मध्य प्रदेश के संकट के लिए कमलनाथ,ज्योतिरादित्य व कांग्रेस हाईकमान जिम्मेदार

Edited By ,Updated: 12 Mar, 2020 02:44 AM

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कांग्रेस को पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश की चुनावी सफलताओं के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना और राकांपा के साथ गठबंधन सरकार में शामिल होने पर कुछ संजीवनी मिली थी परंतु पार्टी में उच्चतम स्तर पर अस्थिरता इसके अस्तित्व के लिए चुनौतियां खड़ी...

कांग्रेस को पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश की चुनावी सफलताओं के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना और राकांपा के साथ गठबंधन सरकार में शामिल होने पर कुछ संजीवनी मिली थी परंतु पार्टी में उच्चतम स्तर पर अस्थिरता इसके अस्तित्व के लिए चुनौतियां खड़ी कर रही है। जहां पंजाब में कांग्रेस की अमरेंद्र सिंह सरकार में विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को वापस लाने में भूमिका निभाने वाले कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद पार्टी में स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। 

पार्टी के वचन पत्र में किए गए वायदों को पूरा न करने पर अपनी सरकार की आलोचना करते आ रहे ज्योतिरादित्य ने जब यह कहा कि ‘‘सरकार के वादे पूरे करवाने के लिए मुझे सड़क पर उतरना ही होगा।’’ तो कमलनाथ ने भी उनकी धमकी के जवाब में कह दिया कि ‘‘उतरना है तो उतर जाएं।’’ इसका अंजाम अंतत: 10 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से त्यागपत्र और 11 मार्च को भाजपा का दामन थामने के रूप में निकला और उनके समर्थक लगभग 22 विधायकों द्वारा त्यागपत्र दे देने से 15 महीने पुरानी राज्य की कांग्रेस सरकार के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया। 

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य की उपेक्षा करने के कमलनाथ पर लगने वाले ‘आरोपों’ पर कहा है कि ‘‘कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य को उपमुख्यमंत्री पद की पेशकश की थी परंतु वह अपने किसी विश्वस्त के लिए यह पद चाहते थे।’’ ‘‘कांग्रेस नेताओं से यह समझने में भूल हुई कि सिंधिया कांग्रेस छोडऩे जैसा कदम उठा सकते हैं क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें चार बार सांसद, दो बार केंद्रीय मंत्री और कार्य समिति का सदस्य बनाया।’’ दिग्विजय सिंह ने विधानसभा में कमलनाथ सरकार के बहुमत सिद्ध करने का विश्वास जताते हुए दावा किया कि 22 बागी विधायकों में से 13 ने कांग्रेस नहीं छोडऩे का विश्वास दिलाया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि सिंधिया के भाजपा में जाने का षड्यंत्र तीन महीनों से चल रहा था और वह केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनने की अति महत्वाकांक्षा के चलते भाजपा में शामिल हुए हैं। 

बताया जाता है कि ज्योतिरादित्य काफी दिनों से राहुल गांधी से मिलने का प्रयास कर रहे थे पर सफल न हो पाए और अंतत: सोनिया गांधी को भेजे त्यागपत्र में उन्होंने लिख दिया कि ‘‘अब आगे बढऩे का समय आ गया है।’’ परंतु राहुल का कहना है कि‘‘ज्योतिरादित्य सिंधिया इकलौते ऐसे नेता थे जो कभी भी मेरे घर आ सकते थे।’’प्रदेश की राजनीति में आए भूचाल के बीच दोनों ओर से अपने-अपने विधायकों को बचाने के लिए ‘रिसोर्ट पॉलिटिक्स’ शुरू हो गई है। भाजपा ने अपने विधायकों को 10-11 मार्च की दरम्यानी रात हरियाणा पहुंचा दिया  तो कांग्रेस ने राजस्थान में ठहराए हैं। जहां कमलनाथ का कहना है कि ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोडऩे और उनके समर्थक विधायकों के त्यागपत्रों से उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है, वहीं कमलनाथ सरकार के विरुद्ध विद्रोही विधायकों के एस.एम.एस. भी आने शुरू हो गए हैं। इस घटनाक्रम का परिणाम चाहे जो भी हो, एक बात तो स्पष्ट है कि इसके लिए मुख्य रूप से कमलनाथ और ज्योतिरादित्य दोनों ही जिम्मेदार हैं। 

इस घटनाक्रम से एक बार फिर सिद्ध हो गया है कि राजनीति में निजी स्वार्थ और महत्वाकांक्षाएं ही सर्वोपरि हैं। संभवत: इसका एक कारण यह भी रहा होगा कि ज्योतिरादित्य का समूचा परिवार भाजपा में है अत: भाजपा में आने के लिए उनके परिवार का भी कुछ दबाव रहा होगा और ज्योतिरादित्य ने भी कांग्रेस के प्रति अपनी 18 वर्षों की वफादारी भुला कर अपने सिद्धांतों की धुर-विरोधी भाजपा का दामन थामने में कोई संकोच नहीं किया। इतने लम्बे समय तक कांग्रेस में रहने और इतने पद प्राप्त करने के बावजूद  यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता ऐसा करेंगे तो आम छुटभैया नेता भी ऐसा ही करेंगे जिससे राजनीति में गंदगी आएगी। जो भी हो, यदि कांग्रेस नेतृत्व ने इसी तरह अपने नेताओं की उपेक्षा जारी रखी और रुठे हुओं को मनाने के ठोस प्रयास शुरू न किए तो उन्हें और हानि उठाने के लिए तैयार रहना होगा। इसके साथ ही भाजपा ने मध्य प्रदेश में जो भूमिका निभाई है उसकी भी लोग आलोचना कर रहे हैं।—विजय कुमार 

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