नकली सामान ‘मेक इन इंडिया’ के सामने वास्तविक चुनौती: रिपोर्ट

Edited By ,Updated: 31 Aug, 2015 10:36 PM

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कम गुणवत्ता वाले सामानों के उत्पादन से ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के कमजोर होने की आशंका है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

मुंबई: कम गुणवत्ता वाले सामानों के उत्पादन से ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के कमजोर होने की आशंका है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। उद्योग संगठन फिक्की और परामर्श कंपनी केपीएमजी की रिपोर्ट ‘सेल स्मार्ट’ के अनुसार नकली सामानों का बाजार 44 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है और वर्ष 2014 में 1.05 लाख करोड़ का हो चला है।  इसमें कहा गया है कि परिणामस्वरूप वर्ष 2010 के बाद से भारत, अमेरिका के वैश्विक स्तर पर बौद्धिक संपदा अधिकार आईपीआर उल्लंघन के प्रति संवेदनशील देशों की ‘प्राथमिक निरीक्षण सूची’ में है।  

रिपोर्ट में कहा गया है कि उपभोक्ता पैकबंद सामान, व्यक्तिगत देखरेख उत्पाद, तम्बाकू, मोबाइल एवं मोबाइल के उपकरण तथा हार्डवेयर एेसे क्षेत्र हैं जहां नकली सामान होने की अधिक गुंजाइश ज्यादा है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2014 में देश में कुल नकली सामानों में एफएमसीजी, अल्कोहलयुक्त पेय और तम्बाकू का हिस्सा करीब 65 प्रतिशत रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि कम गुणवत्ता वाले उत्पादों अथवा सामानों में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की अनदेखी करने की पर्याप्त क्षमता है। 
 
नकली सामान सरकार के लिए एक चुनौती है और इसका सीधा प्रभाव कर राजस्व की हानि के जरिये महसूस किया जा रहा है। वर्ष 2014 में नकली सामानों के कारोबार सरकार ने कर संग्रह में करीब 39,200 करोड़ रुपये का नुकसान सहा जो वर्ष 2012 के 26,100 करोड़ के कर संग्रहण से लगभग 50 प्रतिशत वृद्धि को दर्शाता है। एफएमसीजी और पेय क्षेत्र का नुकसान करीब 27,500 करोड़ रपये का रहा अथवा करीब 70 प्रतिशत का रहा।

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