कांग्रेस ने पंजाब में दोहराया भाजपा का ‘गुजरात प्रयोग’

Edited By ,Updated: 21 Sep, 2021 04:08 AM

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इन दिनों देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए प्रयोगों के दौर से गुजर रही हैं। इसकी शुरूआत 2017 में हुई जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को हराने की रणनीति तैयार...

इन दिनों देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए प्रयोगों के दौर से गुजर रही हैं। इसकी शुरूआत 2017 में हुई जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को हराने की रणनीति तैयार करनी शुरू की। 

इसी के तहत भाजपा ने सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकुल राय को पार्टी में शामिल किया और उनके जरिए 2021 के पश्चिम बंगाल के चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस के 37 विधायकों के अलावा दर्जनों प्रभावशाली नेता भी पार्टी में शामिल करवा लिए। बंगाल के चुनावों में भाजपा ने 13 दलबदलू विधायकों को टिकट दिए लेकिन इनमें से 4 विधायक ही चुनाव जीत सके और बंगाल में दल-बदल के जरिए चुनाव जीतने का भाजपा का प्रयोग फ्लॉप हो गया। 

अब भाजपा ने अगले वर्ष के शुरू में पांच राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर व वर्ष के अंत में गुजरात और हिमाचल एवं 2023 में कर्नाटक में होने वाले चुनावों के दृष्टिगत अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इसी के तहत इसने गत 6 माह में अपने शासन वाले तीन राज्यों में 4 मुख्यमंत्री बदल दिए हैं। इस दौरान उत्तराखंड के दो मुख्यमंत्री बदले गए। पहले तीरथ सिंह रावत को हटा कर त्रिवेंद्र सिंह रावत और फिर उन्हें भी बदल कर पुष्कर सिंह धामी को राज्य की बागडोर सौंप दी है। 

हालांकि कर्नाटक में 2023 में चुनाव होने हैं लेकिन वहां भी मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा को बदल कर बसावराज ‘बोम्मई’ को मुख्यमंत्री बना दिया गया। यही नहीं, भाजपा ने गुजरात में पाटीदार समुदाय की नाराजगी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की 22 मंत्रियों की पूरी टीम सहित त्यागपत्र दिलवा कर पहली बार के विधायक भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बना कर सभी 24 नए मंत्री नियुक्त कर दिए गए। भाजपा द्वारा किए जा रहे इन प्रयोगों जैसा ही प्रयोग पंजाब में अमरेंद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के साथ कांग्रेस हाईकमान ने किया है।  

मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह व नवजोत सिंह सिद्धू में 2 वर्ष से जारी अनबन और टकराव के दृष्टिगत अंतत: कांग्रेस हाईकमान ने 18 सितम्बर को अमरेंद्र सिंह को त्यागपत्र देने के लिए कह दिया।  इसके साथ ही अगले मुख्यमंत्री के बारे में अटकलबाजियां शुरू हो गईं। 19 सितम्बर को सुखजिंद्र रंधावा के नाम पर सहमति बनती तो दिखाई दी परंतु नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा खुद को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठा देने से मामला उलझ गया और अंतत: राहुल गांधी के करीबी चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी गई। फिर पेंच 2 उपमुख्यमंत्रियों को लेकर फंसा और 20 सितम्बर को राजभवन में चन्नी के शपथ ग्रहण से ठीक पहले विधायक ओ.पी. सोनी (हिन्दू) और सुखजिंद्र सिंह रंधावा (जाट) के नाम पर सहमति बनी। इस प्रकार कांग्रेस ने दलित को पहली बार पंजाब में सी.एम. तथा जाट व हिन्दू को डिप्टी सी.एम. बनाकर सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है। 

शपथ ग्रहण के तुरंत बाद चुनावी मोड में आए नए मुख्यमंत्री ने गरीबों को मुफ्त बिजली देने, बिल कम करने, किसी गरीब का पानी का कनैक्शन पैंङ्क्षडग बिल के कारण न काटने, गत 10 वर्षों में पैंङ्क्षडग बिल के कारण काटे गए कनैक्शन बिल माफ करके बहाल करने, शहरों में 150-200 गज के मकान वाले लोगों के वाटर सप्लाई सीवरेज बिल मुफ्त करने पर विचार करने आदि की घोषणा की। पहली बार सार्वजनिक मंच से जनता से रूबरू हुए चन्नी इस कदर भावुक हुए कि उनकी आंखें भर आईं। उन्होंने कहा कि वह रिक्शा चलाने वालों के नुमाइंदे हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं रिक्शा चलाया है। उन्होंने रेत का बिजनैस करने वालों से कहा कि वे उनसे न मिलें और लम्बे समय से सड़कों पर उतरे सरकारी कर्मचारियों से काम पर लौटने की अपील करते हुए कहा कि उनके सभी मसले हल किए जाएंगे। 

बेशक कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में नेतृत्व बदलने का यह प्रयोग भाजपा की नकल पर किया है परंतु एक अंतर यह रहा कि जहां गुजरात भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री की पूरी टीम का पत्ता साफ कर देने के बावजूद किसी ने उफ तक नहीं की वहीं पंजाब में इसके विपरीत हुआ। अंतिम समय तक इल्जाम तराशी होती रही जो कांग्रेस में अनुशासन की भारी कमी का संकेत है। जो भी हो, अब जबकि पंजाब में नई कांग्रेस सरकार अस्तित्व में आ चुकी है तो देखना दिलचस्प होगा कि वह अपने कार्यकाल के बाकी बचे महीने किस प्रकार बिताती है।—विजय कुमार 

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