हिंदू साम्प्रदायिकता के विरुद्ध थे स्वामी विवेकानंद

Edited By ,Updated: 11 Jul, 2023 06:49 AM

swami vivekananda was against hindu communalism

स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो की विश्व धर्म महासभा में 11 सितम्बर 1893 को दिए भाषण को याद कर हर हिंदू और हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है।

स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो की विश्व धर्म महासभा में 11 सितम्बर 1893 को दिए भाषण को याद कर हर ङ्क्षहदू और हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है। उस भाषण को विश्व पटल पर हिंदू धर्म और संस्कृति के मान-सम्मान के उद्घोष के रूप में याद किया जाता है लेकिन बहुत कम लोग दरअसल जानते हैं कि उन्होंने शिकागो में हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा में कहा क्या था। अपने ऐतिहासिक भाषण की शुरूआत में ही स्वामी जी कहते हैं, ‘‘मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की शिक्षा दी है।

हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ित और शरणाॢथयों को आश्रय दिया है।’’ जिस धर्म सभा में बाकी सब धर्मों के गुरु दूसरे धर्मों पर अपने धर्म विशेष की श्रेष्ठता साबित करने की कोशिश कर रहे थे, वहीं स्वामी जी ने सभी धर्मों के सच को स्वीकार करना ही हिंदू धर्म की विशिष्टता बताकर अपनी संस्कृति को इस प्रतिस्पर्धा से ऊपर खड़ा कर दिया, दुनिया के हर धर्म के मर्म को जोडऩे का एक सूत्र थमा दिया।

यह था स्वामी विवेकानंद के जादू का रहस्य। इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ऐसे  चिंतक की विरासत का दो वैचारिक और राजनीतिक खेमों ने अपनी नासमझी और चालाकी से सत्यानाश कर दिया है। एक तरफ अपने आप को आधुनिक और सैकुलर बताने वाले खेमे ने (हालांकि नेहरू इसका अपवाद थे) स्वामी जी की विरासत से सिर्फ इसलिए कन्नी काटनी शुरू की क्योंकि वह ङ्क्षहदू धर्म की परंपरा के वाहक थे और निसंकोच ङ्क्षहदू धर्म दर्शन और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते थे।

दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा सहित संघ परिवार के तमाम संगठनों ने स्वामी विवेकानंद की विरासत पर नाजायज कब्जा जमा कर उनके विचारों का इस्तेमाल अपनी ओछी साम्प्रदायिक राजनीति के लिए करना शुरू किया। ङ्क्षहदू धर्म की विशिष्टता को हिंदू धर्म की श्रेष्ठता बताकर दूसरे धर्मावलंबियों पर दादागिरी करने की राजनीति के लिए स्वामी विवेकानंद को ढाल बनाना शुरू किया।

मुझे यह देखकर बहुत संतोष हुआ कि हाल ही में स्वामी विवेकानंद के दर्शन पर प्रकाशित हुई एक पुस्तक में स्वामी जी की विरासत को हड़पने की इस कोशिश का खंडन किया गया है। 
‘संघ परिवार की सर्वोपरि प्रतिमूर्ति (आइकन) ही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप (नेमेसिस) है।’ यानी कि जिस स्वामी विवेकानंद को संघ परिवार ‘हिन्दुत्व’ के प्रतीक के रूप में पेश करता है, उनके विचार ही संघ परिवार के खिलाफ सबसे बड़ा औजार हैं, नफरत की राजनीति की सबसे असरदार काट हैं।

485 पृष्ठों की इस पुस्तक में लेखक ने बहुत विस्तार और बारीकी से स्वामी विवेकानंद के जीवन, दर्शन और उनके ऐतिहासिक संदर्भ की व्याख्या करते हुए यह स्थापित किया है कि आज ‘हिंदुत्व’ के नाम पर जो कुछ चल रहा है, उससे स्वामी विवेकानंद की बुनियादी असहमति थी। दिक्कत यह है कि भगवाधारी ङ्क्षहदू स्वामी की तस्वीर देखते ही हमारे जहन में एक छवि बन जाती है लेकिन यह पुस्तक बताती है कि स्वामी विवेकानंद का जीवन और आचरण उस छवि से मेल नहीं खाता है।

एक संन्यासी होने के नाते स्वामी जी ने ब्रह्मचर्य व्रत और धन संपत्ति से मुक्त रहने का धर्म पूरी तरह निभाया। लेकिन उन्हें जीवन के रसस्वादन से कोई परहेज नहीं था। हिंदू धर्म के कर्मकांड और पोंगा पंडितों से स्वामी जी को सख्त नफरत थी। इन कर्मकांडों से तंग आकर स्वामी जी ने कहा था, ‘‘अपने सारे धर्म ग्रंथ गंगा में फैंक दो और पहले लोगों को रोटी और कपड़ा हासिल करने की विधि सिखाओ।’’

स्वामी विवेकानंद की आड़ लेकर गैर-हिंदुओं खासतौर पर ईसाइयों और मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार करने वालों को यह पुस्तक याद दिलाती है कि स्वामी जी का स्वयं ईसाई धर्म के प्रति कितना अनुराग था और ईसा मसीह में कितनी आस्था थी। एक भिक्षु की तरह देशाटन करते समय स्वामी जी के पास केवल दो ही पुस्तकें थीं-भगवद् गीता और ‘इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट’।  यीशू मसीह के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘अगर मैं जीसस के समय जीवित होता तो अपने आंसुओं से ही नहीं, बल्कि अपने जिगर के खून से मैं उनके पांव धोता।’’

स्वामी विवेकानंद ने बार-बार इस्लाम के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने इस धारणा का खंडन किया कि भारतीय सभ्यता का पतन मुस्लिम अतिक्रमण के कारण हुआ। स्वामी जी की मान्यता थी कि भारतीय सभ्यता का पतन मुस्लिम राज शुरू होने से पहले ही हिंदू समाज की ऊंच-नीच और अंतर्मुखी प्रवृत्ति के कारण हो चुका था। वह कहते हैं कि भारतीय समाज का पतन उस दिन तय हो चुका था जिस दिन उसने ‘मलेच्छ’ शब्द गढ़कर बाहरी लोगों  से संवाद तोड़ लिया।

इस्लाम में भाईचारे और समता की प्रशंसा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि हिंदुओं को भले ही अद्वैत दर्शन तक पहुंचने का श्रेय दिया जा सकता हो, लेकिन व्यवहार में हिंदुओं ने अद्वैत दर्शन का पालन कभी नहीं किया। अगर दुनिया में कोई भी धर्म हुआ है जो अद्वैत दर्शन की समता के आदर्श के नजदीक पहुंच सका है तो वह केवल इस्लाम है। ऐसे सार्वभौम दार्शनिक को केवल एक सम्प्रदाय विशेष का महापुरुष बना देना और उनके नाम पर दूसरे धार्मिक सम्प्रदायों के खिलाफ धर्मांधता की राजनीति करना स्वामी विवेकानंद की विरासत का अपमान है।

अगर आज स्वामी विवेकानंद हमारे बीच होते और ङ्क्षहदू धर्म के नाम पर लिंचिंग, बुलडोजर, दूसरे धर्मावलंबियों पर दबदबा और बहुमत की दादागिरी देख रहे होते तो वह निश्चित ही इसके खिलाफ खड़े होकर वही कहते जो उन्होंने शिकागो में कहा था,  ‘‘साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी विभीत्स वंशधर धर्मांधता इस सुंदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज कर चुकी हैं। पर अब उनका अंत समय आ गया है और मैं हृदय से आशा करता हूं कि  समस्त धर्मांधता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होने वाले सभी उत्पीडऩों का, तथा मानवों की पारस्परिक कटुताओं का मृत्यु निनाद हो।’’ -योगेन्द्र यादव

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!