आत्महत्या का यशोगान क्यों?

Edited By Riya bawa,Updated: 20 Jun, 2020 02:49 PM

why contribute to suicide

हर टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर अभिनेता सुशांतसिंह राजपूत की आत्महत्या की लगातार चर्चा हो रही है। वे ऐसे थे,वैसे थे,महान कलाकार थे,धोनी के किरदार को नए आयाम दिये आदि-आदि। शोक व्यक्त करना अपनी जगह ठीक है...

हर टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर अभिनेता सुशांतसिंह राजपूत की आत्महत्या की लगातार चर्चा हो रही है। वे ऐसे थे,वैसे थे,महान कलाकार थे,धोनी के किरदार को नए आयाम दिये आदि-आदि। शोक व्यक्त करना अपनी जगह ठीक है, मगर इतना भी विह्वल न हों कि असली वीरों को आप भूल जाएं। चौदह जून 2020 को ही भारत-भूमि की रक्षा करते भारतीय सेना का एक वीर-सपूत(जवान)मथियाझगन जम्मू-कश्मीर के राजौरी सेक्टर में वीरगति को प्राप्त हुआ। सेना ने एक बयान जारी कर बताया कि मथियाझगन तमिलनाडु के सेलम जिले का रहने वाला था। वह एक बहादुर व ईमानदार सिपाही था। उसके बलिदान के लिए देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा।

ध्यान देने वाली बात है कि ये सेनानी देश के लिए अपनी जान देते हैं तभी आप-हम अपने-अपने घरों में सुरक्षित हैं।असली हीरो तो ये रण-बाँकुरे हैं। स्तवन इनका होना चाहिए,चर्चा इनकी होनी चाहिए। नकली नायकों की नहीं। यह सही है कि सुशांत सिंह राजपूत एक होनहार अभिनेता अवश्य था। उसने अपने करियर की शुरुआत टीवी एक्टर के तौर पर की थी। सबसे पहले उसने ‘किस देश में है मेरा दिल’ नाम के धारावाहिक में काम किया था पर उसे असली पहचान एकता कपूर के धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ से मिली। इसके बाद उसका फिल्मों का सफर शुरु हुआ था।

Sushant Singh Rajput

वह फिल्म ‘काय पो चे’ में लीड एक्टर के तौर पर नजर आया था और उसके कुशल अभिनय की तारीफ भी हुई थी।दरअसल,शुरुआती दौर में हर अभिनेता को इस तरह का संघर्ष करना पड़ता है और प्रायः सभी नामी-गिरामी अभिनेताओं की यही कहानी है। सवाल यह नहीं है सवाल है कि क्या सुशांत की मौत को,जिसे आत्महत्या बताया जाता है, मीडिया द्वारा इतना ‘ग्लोरिफय’ करने की कोई ज़रूरत थी? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आत्महत्या एक कायराना हरकत है और जो व्यक्ति ऐसा करता है,किसी भी वजह से,समाज के लिए आदर्श-पुरुष कदापि नहीं हो सकता बल्कि उसके इस कृत्य से देश की युवा पीढ़ी की मानसिकता पर विपरीत असर पड़ सकता है।मीडिया को ऐसे मामलों के व्यापक प्रचार-प्रसार पर तनिक संयम बरतना चाहिए था।

हमारे एक विद्यार्थी जो आर्ट की दुनिया से वर्षों तक जुड़े रहे हैं, ने मुझे इस प्रकरण पर बहुत ही सटीक प्रतिक्रिया भेजी है:“फिल्मी हीरो शौक-मौज और अय्याशी का जीवन जीते हैं। नाच-गाकर हमारा मनोरंजन करते हैं और इसके बदले में उन्हें खूब पैसे मिलते हैं। उनका जीवन किसी भी प्रकार से स्तुत्य या चर्चा योग्य नहीं है।असली हीरो वे हैं जो देशवासियों की चैन की नींद के लिए सीमाओं पर अपना बलिदान देते हैं।“

वीरता और त्याग की प्रतिमूर्ति सिपाही मथियाझगन अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हुए।कोई बताए तो कि ‘फिल्मी हीरी’ ने किसके लिए अपनी जान गंवाई? सेना-नायक आपसे कुछ नहीं लेता मगर आपकी रक्षा करता है।फिल्मी-नायक फूहड़ मनोरंजन के नाम पर आपकी जेब खाली करता है और आपको मालूम भी नहीं पड़ता।सेना-नायक आपकी रक्षा अथवा देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान करता है जबकि फिल्मी नायक अपनी कमाई और शोहरत के लिए आपकी जेब साफ करता है।वह मरता है तो मीडिया में कोई जुम्बिश नहीं।यह अपने 'कर्मों' से मरता है तो मीडिया सातवें आसमान पर !

(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा) 

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