चंद जजों के आचरण से ‘शीर्ष न्यायालय गुस्से में’

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2024 04:58 AM

top court angry  due to conduct of few judges

न्यायपालिका जहां जनहित से जुड़े मुद्दों और समाज में व्याप्त बुराइयों पर महत्वपूर्ण निर्णय ले रही है, वहीं अपने भीतर भी घर कर गई त्रुटियों को दूर करने में लगी है। इसी शृंखला में पिछले कुछ समय के दौरान सुनाए फैसलों में सुप्रीमकोर्ट एवं उत्तराखंड...

न्यायपालिका जहां जनहित से जुड़े मुद्दों और समाज में व्याप्त बुराइयों पर महत्वपूर्ण निर्णय ले रही है, वहीं अपने भीतर भी घर कर गई त्रुटियों को दूर करने में लगी है। इसी शृंखला में पिछले कुछ समय के दौरान सुनाए फैसलों में सुप्रीमकोर्ट एवं उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मर्यादा के विपरीत आचरण करने वाले चंद जजों तक को नहीं बख्शा, जिसके कुछ उदाहरण निम्न में दर्ज हैं : 

* 12 अप्रैल, 2023 को सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम और पंकज मिथल की पीठ ने कर्नाटक के एक सिविल जज को बर्खास्त करने का आदेश देते हुए कहा कि ‘‘न्यायिक अधिकारी पूरा जजमैंट लिखवाए बिना ओपन कोर्ट में फैसले का निर्णायक हिस्सा नहीं सुना सकते।’’ इस मामले की जांच के दौरान संबंधित सिविल जज ने इस पूरे घटनाक्रम के लिए अपने स्टैनोग्राफर को ही दोषी ठहराकर चुनौती दी थी। माननीय न्यायाधीशों ने गंभीर आरोपों को छिपाने के लिए सिविल जज को फटकार लगाते हुए कहा कि ‘‘आपका आचरण अस्वीकार्य है।’’ 

* 5 जनवरी, 2024 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रुद्रप्रयाग के जिला जज एवं सत्र न्यायाधीश अनुज कुमार संगल को उत्तराखंड हाईकोर्ट का रजिस्ट्रार विजीलैंस रहते हुए अपने आवास पर तैनात एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ‘हरीश अधिकारी’ से अपशब्द बोल कर और उसे नौकरी से हटाने की धमकी देकर प्रताडि़त करने के आरोप में निलम्बित किया। अनुज कुमार संगल पर आरोप है कि कर्मचारियों को नियमित रूप से डांट फटकार कर सुबह 8.00 बजे से रात 10.00 बजे तक और उससे भी अधिक समय तक ड्यूटी को लेकर परेशान किया जाता था और इस प्रताडऩा से ‘हरीश अधिकारी’ इतना दुखी हुआ कि उसने जज के आवास के सामने जहर खा लिया। हाईकोर्ट के अनुसार, ‘‘किसी भी मातहत को तंग करना व सेवा से हटाने की धमकी देना, कर्मचारी की छुट्टी स्वीकृत करने की प्रक्रिया में जानबूझ कर देरी करना, उसका वेतन रोकना व गाली गलौच करना, गलत व्यवहार करना, अपने अधीनस्थ को जहर खाने पर मजबूर कर देना भी अमानवीय आचरण है।’’ 

* 20 मार्च, 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करने वाली टिप्पणी पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की। 
रवि कुमार दिवाकर ने बरेली दंगे के एक आरोपी के विरुद्ध गैर जमानती वारंट जारी करते समय कहा था कि ‘‘धार्मिक व्यक्ति ही योग्य राजा बन सकता है और अच्छे परिणाम दे सकता है, जैसे मुख्यमंत्री योगी।’’ सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने कहा कि किसी न्यायिक अधिकारी से ऐसी आशा नहीं की जा सकती कि वह अपने व्यक्तिगत लगाव का प्रदर्शन अदालत के आदेश में करे।

* 23 अप्रैल, 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने नशे की हालत में अदालत में आने के आरोपी सिविल जज अनिरुद्ध पाठक (52) को बहाल करने से इंकार करते हुए कहा कि न्यायाधीशों को गरिमा के साथ काम करना चाहिए और ऐसा आचरण या व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे न्यायपालिका की छवि प्रभावित हो। 

अनिरुद्ध पाठक ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करके अनुचित व्यवहार के कारण सिविल जज के पद से उसे हटाए जाने तथा कई मौकों पर नशे की हालत में अदालत आने के आरोपों को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति जे.एस. जैन की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘अनिरुद्ध पाठक को सेवा से हटाने का आदेश गलत नहीं पाया गया और न ही बिना सोचे-समझे पारित किया गया।’’ ‘‘यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य नियम है कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को गरिमा के साथ काम करना चाहिए। उन्हें ऐसा आचरण या व्यवहार नहीं करना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की छवि प्रभावित होने की आशंका हो या जो एक न्यायिक अधिकारी के लिए उचित न हो।’’ ‘‘यदि न्यायपालिका के सदस्य ही ऐसा अशोभनीय व्यवहार और आचरण करने लगेंगे तो अदालतें पीड़ितों को कोई राहत नहीं दे सकतीं। इसलिए उनसे आचरण के उच्चतम आदर्शों को बनाए रखने की आशा की जाती है।’’ ऐसी प्रतिबद्धता के लिए इस तरह के फैसले सुनाने वाले न्यायाधीश साधुवाद के पात्र हैं जो इस बात की गारंटी है कि जब तक न्यायपालिका में अपने आदर्शों के प्रति ऐसे निष्ठïावान जज मौजूद रहेंगे, न्यायपालिका इसी प्रकार निष्पक्ष न्याय का झंडा बुलंद करती रहेगी।—विजय कुमार 

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