सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे

Edited By Pardeep,Updated: 17 Aug, 2018 04:17 AM

the most popular prime minister is not shri atal bihari vajpayee

15 अगस्त को जब देश स्वतंत्रता के 72वें वर्ष में प्रवेश की खुशियां मना रहा था उस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी वैंटीलेटर पर पड़े दम तोड़ रहे थे। एम्स ने 15 अगस्त रात को एक विज्ञप्ति में कहा कि, ‘‘दुर्भाग्यवश उनकी हालत बिगड़ गई है’’  और अगले ही दिन 16...

15 अगस्त को जब देश स्वतंत्रता के 72वें वर्ष में प्रवेश की खुशियां मना रहा था उस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी वैंटीलेटर पर पड़े दम तोड़ रहे थे। एम्स ने 15 अगस्त रात को एक विज्ञप्ति में कहा कि, ‘‘दुर्भाग्यवश उनकी हालत बिगड़ गई है’’  और अगले ही दिन 16 अगस्त को शाम 5.05 बजे यह मनहूस खबर आ गई कि श्री वाजपेयी नहीं रहे। वह एक राजनीतिज्ञ के अलावा कवि तथा श्रेष्ठï वक्ता भी रहे और मेरे जैसे लोग भी उन्हें सुनने के लिए हमेशा लालायित रहते थे। उनमें लोगों को अपने साथ जोडऩे की अद्भुत क्षमता थी। 

श्री वाजपेयी की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि फरवरी, 1987 में आतंकवादियों ने पंजाब के औद्योगिक शहर बटाला की घेरेबंदी कर दी। आवश्यक खाद्य वस्तुओं का अभाव हो गया। 18 दिन कफ्र्यू लगा रहा और बच्चे भूख से दूध के लिए तरसने लगे तभी मैंने भाजपा नेता श्री कृष्ण लाल जी से श्री वाजपेयी को बटाला लाने के लिए कहा। श्री वाजपेयी तुरंत इसके लिए तैयार हो गए और मेहता चौक के रास्ते होते हुए  ही बटाला गए और उनके जाते ही घेराव समाप्त हो गया।वह हमेशा अपने देश के विकास के लिए चिंतित रहे और सदा सड़कों को चौड़ा करने, नदियों को जोडऩे आदि विकासात्मक कार्यों के लिए प्रयत्नशील रहे। विदेशों से संबंध सामान्य करने के लिए उन्होंने अनेक देशों की यात्राएं कीं और इसी शृंखला में पाकिस्तान भी गए। श्री वाजपेयी को इस बात का श्रेय जाता है कि उनके शासनकाल में महंगाई न्यूनतम स्तर पर रही। उन्होंने भारतीय राजनीति को गठबंधन का मर्म समझाया और 26 पार्टियों को लेकर गठबंधन बनाया और उसे सफलतापूर्वक चलाया।

11 मई, 1998 को श्री वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किए और उनके इस फैसले का सिवाय इसराईल के किसी भी देश ने समर्थन नहीं किया तथा जापान, अमरीका व चंद अन्य प्रमुख देशों ने नाराज होकर भारत पर विभिन्न  प्रतिबंध लगा दिए। लेकिन श्री वाजपेयी ने इसकी परवाह नहीं की और भारत को परमाणु महाशक्ति बनाकर ही छोड़ा। ‘भारत रत्न’ से विभूषित श्री वाजपेयी को किसी भी किस्म के विवाद में पडऩा पसंद नहीं था। 2002 में जब उन्हें सरकार द्वारा पैट्रोल पंपों के आबंटन में घोटाले का पता चला, जिसमें भाजपा के लोग भी शामिल थे, तो उन्होंने तत्काल सभी पैट्रोल पम्पों की अलाटमैंट रद्द करने का आदेश दे दिया। 

मुझे श्री वाजपेयी के साथ अनेक बार विदेश यात्राएं करने का अवसर मिला और जब भी वहां मुलाकात होती तो वह हमेशा यही कहते कि कहीं कोई कमी हो तो बताओ। जब हम यह कहते कि सब ठीक है तो वह हमेशा यह कहते कि तुम सच नहीं बोल रहे। ऐसे ही एक मौके पर जब मैं उनके साथ विदेश यात्रा कर रहा था तो हमारा विमान दुबई में रुका। वहां हमने शेखों को अपने पारंपरिक परिधान में घूमते हुए देखा तो श्री वाजपेयी को पाश्चात्य परिधान में देख कर मेरे मुंह से निकल गया कि इन शेखों ने तो अपना पारंपरिक परिधान नहीं छोड़ा परंतु आप ने कोट-पैंट पहन रखा है। इस पर उन्होंने तपाक से कहा कि यह अंतिम बार है और उसके बाद उन्होंने कभी भी पाश्चात्य परिधान नहीं पहना। संयुक्त राष्टï्र में भी 1977 में हिन्दी में भाषण देकर राष्टï्र भाषा को गौरवान्वित करने वाले वह प्रथम भारतीय नेता हैं। 

एक बार मैं दिल्ली में श्री वाजपेयी के प्रैस सचिव श्री अशोक टंडन का संदेश मिलने पर उनसे मिलने गया। उन दिनों 2003 में तीन राज्यों में जीत से उत्साहित होकर राजग सरकार ने एकदम लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी थी और इसके नेता अपने प्रचार अभियान में ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा देकर इसी का राग अलापने में लगे थे। जब मैंने उनसे इसकी चर्चा की तो उन्होंने कहा कि ‘‘कहां है इंडिया शाइङ्क्षनग? अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है।’’  मुझे याद है कि 2002 में जब देश में अनाज सड़ रहा था तो मैंने तत्कालीन खाद्य मंत्री श्री शांता कुमार से इस संबंध में कहा कि इसे बेच देना चाहिए। शांता जी ने इस संबंध में श्री वाजपेयी से बात की जिस पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में कैबिनेट बैठक बुलाने की आवश्यकता नहीं है। इसे बेच दो और तत्काल ही फालतू अनाज बेच दिया गया। 

‘पंजाब केसरी ग्रुप’ द्वारा संचालित राहत वितरण समारोहों में भाग लेने के लिए वह चार बार जालंधर आए। पहली बार 3 फरवरी, 1985 को और दूसरी बार 23 नवम्बर, 1997 को। तीसरी बार 12 मई, 1999 को और चौथी बार वह 6 फरवरी, 2000 को ‘शक्ति कारगिल’ फंड लेने के लिए जालंधर आए थे। 3 फरवरी, 1985 को शहीद परिवार फंड के सहायता वितरण समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘‘शहीद परिवार अकेले नहीं। सारा समाज उनके साथ है। मैं हिंद समाचार प्रकाशन और इसके संचालकों की इस बात के लिए सराहना करता हूं जिन्होंने श्री रमेश चंद्र जी की शहादत के बाद भी उनका शुरू किया हुआ काम जारी रखा हुआ है।’’ 

शहीद परिवार फंड के 23 नवम्बर, 1997 को आयोजित समारोह में श्री वाजपेयी ने राजनीतिज्ञों को आगाह किया कि, ‘‘उन्हें राजनीति को कुर्सी का खेल नहीं बनाना चाहिए क्योंकि जब राजनीति दूषित और विकृत होती है तो इससे सारे देश का माहौल खराब हो जाता है। इससे नई-नई समस्याएं उभर कर सामने आती हैं जिनका कई बार हल निकालना कठिन हो जाता है।’’ फिर 12 मई, 1999 को प्रधानमंत्री राहत कोष ‘शक्ति’ की 77 लाख रुपए की रकम प्राप्त करने जालंधर आए श्री वाजपेयी ने कहा कि, ‘‘भारत किसी भी देश पर हमला नहीं करेगा परंतु किसी अन्य को अपने ऊपर हमला करने की अनुमति भी नहीं देगा। इसके लिए जरूरी है कि भारत को शक्तिशाली और आत्मनिर्भर बनाया जाए। देश को शक्तिशाली बनाने के लिए आधुनिक शस्त्रों से लैस तथा सेना के साथ देशभक्त जनता का खड़ा होना जरूरी है।’’ 

चौथी बार श्री वाजपेयी 6 फरवरी, 2000 को ‘पंजाब केसरी’ द्वारा शुरू किए गए ‘प्रधानमंत्री राहत कोष कारगिल’ में एकत्रित 10 करोड़ 34 लाख की राशि प्राप्त करने के लिए जालंधर आए। उल्लेखनीय है कि इस फंड के लिए लोगों ने लाइनों में खड़े होकर पैसे दिए और लोगों का कहना था कि वाजपेयी जी ने कारगिल का युद्ध जीत कर देश का नाम ऊंचा किया है। इस तरह की बहुत यादें हैं जो आज श्री वाजपेयी के संदर्भ में याद आ रही हैं। काश यदि उन्हें पांच वर्ष और मिले होते तो देश का चेहरा बदला हुआ होता। उन जैसे दूरदर्शी और कर्मठ नेता के जाने से देश की राजनीति में जो शून्य पैदा हुआ है वह कभी भरा नहीं जा सकेगा।—विजय कुमार 

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