‘आंदोलन से जन-जीवन अस्त-व्यस्त’ ‘और किसानों का भी हो रहा नुकसान’

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2024 05:15 AM

people s life is disrupted due to the movement

अपनी मांगें मनवाने के लिए पंजाब, हरियाणा तथा देश के कुछ अन्य भागों में किसानों द्वारा जून, 2020 से शुरू किए गए आंदोलन का पहला चरण 19 दिसम्बर, 2021 को प्रधानमंत्री के आश्वासन के बाद समाप्त कर दिया गया था। परंतु मांगें पूरी न होने के कारण अब यह आंदोलन...

अपनी मांगें मनवाने के लिए पंजाब, हरियाणा तथा देश के कुछ अन्य भागों में किसानों द्वारा जून, 2020 से शुरू किए गए आंदोलन का पहला चरण 19 दिसम्बर, 2021 को प्रधानमंत्री के आश्वासन के बाद समाप्त कर दिया गया था। परंतु मांगें पूरी न होने के कारण अब यह आंदोलन दोबारा शुरू कर दिया गया है तथा आंदोलन के दूसरे चरण में किसान पिछले 71 दिनों से हरियाणा-पंजाब की सीमा पर शंभू बॉर्डर पर धरना लगाए बैठे हैं। इस बारे किसान संगठनों और केन्द्रीय मंत्रियों के बीच वार्ताओं के पांच दौर हो चुके हैं परंतु नतीजा शून्य ही रहा और किसानों का कहना है कि मांगें पूरी होने तक वे यहां से नहीं जाएंगे। किसान आंदोलन-2 के दौरान जहां पुलिस के 2 जवान शहीद हुए हैं वहीं किसान नेताओं का कहना है कि उनके 17 साथियों की जान इस आंदोलन में जा चुकी है। 

पंजाब के ‘संयुक्त किसान ’(गैर राजनीतिक) और ‘किसान मजदूर मोर्चा’ द्वारा अपनी लंबित मांगों बारे जनवरी के अंत में कॉल देने के बाद हरियाणा के ‘भारतीय किसान यूनियन शहीद भगत सिंह संगठन’ ने 13 फरवरी 2024 को दिल्ली जाने के लिए शंभू बॉर्डर पर डेरा डाल दिया था। इस पर हरियाणा की मनोहर लाल सरकार ने पंजाब से हरियाणा में दाखिल होकर दिल्ली जाने वाले सब रास्ते बंद करवा दिए जिसमें अम्बाला का शंभू और खनौरी के बॉर्डर शामिल हैं। इसके बाद किसानों तथा पुलिस के बीच कम से कम तीन बार झड़पें भी हो चुकी र्हैं। 

इस दौरान 28 मार्च को विरोध-प्रदर्शन कर रहे 3 किसानों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लेने से किसानों ने और अधिक आक्रोषित होकर 9 अप्रैल को शंभू बार्डर पर रेलगाडिय़ां रोकने का ऐलान कर दिया। इसे लेकर पंजाब और हरियाणा के प्रशासन ने बातचीत कर गिरफ्तार किसानों की रिहाई के लिए 7 दिन का समय मांगा था, परन्तु जब उनकी रिहाई नहीं हुई तो किसानों ने 17 अप्रैल को शंभू बार्डर पर रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया, जो अभी तक जारी है।  22 अप्रैल को भी शंभू रेलवे ट्रैक पूरी तरह जाम रहने से 107 रेलों का आवागमन प्रभावित हुआ और 45 रेलगाडिय़ां रद्द की गईं। 

इस आंदोलन के कारण अमृतसर, नई दिल्ली, लुधियाना, बठिंडा जैसे प्रमुख शहरों के बीच चलने वाली महत्वपूर्ण रेल सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। 22 अप्रैल तक फिरोजपुर डिवीजन की 494 ट्रेनें प्रभावित हुईं। ट्रेनें रद्द करने के कारण फिरोजपुर डिवीजन द्वारा यात्रियों को लाखों रुपए का रिफंड जारी करना पड़ा। ऐसे हालात के बीच किसान नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर ‘खटकड़’ गांव में 22 अप्रैल को किसान संगठनों की महापंचायत में किसान नेताओं ने कहा कि तीनों गिरफ्तार किसानों को 27 अप्रैल तक रिहा नहीं करने पर दोबारा महापंचायत बुलाकर इस बारे सर्वसम्मति से बड़ा निर्णय लिया जाएगा तथा गिरफ्तार किसानों को रिहा किए जाने तक आंदोलन जारी रहेगा। जहां तक किसानों की मांगों का संबंध है, यह सरकार और उनके बीच का मामला है। आम जनता की सहानुभूति तो शुरू से ही किसानों के साथ रही है और लोगों का कहना है कि सरकार को किसानों की मांगें स्वीकार करके उनकी शिकायतें दूर करनी चाहिएं। 

परन्तु लोगों का यह भी कहना है कि किसानों द्वारा रेलगाडिय़ां रोकने और ट्रैफिक जाम करने जैसे कदमों से रेल एवं सड़क परिवहन बुरी तरह से प्रभावित होने के कारण कठिनाइयां पैदा हो रही हैं तथा विशेष रूप से आसपास के लोगों का जन-जीवन अस्त-व्यस्त होकर रह गया है। इसके साथ ही प्रदर्शन स्थल के आसपास के इलाकों में व्यापार-व्यवसाय की गतिविधियां भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं और वस्तुओं की सप्लाई चेन टूटने के कारण महंगाई भी बढ़ रही है। फसल की कटाई के मौसम में वर्तमान फसल की संभाल तथा अगली फसल की तैयारी करने की बजाय किसान खेतों से दूर धरना-प्रदर्शन करने के लिए विवश हैं जिससे उनका अपना भी नुकसान हो रहा है। यही नहीं, इस चुनावी मौसम में किसानों द्वारा वोट न देने से संबंधित पार्टियों को भी नुकसान होगा, अत: सभी पक्षों को इस विषय में लचीला रवैया अपना कर यह समस्या निपटानी चाहिए ताकि किसान अपने खेतों में वापस लौटें और लोगों को भी इन धरनों-प्रदर्शनों से मुक्ति मिले।—विजय कुमार

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