छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों के विरुद्ध सुरक्षा बलों को मिली बड़ी सफलता

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2024 05:14 AM

security forces got major success against naxalites in chhattisgarh

चीन में क्रांति के सूत्रधार माओ-त्से-तुंग का कहना था कि ‘‘एक चिंगारी सारे जंगल में आग लगा देती है’’। उसी से प्रेरित होकर 1967 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जिले के ‘नक्सलबाड़ी’ गांव से एक आंदोलन शुरू हुआ। माओ प्रेरित होने के कारण इसे ‘माओवादी...

चीन में क्रांति के सूत्रधार माओ-त्से-तुंग का कहना था कि ‘‘एक चिंगारी सारे जंगल में आग लगा देती है’’। उसी से प्रेरित होकर 1967 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जिले के ‘नक्सलबाड़ी’ गांव से एक आंदोलन शुरू हुआ। माओ प्रेरित होने के कारण इसे ‘माओवादी आंदोलन’ तथा ‘नक्सलबाड़ी’ गांव से शुरू होने के कारण ‘नक्सलवादी आंदोलन’ कहा जाता है। इस आंदोलन के तीन मुख्य नेता थे-चारू मजूमदार, कनु सान्याल तथा ‘जंगल संथाल’। शुरू में बड़े जमींदारों के विरुद्ध शुरू हुआ यह आंदोलन शीघ्र ही एक दर्जन से अधिक राज्यों में फैल कर बहुत बड़ा खतरा बन गया। 

नक्सलवादी (माओवादी) गिरोह न सिर्फ सरकार के विरुद्ध छद्म लड़ाई में जुट गए, बल्कि कंगारू अदालतें लगा कर मनमाने फैसले सुनाने के अलावा लोगों से जब्री वसूली, लूटपाट व हत्याएं भी करने लगे। केंद्र सरकार ‘नक्सलवाद’ तथा ‘माओवाद’ को ‘वामपंथी उग्रवाद’ मानती है। इससे निपटने के लिए गृह मंत्रालय में अलग से एक विभाग भी बनाया हुआ है। इस आंदोलन की सर्वाधिक मार आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के कुछ जिले, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और बिहार झेल रहे थे तथा पहली हत्या इन्होंने सशस्त्र संघर्ष शुरू करने के एक सप्ताह के भीतर ही ‘नक्सलबाड़ी’ के निकट 24 मई, 1967 को की थी। पिछले कुछ समय से सुरक्षा बलों द्वारा इनके विरुद्ध जोरदार अभियान चलाने के परिणामस्वरूप ये अब मुख्यत: झारखंड, बिहार  तथा छत्तीसगढ़ तक सिमटते जा रहे हैं और पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 95 से घट कर 45 रह गई है। इनके विरुद्ध सुरक्षा बलों के अभियान के परिणामस्वरूप इसी वर्ष : 

* 25 फरवरी, 2024 को ‘हूर तराई’ के जंगल में हुए एनकाऊंटर में 3 नक्सली मारे गए।
* 3 मार्च को कांकेर जिले के ‘ङ्क्षहदूर’ में मुठभेड़ के दौरान एक नक्सली मारा गया। इसमें ‘बस्तर फाइटर’ का एक जवान भी शहीद हुआ था। 
* 16 मार्च को भी मुठभेड़ में एक नक्सली मारा गया था। 
* 2 अप्रैल को बीजापुर के जंगल में हुई मुठभेड़ में पुलिस ने 13 नक्सलियों को मार गिराया था। 

अब 16 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली, जब यहां के ‘बिनागुंडा’ तथा ‘कोरोनार’ गांवों के बीच ‘हापाटोला’ के जंगल में नक्सल विरोधी अभियान पर भेजे गए बी.एस.एफ., ‘डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड’ (डी.आर.जी.) और पुलिस के एक संयुक्त दल पर नक्सलवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके जवाब में सुरक्षाबलों ने 29 नक्सलवादियों को घेर कर मार गिराया। इनमें 25-25 लाख रुपए के 2 ईनामी नक्सली, टॉप कमांडर शंकर राव और ललिता भी शामिल थे। यह नक्सलवादियों के विरुद्ध अभियान में छत्तीसगढ़ में अब तक की सबसे बड़ी सफलता है। घटनास्थल से भारी मात्रा में विस्फोटक भी बरामद किए गए हैं, जिनमें 7 ए.के.-47 राइफलें, 1 इन्सास राइफल, 3 एल.एम.जी. आदि शामिल हैं। 

इस मुठभेड़ में बी.एस.एफ. के एक इंस्पैक्टर रमेश चौधरी सहित 3 जवान भी घायल हुए, जिन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। उल्लेखनीय है कि नक्सलियों के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की रणनीति बनाने के लिए 9 और 10 अप्रैल को केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला व इंटैलीजैंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका रायपुर आए हुए थे। इस वर्ष अब तक कांकेर सहित बस्तर संभाग के 7 जिलों में सुरक्षाबलों ने अलग-अलग मुठभेड़ों में 79 नक्सलियों को ठिकाने लगाया है। यह मुठभेड़ उस समय हुई है, जबकि छत्तीसगढ़ के बस्तर में 19 अप्रैल को और कांकेर में 26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। 

नक्सलवादियों के विरुद्ध इस सफल अभियान के लिए सुरक्षा बल बधाई के पात्र हैं परंतु अभी यह खतरा समाप्त करने के लिए काफी कुछ करना बाकी है। नक्सलवादियों ने 16 अप्रैल की ही रात को राज्य के नारायणगढ़ में एक कायराना करतूत करते हुए एक भाजपा नेता पंचम दास की हत्या करके अपने इरादों का संकेत दे दिया है। अत: नक्सलवादियों के विरुद्ध अभियान और मजबूती से चलाने की जरूरत है।—विजय कुमार

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