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सरकारी दावों के बावजूद भारत अभी खुले में शौच से पूर्णत: मुक्त नहीं

Edited By ,Updated: 10 Oct, 2019 12:35 AM

despite government claims india is not completely free from open defecation

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम संदेश में शौचालयों की जरूरत का उल्लेख किया और इसी सिलसिले में सरकार ने महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ पर 2 अक्तूबर, 2019 तक भारत को खुले में शौचमुक्त करने का...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम संदेश में शौचालयों की जरूरत का उल्लेख किया और इसी सिलसिले में सरकार ने महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ पर 2 अक्तूबर, 2019 तक भारत को खुले में शौचमुक्त करने का लक्ष्य घोषित किया था।

अब 2 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जी की 150वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि भेंट करने के बाद अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट पर देश के खुले में शौच से मुक्त होने की घोषणा की और कहा कि पिछले 60 महीनों में देश में 11 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं जिस पर विश्व भर में भारत की प्रशंसा की जा रही है। 

बेशक सरकार देश के खुले में शौच से मुक्त होने की घोषणा कर रही है तथा इस दिशा में काम हुआ भी है परंतु हाल ही में हुई कुछ घटनाओं से लगता है कि देश को खुले में शौच से पूर्णत: मुक्त करना अभी बाकी है। 

25 सितम्बर को मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के भावखेड़ी गांव में खुले में शौच कर रहे वाल्मीकि समाज के 2 बच्चों रौशनी (12) और उसके छोटे भाई अविनाश (10) की लाठियों से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। 

02 अक्तूबर को मध्य प्रदेश में सागर जिले के बगसपुर गांव में 6 साल के एक बच्चे द्वारा खुले में शौच करने पर 2 पड़ोसियों में हुई लड़ाई के दौरान बच्चे को भी कई लाठियां लगने से उसकी मृत्यु हो गई।

02 अक्तूबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के खुले में पूर्णत: शौच मुक्त होने की घोषणा कर रहे थे उसी दिन स्वच्छ भारत मिशन से जुड़े एक अधिकारी ने स्वीकारोक्ति करते हुए कहा, ‘‘देश का आई.टी. केंद्र बेंगलूरू भी अभी खुले में शौच की समस्या से मुक्त नहीं हुआ है। अभी भी वहां 15 से 20 प्रतिशत लोग खुले में शौच करने को विवश हैं।’’ 

देश के कुछ भागों में अभी भी सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा जारी है। मध्य प्रदेश के शिवपुरी में अनेक सफाई कर्मचारी अभी भी सिर पर मैला ढोने का अभिशाप झेल रहे हैं। 

उक्त तथ्यों को देखते हुए निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि भले ही सरकार ने देश को खुले में शौच से मुक्त करने की दिशा में काफी काम किया है परंतु अभी भी इस क्षेत्र में काफी काम करना बाकी है। ग्रामीण विकास बारे संसद की स्थायी समिति इसी वर्ष जनवरी में यह रहस्योद्घाटन कर चुकी है कि स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत बनाए गए अनेक शौचालय निष्क्रिय व इस्तेमाल के अयोग्य हो गए हैं। —विजय कुमार 

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