देर से मिलने वाला न्याय पीड़ित को न्याय से वंचित करने के समान

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2023 05:18 AM

justice delayed is justice denied to the victim

न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अनुसार देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 71,204 से अधिक तथा निचली अदालतों में 1,01,837 मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं तथा देश की अदालतों में कुल लंबित मामले 5.02 करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं। देर से मिले...

न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अनुसार देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 71,204 से अधिक तथा निचली अदालतों में 1,01,837 मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं तथा देश की अदालतों में कुल लंबित मामले 5.02 करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं। देर से मिले न्याय के 5 ताजा उदाहरण निम्न में दर्ज हैं : 

* 20 वर्ष पुराने गोलीकांड, जिसमें तीन व्यक्तियों की मौत हो गई थी, में 4 जुलाई को हजारीबाग की अदालत ने भाकपा माले के पूर्व विधायक राजकुमार यादव व 22 आरोपियों को दोष मुक्त करार देकर बरी कर दिया।
* 20 वर्ष पूर्व ही मृत्यु प्रमाण पत्र देने के बदले 300 रुपए रिश्वत लेने के मामले में 24 मार्च को सुप्रीमकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए ‘भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम’ के अंतर्गत दोषी ठहराए गए आरोपी को बरी कर दिया। 

* 11 वर्ष पुराने हत्या के एक मामले में हापुड़ में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) की अदालत ने एक युवक को घेर कर गोली मारने के आरोप में 6 दोषियों को 27 जुलाई को उम्र कैद की सजा सुनाई। 
* 11 वर्ष पुराने गीतिका शर्मा आत्महत्या केस में हरियाणा के पूर्व मंत्री और विधायक गोपाल कांडा तथा सह आरोपी अरुणा चड्ढा को 25 जुलाई को दिल्ली की राऊज एवेन्यू अदालत ने बरी कर दिया। गीतिका ने 5 अगस्त, 2012 को अपने घर में आत्महत्या कर ली थी और सुसाइड नोट में गोपाल कांडा पर गंभीर आरोप लगाए थे।  
* 10 वर्ष पुराने एक मामले में गाजियाबाद की एक अदालत ने 26 जुलाई को 15 वर्षीय नाबालिगा से बलात्कार करके उसे गर्भवती कर देने के आरोप में एक व्यक्ति को 20 वर्ष कैद की सजा सुनाई।
अदालतों द्वारा फैसलों में देरी करने से पीड़ितों को न्याय का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है, इसीलिए 13 अप्रैल, 2016 को पूर्व राष्टï्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने भी कहा था कि ‘‘देर से मिलने वाला न्याय, न्याय न मिलने के बराबर है।’’

अदालतों में लम्बे समय तक मुकद्दमे लटकने का प्रभाव किसी एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पीड़ित के समूचे परिवार पर पड़ता है। उदाहरणार्थ यदि औसतन 6 सदस्यों वाले परिवार के किसी एक सदस्य पर मुकद्दमा चल रहा हो तो देश में लंबित 5 करोड़ से अधिक मामलों के कारण कम से कम 30 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। इसी को देखते हुए अदालती कामकाज के जानकार लोगों का सुझाव है कि :
* चैक बाऊंस, ट्रैफिक चालान आदि छोटे मामले लोक अदालतों को ट्रांसफर कर देने चाहिएं जहां उन्हें निपटा दिया जाए।
* अदालतों में गर्मियों व सर्दियों की लंबी छुट्टियां भी बंद की जाएं। 
* अदालतों में कामकाज का समय सुबह 10 से 4 बजे शाम तक की बजाय शाम 5 बजे तक होना चाहिए ताकि अधिक केस निपटाए जा सकें। 
* जजों द्वारा बहस पूरी हो जाने के बाद एक सीमित समय के अंदर फैसला सुना दिया जाए। फैसला लटकता रहने के दौरान ही जजों का तबादला या पदोन्नति आदि हो जाने के कारण सारी प्रक्रिया नए सिरे से करनी पड़ती है, जिससे फैसले करने में और देरी होती है। 

देश में छोटी-बड़ी अदालतों में लम्बे समय से चली आ रही जजों की कमी भी इस विलम्ब का सबसे बड़ा कारण है। कई फरियादियों की तो न्याय की प्रतीक्षा में ही मौत हो जाती है। 
अत: इसके लिए अदालतों में जजों की कमी यथाशीघ्र दूर करने के अलावा समयबद्ध तरीके से न्याय प्रक्रिया को मुकम्मल व चुस्त करने के साथ-साथ ऊपर दिए गए सुझावों पर जल्द और तेजी से अमल करने की जरूरत है ताकि अदालतों में मुकद्दमों का बोझ घटे और पीड़ितों को समय रहते न्याय मिल सके।—विजय कुमार  

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