श्रीलंका सरकार अब तक के सबसे बड़े संकट में

Edited By Updated: 11 Jul, 2022 04:51 AM

sri lankan government in biggest crisis ever

श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन अप्रैल से चल रहे हैं और समय-समय पर वहां हो रही हिंसा के दृश्य सामने आए हैं। लेकिन कुछ भी इतना चिंताजनक नहीं था, जैसा कि शनिवार को देखा गया। जहां प्रधानमंत्री

श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन अप्रैल से चल रहे हैं और समय-समय पर वहां हो रही हिंसा के दृश्य सामने आए हैं। लेकिन कुछ भी इतना चिंताजनक नहीं था, जैसा कि शनिवार को देखा गया। जहां प्रधानमंत्री का घर जला दिया गया था और राष्ट्रपति के आवास में लोगों ने डेरा जमा लिया । स्विमिंग पूल में तैरते हुई या ड्राइंग रूम में बैठी हुई , बोर्ड गेम खेल रही और राष्ट्रपति के बिस्तर पर लेटी हुई भीड़, वायरल हो गई। सवाल उठता है कि यह सब कैसे हुआ? और अब क्या होगा? देश में बिजली कटौती, वस्तुओं, दवाओं तथा ईंधन की कमी के विरुद्ध 3 महीने से जारी ‘गोटा गो होम’ (गोटबाया वापस जाओ) आंदोलन एक विशाल जन आंदोलन में बदल गया। 

इस तरह के हालात के बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में 9 जुलाई को एक बड़ी रैली का आयोजन किया गया। जबकि राष्ट्रपति राजपक्षे एक दिन पहले ही वहां से खिसक गए बताए जाते हैं। वह इस समय कहां हैं इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस दौरान पुलिस के बल प्रयोग के परिणामस्वरूप अनेक लोगों के घायल होने की भी सूचना है। 

कार्यवाहक प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे, जिन्होंने केवल दो महीने पहले पद ग्रहण किया था, ने भी एक सर्वदलीय अंतरिम सरकार को सत्ता संभालने की अनुमति देने के लिए इस्तीफा देने की पेशकश की है। र्ईंधन की भारी कमी के बावजूद हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी देश के ओर-छोर से बसों, रेलगाडिय़ों, ट्रकों और साईकिलों पर सवार हो कर कोलम्बो पहुंचे। सरकार विरोधी प्रदर्शनों में धार्मिक नेताओं के अलावा राजनीतिक दल शिक्षक, प्रमुख खिलाड़ी, किसान, चिकित्सक, मछुआरे और सामाजिक कार्यकत्र्ता आदि सभी शामिल हो गए। 

यही नहीं, नवम्बर 2019 में हुए चुनावों में राष्ट्रपति राजपक्षे को भारी समर्थन देने वाले बौद्ध समुदाय के लोगों तथा बौद्ध भिक्षुओं ने भी राष्ट्रपति गोटबाया के त्यागपत्र पर बल देने के लिए नए सिरे से आंदोलन शुरू कर दिया है। इस प्रदर्शन को सुप्रीम कोर्ट, सेना और पुलिस का भी साथ मिला है। 10 दिन पहले इस आंदोलन का आह्वान किया गया था। सरकार विरोधी प्रदर्शनों को रोकने के लिए 8 जुलाई को राजधानी कोलम्बो और उसके आसपास के इलाकों में कफ्र्यू लगा दिया गया लेकिन श्रीलंका में वकीलों, मानवाधिकार समूहों और राजनीतिक दलों के लगातार बढ़ते दबाव के कारण प्रशासन को कफ्र्यू हटाना पड़ा। 

इस प्रदर्शन को रोकने के लिए 7 जुलाई को पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर न्यायपालिका से हस्तक्षेप करने तथा इस प्रदर्शन पर रोक लगाने का अनुरोध किया था परंतु अदालत द्वारा इसे अस्वीकार कर देने से विरोध प्रदर्शन का रास्ता खुल गया। देर रात्रि एक संदेश के माध्यम से संसदीय स्पीकर महिंदा यापा ने कहा कि चारों ओर से घिर चुके राष्ट्रपति 13 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा देंगे और शांतमयी ढंग से सत्ता के हस्तांतरण को यकीनी बनाएंगे। 

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद, संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने के श्रीलंका के संविधान के अनुसार कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने की उम्मीद है। श्रीलंका के चीफ आफ डिफैंस स्टाफ जनरल शविंद्रा सिल्वा ने कहा है कि वर्तमान राजनीतिक संकट से निपटने के लिए एक शांतमयी मौका है। वहीं विपक्षी नेताओं का दावा है कि अंतरिम सरकार बनाने के लिए उनके पास संसदीय बहुमत है। 

भारत और जापान जैसे देशों ने श्रीलंका की तात्कालिक सहायता की है। भारत के विदेशमंत्री जयशंकर ने  कहा है कि भारत श्रीलंका के साथ है और देश में कोई शरणार्थी संकट नहीं है। उधर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) ने कहा है कि श्रीलंका के आॢथक संकट पर वह अपनी गहरी नजर टिकाए हुए है। सवाल यह उठता है कि आखिर श्रीलंका में ऐसी स्थिति क्यों उपजी। इस सारे संकट के पीछे राजपक्षे परिवार की भाई-भतीजावाद की नीति भी जिम्मेदार है। पिछले दो दशकों में श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार का दबदबा रहा है और हाल के वर्षों में, इसने एक पारिवारिक व्यवसाय के रूप में द्वीपीय राष्ट्र की सरकार को तेजी से चलाया है। 

राजपक्षे सरकार ने चीन को अपने साथ लाने की कोशिश की और भारत विरोधी स्टैंड लिया। लोगों के सामने चीन का भी असली चेहरा सामने आया है, जो श्रीलंका को ऋण के बोझ तले दबाना चाहता था। इसके अलावा सरकार ने आर्गेनिक खेती को प्रोत्साहित करने की भी कोशिश की। आर्गेनिक खेती के चक्कर में पूरी कृषि व्यवस्था ही प्रभावित हुई। कोविड महामारी से निपटने में भी राजपक्षे सरकार पूरी तरह से नाकाम हुई।

ऐसे में चिंता की बात यह है कि इतने भारी संकट के दौरान आखिर राष्ट्रपति ने तत्काल प्रभाव से सत्ता छोडऩे का निर्णय क्यों नहीं लिया। उन्होंने 13 तारीख तक का इंतजार क्यों किया और अब भी अपना पद छोडऩे को तैयार नहीं हैं। कुल मिलाकर आज श्रीलंका सरकार पल-पल बदल रहे हालात के बीच अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है और अगले ही पल वहां क्या हो जाएगा कहना मुश्किल है।

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