता था। वह व्यापार में अपने भाइयों का साथ नहीं दे पाते थे जिस कारण माईदास उनसे अलग ही रहते थे। 

माईदास एक बार ससुराल जा रहे थे। मार्ग में चलते-चलते थक कर एक वट वृक्ष की छाया में आराम के लिए बैठ गए और उनकी आंख लग गई। थोड़ी देर बाद उन्होंने स्वप्न में दिव्य तेज से युक्त एक कन्या देखी जिसके मुखमंडल पर व्याप्त ज्योति से लगता था जैसे भगवान सूर्यदेव अपनी सब कलाओं सहित उदित हुए हों। उस कन्या ने माई दास जी से कहा,‘‘भक्त माईदास तुम इसी स्थान पर रह कर मेरी सेवा करो। तुम्हारा कल्याण होगा।’’ 

जब माईदास की निद्रा भंग हुई तो स्वप्न के विषय में विचार करते हुए उठ कर ससुराल को चल दिए परंतु वहां से लौटते समय उनके पांव स्वत: उसी वट वृक्ष के नीचे आ कर रुक गए। वह वट वृक्ष की छाया में बैठ  कर भगवती की स्तुति करते हुए बोले,‘‘मैंने सदा सच्चे दिल से आपकी पूजा की है। आप प्रत्यक्ष में दर्शन देकर आदेश दें जिससे मेरे मन का संशय दूर हो।’’ 

भक्त माईदास जी की विनती सुन कर सिंह वाहिनी दुर्गा चतुर्भुजी ने दर्शन देकर कहा,‘‘इस वट वृक्ष के नीचे मैं चिरकाल से पिंडी रूप में स्थित हूं और छिन्नमस्तिका के नाम से पुकारी जाती हूं। मेरे दर्शनों से तुम्हारी कामनाएं पूर्ण होंगी। तुम्हारी चिंताओं को दूर करने के कारण आज से मैं चिंतपूर्णी के नाम से विख्यात होऊंगी।’’ 

माईदास बोले,‘‘मैं अज्ञानी संसारी प्राणी हूं। जप, तप, पूजा व पाठ का मुझे ज्ञान नहीं। मैं किस प्रकार आपकी आराधना करूंगा। यहां न तो जल है और न रोटी।’’ 

देवी बोलीं,‘‘तुम मेरे मूल मंत्र ‘ऊं  ऐं ही क्लीं चामुंडायै विच्चै’ का जाप करो तथा नीचे जाकर पत्थर उखाड़ो। वहां जल मिलेगा। जो भक्त यहां आएगा उसके चढ़ावे से तुम्हारा गुजारा होगा।’’ 

तुम भारद्वाज ऋषि की संतान, ब्राह्मण कुल के बालक और पूर्व जन्म से भी मेरे उपासक हो इसलिए मैंने तुम को यह मंत्र दिया है। तुम्हें किसी प्रकार का भय न होगा। निर्भय होकर रहो। नीचे जाकर अमुक पत्थर को उखाड़ो वहां काफी पानी  निकल आएगा। उससे मेरी पूजा किया करना और मेरी पूजा तुम ही किया करना। मेरी पूजा का अधिकार तुम्हें व तुम्हारे वंश को ही होगा। सूतक-पातक का विचार मत करना। दूसरे वंश के आदमी को मेरी पूजा का अधिकार न होगा। जिनकी चिंता मैं पूरी करूंगी वे लोग मेरा स्थान भी बनवा देंगे और चढ़ावे से तुम्हारा गुजारा हो जाएगा, तुम किसी बात से मत घबराओ। मगर याद रहे कि मेरी पूजा सामग्री बिल्कुल सात्विक प्रयोग करना, मदिरा, मांस, चारपाई पर सोना और गृहस्थ ये बातें मेरी सीमा में सख्त मना होंगी।  मैं पिंडी रूप में अब यहां रहूंगी, अगर कोई बात करने की आवश्यकता हुआ करेगी तो मैं किसी कन्या पर रोशनी डालकर कहलवा दिया करूंगी। जमीन पर सोए हुए सेवक की रक्षा की मैं स्वयं जिम्मेवार होऊंगी।’’

बस फिर माता जी पिंडी के रूप में स्थापित हो गर्ईं। माईदास जी को आदेश देकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं। चिंतपूर्णी नाम से विख्यात इसी छिन्नमस्तिका धाम मंदिर में आज लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर नतमस्तक होकर मां का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। 

माईदास जी को इसी वट के वृक्ष के नीचे जिसके नीचे श्री दुर्गा जी का मंदिर है, पहली बार श्री भगवती के दर्शन हुए थे। माईदास जी ने नीचे जाकर उस पत्थर को उखाड़ा व उखाड़ते ही उसके नीचे से काफी पानी निकल आया। वह पत्थर मंदिर में रखा हुआ है। माईदास जी ने पानी के पास ही अपने रहने के लिए मकान बना लिया और भगवती जी का पूजन आरंभ कर दिया। माईदास सारा दिन श्री दुर्गा जी के पूजन-भजन में व्यतीत कर देते थे। आखिर धीरे-धीरे दुर्गा जी के पिंडी रूप की महिमा बढऩे लगी।  महाराजा अम्ब श्री दुर्गा जी के बड़े सच्चे भक्त थे। उन्होंने यह सारी जगह जिसका नाम छपरोह है, माईदास जी के नाम कर दी तथा साथ ही सासन नामक और जगह जिसका मालिया न था, उनको दे दी। इस पर अंग्रेजी राज में मालिया लगा दिया गया और मंदिर के तमाम अधिकार इसी अर्थात माईदास के वंश के ही निश्चित और स्वीकार किए गए।

आखिर भगवती ने ऐसी रोशनी फैलाई कि दूर-दूर से लोग दर्शन को आने लगे। पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह जी इनके दर्शनों को यहां आ चुके हैं। अमर शहीद लाला जगत नारायण जी ने यहां कार सेवा करवाई थी।

माईदास जी के दो लड़के हुए एक का नाम कुल्लू और दूसरे का नाम बिल्लू। वे भी पिता जी की तरह श्री दुर्गा जी के बड़े भक्त थे। बिल्लू जी ने तो समाधि द्वारा ही प्राणों को छोड़ दिया और कुल्लू जी का यह वंश अब तक चला आ रहा है। जब कुल्लू जी ने समाधि धारण की उस समय भगवती ने वहीं साक्षात् प्रकट होकर दर्शन दिए।

  -सुनील शर्मा 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!