एक बार फिर हंगामे के साथ शुरू हुआ संसद का मानसून सत्र

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jul, 2018 12:54 AM

once again the monsoon session of parliament started with the ruckus

संसद का मानसून सत्र बुधवार 18 जुलाई को शुरू हो गया, जो 10 अगस्त तक चलेगा। इनमें 6 दिन छुट्टी के हैं। अत: सरकार के पास महत्वपूर्ण विधेयक पास करवाने के लिए मात्र 18 दिन ही हैं। संसद के दोनों सदनों में तीन तलाक, भगौड़ा कानून, गैर-कानूनी डिपाजिट स्कीमों...

संसद का मानसून सत्र बुधवार 18 जुलाई को शुरू हो गया, जो 10 अगस्त तक चलेगा। इनमें 6 दिन छुट्टी के हैं। अत: सरकार के पास महत्वपूर्ण विधेयक पास करवाने के लिए मात्र 18 दिन ही हैं। संसद के दोनों सदनों में तीन तलाक, भगौड़ा कानून, गैर-कानूनी डिपाजिट स्कीमों पर लगाम लगाने, एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के लिए टर्नओवर के लिहाज से परिभाषा में बदलाव करने वाले विधेयक और विवाह संरक्षण विधेयक आदि समेत 67 विधेयक अटके हुए हैं।

संसद की कार्रवाई पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद पिछले कुछ वर्षों से सदस्यों द्वारा संसद की कार्रवाई में व्यवधान डालने और कार्रवाई न चलने देने का रुझान बहुत बढ़ गया है जिस कारण कभी-कभी तो संसद एक मछली बाजार का रूप धारण कर लेती है।

अब चूंकि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में मात्र 3 सत्र ही बचे हैं, लिहाजा सरकार की कोशिश है कि संसद में लंबित विधेयकों का निपटारा करने के लिए कम से कम बचे-खुचे सत्र तो सुचारू रूप से चल सकें।

इसीलिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद का मानसून सत्र आरंभ होने से एक सप्ताह पूर्व 10 जुलाई को ही सभी सदस्यों से अनुरोध किया था कि वे 16वीं लोकसभा के अंतिम वर्ष में अधिक से अधिक विधायी कार्य सम्पन्न  कराने में योगदान दें तथा अपनी राजनीतिक और चुनावी लड़ाई सदन के बाहर अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लड़ें।

इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 जुलाई को सïर्वदलीय बैठक में सभी विरोधी दलों से संसद के मानसून सत्र को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग की अपील करते हुए कहा कि वे जो भी मुद्दा या समस्या उठाएंगे, सरकार उस पर नियमानुसार चर्चा करवाने के लिए तैयार है।

बैठक के बाद संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने कहा था कि बैठक बहुत अच्छे वातावरण में हुई तथा इसमें कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों ने एकजुट होकर सदन चलाने के लिए पूरा सहयोग देने की बात कही पर आशा के विपरीत पहले की भांति ही संसद का यह सत्र भी हंगामे से ही शुरू हुआ।

सदन में हंगामे के दौरान ही लोकसभा में कांग्रेस तथा तेदेपा ने सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की तथा कांग्रेस के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा ‘‘जो सरकार किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर रही है और हर रोज महिलाओं के रेप की वारदातें हो रही हैं, हम उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखते हैं।’’

राज्यसभा में भाकपा सांसद डी. राजा ने भीड़ की ङ्क्षहसा की घटनाओं और स्वामी अग्निवेश पर हमले को लेकर स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया जबकि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर तेदेपा सांसदों ने हंगामा किया जिसके चलते राज्यसभा कुछ देर के लिए स्थगित कर दी गई।

यही नहीं आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देेने की मांग को लेकर वाई.एस.आर. कांग्रेस ने संसद परिसर के अंदर गांधी भवन के निकट विरोध प्रदर्शन किया। इस सारे हंगामे के बीच विपक्ष द्वारा सरकार के विरुद्ध रखे गए अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया जिस पर शुक्रवार को चर्चा और उसी दिन वोटिंग होगी।

जहां तक सुमित्रा महाजन और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विरोधी दलों से सहयोग की याचना का मामला है, जिस प्रकार की भाषा सत्ताधारी नेता तथा उनके सहयोगी अपने विरोधियों के लिए इस्तेमाल करते आ रहे हैं, ऐसे में विरोधी दलों से सहयोग की आशा रखना निरर्थक ही है।

अत: अविश्वास प्रस्ताव का परिणाम तो चाहे जो भी निकले परन्तु इस सारे घटनाक्रम के पीछे सत्तारूढ़ दल के लिए स्पष्टï संदेश छिपा है कि जिस प्रकार श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय हित के मामलों पर अपने सहयोगियों को जोड़ कर रखा उसी प्रकार भाजपा नेतृत्व भी नाराजगी भूल अपने सहयोगियों को गले लगाकर चले और उनकी नाराजगी दूर करे। इसके साथ ही भाजपा नेतृत्व विरोधी दलों की भी उचित मांगों को यथासंभव स्वीकार करके उनको भी नाराज होने का मौका न दे ताकि देश का शासन सुचारू रूप से चल सके।     —विजय कुमार  

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