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पाकिस्तानी समर्थन पड़ा महंगा ‘न तुर्की के सेब खाएंगे’ ‘न भारतीय वहां घूमने जाएंगे’

Edited By ,Updated: 15 May, 2025 04:34 AM

neither will the apples of türkiye neither indians will go there

6 फरवरी, 2023 को तुर्की में आए विनाशकारी भूकंपों में 55,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत के 140 करोड़ लोग तुर्की के भूकंप पीड़ित लोगों के साथ हैं तथा उन्होंने तुर्की की सहायता के लिए ‘आप्रेशन...

6 फरवरी, 2023 को तुर्की में आए विनाशकारी भूकंपों में 55,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत के 140 करोड़ लोग तुर्की के भूकंप पीड़ित लोगों के साथ हैं तथा उन्होंने तुर्की की सहायता के लिए ‘आप्रेशन दोस्त’ शुरू किया था। 10 दिनों तक चलाए ‘आप्रेशन दोस्त’ के अंतर्गत भारत सरकार ने तुर्की को 6 विमानों में राहत सामग्री भेजने के अलावा 30 बिस्तरों वाला मोबाइल अस्पताल, मैडीकल सामग्री व अन्य जरूरी सामान भिजवाया। भारत सरकार द्वारा वहां भेजी गई बचाव टीमों ने मलबे में दबे लोगों को खोजने और उन्हें बाहर निकालने में भी सहायता की थी। तब भारत में तुर्की के राजदूत ‘फिरात सुनेत’ ने भारत के लिए कहा था कि ‘‘तुर्की व हिन्दी में ‘दोस्त’ एक सांझा शब्द है...हमारे यहां तुर्की में कहावत है कि जो जरूरत के समय मदद करे वही सच्चा दोस्त होता है।’’ परंतु तुर्की का राष्ट्रपति‘एर्दोगान’ भारत का वह एहसान भूल कर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए वर्तमान संघर्ष में भारत का साथ देने की बजाय पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा हो गया। 

तुर्की के राष्ट्रपति ‘एर्दोगान’ ने न सिर्फ पाकिस्तान को ड्रोन्स तथा मिसाइल आदि सप्लाई किए बल्कि भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए आतंकवादियों को श्रद्धांजलि तक दे डाली और कहा,‘‘मैं हमलों में जान गंवाने वाले हमारे भाइयों के लिए अल्लाह से रहम की प्रार्थना करता हूं और मैं एक बार फिर पाकिस्तान के भाई जैसे लोगों और पाकिस्तान के साथ अपनी हमदर्दी व्यक्त करता हूं।’’ पाकिस्तान को हथियारों की सहायता और मारे गए आतंकियों को श्रद्धांजलि देकर जिस प्रकार तुर्की के राष्ट्रपति ‘एर्दोगान’ ने भारत के घावों पर नमक छिड़का है उससे देश के 140 करोड़ लोगों को काफी दुख पहुंचा है। बहरहाल भारत-पाक युद्ध में तुर्की द्वारा पाकिस्तान का साथ देना अब उसको महंगा पड़ रहा है तथा भारतीयों ने उसे सबक सिखाने के लिए ‘बायकाट तुर्की’ अभियान चला दिया है। लोगों का कहना है कि भारत ने तुर्की के कठिन समय में उसका साथ दिया था लेकिन जब भारत के साथ खड़ा होने की जरूरत थी तब तुर्की वहां नहीं था इसलिए हम न तुर्की के सेब खाएंगे और न वहां घूमने जाएंगे। 

उल्लेखनीय है कि भारत में एक सीजन में आमतौर पर तुर्की से 1000 करोड़ रुपए से 1200 करोड़ रुपए के सेबों का आयात होता है। पुणे के व्यापारियों ने तुर्की से सेब खरीदना बंद कर दिया है। जहां भारतीय व्यापारियों द्वारा तुर्की से आने वाले सेबों का बहिष्कार कर देने के कारण तुर्की के सेब अब बाजार से गायब हो चुके हैं, वहीं अब भारतीय पर्यटकों ने तुर्की यात्रा का बहिष्कार करना भी शुरू कर दिया है। देश के पूर्वी भाग से ही 15000 से अधिक लोगों ने तुर्की की यात्रा रद्द कर दी है।  उल्लेखनीय है कि 2024-25 में लगभग 4 लाख भारतीय पर्यटक तुर्की गए थे। अब कुछ भारतीय ट्रैवल एजैंसियों ने तुर्की के लिए उड़ानों और होटल बुकिंग पर रोक भी लगा दी है। तुर्की की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बहुत बड़ा हाथ है तथा इसकी कुल जी.डी.पी. का 10 प्रतिशत पर्यटन से ही आता है। इससे तुर्की में चिंता पैदा हो गई है और पर्यटन विभाग तथा अन्य व्यवसायों से जुड़े लोगों ने भारतीयों से तुर्की की यात्रा रद्द न करने का अनुरोध भी किया है। 

तुर्की के कालीन तथा मार्बल क्रॉकरी आदि वस्तुएं भारत में काफी पसंद की जाती हैं तथा छुट्टिïयां मनाने के लिए वहां जाने वाले भारतीय पर्यटक बड़ी मात्रा में इन्हें वहां से खरीद कर लाते थे। इसके अलावा राजस्थान के मार्बल व्यापारियों ने भी तुर्की से मार्बल का आयात रोक दिया है। भारत द्वारा प्रति वर्ष तुर्की से 14 से 16 लाख टन मार्बल आयात किया जाता था। उल्लेखनीय है कि अब भारतीयों द्वारा तुर्की के सामान का बहिष्कार करने से उसके पर्यटन तथा उद्योग-व्यवसाय का प्रभावित होना तय है जिससे उसके राजस्व को आघात लगेगा। यह तो अभी शुरूआत है, आगे-आगे देखिए होता है क्या!—विजय कुमार  

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