योग को घर-घर पहुंचाना था योगीराज स्वामी राम प्यारा जी महाराज का उद्देश्य

Edited By ,Updated: 25 May, 2015 01:43 PM

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योग का विषय जितना असीम है उतना गहन भी। केवल अनुभवी योगी ही, जिसने योग को स्वयं क्रियात्मक रूप से जीवन में अपनाया हो, उसकी गहराइयों का वर्णन कर सकता है। ऐसे चंद योगियों में योगीराज स्वामी राम प्यारा जी महाराज अग्रणी थे।

योग का विषय जितना असीम है उतना गहन भी। केवल अनुभवी योगी ही, जिसने योग को स्वयं क्रियात्मक रूप से जीवन में अपनाया हो, उसकी गहराइयों का वर्णन कर सकता है। ऐसे चंद योगियों में योगीराज स्वामी राम प्यारा जी महाराज अग्रणी थे।

आडम्बर से परे, स्वभाव से सरल, व्यवहार में विनम्र तथा निरंतर योग साधना में लीन रहते थे। इस महान योगी का जन्म 18 मई 1916 को निक्कू नंगल नामक ग्राम, जिला रोपड़ में हुआ। आपके पिता का नाम ठाकुर विजय सिंह तथा माता का नाम श्रीमती कपूरी देवी था।

मात्र 5 वर्ष की आयु तक आते-आते इनमें प्रभु-भक्ति जाग उठी और किशोरावस्था में आते-आते आप सुबह-शाम प्रभु चिंतन व गुणगान में समय बिताने लगे। बड़े-बुजुर्गों से जाना कि गुरु बिना गति नहीं तो गुरु को पाने के लिए आतुर हो उठे। एक दिन सहसा अपने परिचित की सहायता से योगीराज स्वामी मुलख राज जी महाराज से संपर्क हुआ। जैसे मंजिल मिल गई और तलाश खत्म हुई। बस चुम्बक की तरह खिंचते चले गए। यह वही मंजिल थी जहां से योग की यात्रा शुरू हुई।

योगेश्वर मुलखराज जी महाराज उन दिनों छहर्टा (अमृतसर)में लोक कल्याण के लिए योग साधन आश्रम का संचालन करते थे। अत: स्वामी राम प्यारा जी गुरु जी की सेवा में रहकर योग भक्ति की साधना करते  तथा पारिवारिक दायित्वों हेतु दिन में छहर्टा से 6 मील दूर अमृतसर में नौकरी करते।

3 नवम्बर 1960 को योगेश्वर मुलखराज जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात स्वामी रामप्यारा जी ने योग साधन आश्रम छहर्टा का कार्यभार स्वतंत्र रूप से संभाला। उनका लक्ष्य था योग को घर-घर पहुंचाना। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने लगभग 3000 योग शिविर अपने जीवन काल में लगाए जिससे लाखों रोगी निरोगता को प्राप्त हुए तथा असंख्य लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलाया। यही नहीं, योग के प्रचार-प्रसार हेतु आपने अनेक स्थानों पर योग आश्रमों की स्थापना की जिनमें अमृतसर, जालंधर, जालंधर छावनी, लुधियाना, नंगल, फिरोजपुर, अबोहर, जम्मू, दिल्ली व साहिबाबाद आदि मुख्य हैं।

4 दिसम्बर 2012 को स्वामी राम प्यारा जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनकी पूर्व घोषित प्रबल इच्छा एवं लिखित वसीयत के अनुसार स्वामी गुरबख्श राय जी महाराज योग आश्रमों का संचालन कर रहे हैं और गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह करते हुए वह योग की अलख घर-घर पहुंचा रहे हैं।

प्रस्तुति : राजवीर दीक्षित, नंगल/ विजय कुमार कपूर, जालंधर

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