देश की सबसे पुरानी पार्टी अकाली दल के सामने वजूद बचाने का संकट

Edited By Updated: 18 Mar, 2022 06:36 AM

akali dal the oldest party of the country is facing the crisis of survival

14 दिसम्बर, 1920 को गठित शिरोमणि अकाली दल आज दिल्ली से लेकर पंजाब तक बुरे दौरे से गुजर रहा है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में पंजाब के वोटरों ने अकाली दल का साथ छोड़ा...

14 दिसम्बर, 1920 को गठित शिरोमणि अकाली दल आज दिल्ली से लेकर पंजाब तक बुरे दौरे से गुजर रहा है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में पंजाब के वोटरों ने अकाली दल का साथ छोड़ा तो आज दिल्ली में अकाली दल के टिकट पर जीते दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के 2 दर्जन से अधिक सदस्यों ने पार्टी छोड़ दी। 

कहते हैं कि दिल्ली के गुरुद्वारों और उनकी संपत्तियों को बचाने के लिए 1970 में शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली में 9 महीने तक मोर्चा लगाया था। इस दौरान अकाली दल के करीब 18,000 कार्यकत्र्ता गिरफ्तार हुए। संत फतेह सिंह, प्रकाश सिंह बादल, सुखदेव सिंह ढींडसा, मोहन सिंह तूड़, गुरचरण सिंह टोहरा, जगदेव सिंह तलवंडी, जत्थेदार संतोष सिंह आदि चॢचत नेता भी जेल गए। इन्हें दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की जेलों में रखा गया। जेलें भरने के बाद उत्तर प्रदेश की आगरा और बनारस की जेलों में डाला गया। इस बीच 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के चलते 96,000 पाकिस्तानी फौज ने सरैंडर किया। उन्हें रखने के लिए जेलों में जगह नहीं थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अकाली दल से अपील की कि वह मोर्चा वापस ले और जेलें खाली करे। गांधी गुरुद्वारा एक्ट बनाने को तैयार हो गईं। 

इसके बाद 1971 में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का एक्ट बनाया गया। 1975 में पहला चुनाव एक्ट के अनुसार करवाया गया। जत्थेदार संतोष सिंह की अगुवाई में चुनाव लड़ा गया। कहते हैं कि 46 में से 42 सीटें शिरोमणि अकाली दल को मिलीं। 1979 में फिर चुनाव हुआ। इसके बाद पंजाब में आतंकवाद एवं सिख दंगों के चलते 16 साल तक चुनाव नहीं हुआ। 1995 में चुनाव करवाया गया और परमजीत सिंह सरना एवं मंजीत सिंह जी.के. पहली बार सदस्य बने। इस बीच सरना व अकाली दल के बीच टकराव हो गया। सरना ने अपनी नई पार्टी शिरोमणि अकाली दल दिल्ली की स्थापना की। 

2002 में चुनाव हुआ और परमजीत सिंह सरना ने अपने दम पर 29 से अधिक सीटें जीतीं। 2007 में फिर चुनाव हुआ। इस बार कुल 3 पार्टियां मैदान में थीं। मंजीत सिंह जी.के. की अकाली दल पंथक को 6 सीटें मिलीं, अकाली दल बादल को 12 सीटें और 28 सीटों पर सरना दल ने जीत दर्ज की। 2013 के चुनाव में मंजीत सिंह जी.के. की अगुवाई में अकाली दल बादल ने 37 सीटें जीतीं। 2017 में पार्टी फिर 35 सीटों के साथ रिपीट हुई। अब 2022 के गुरुद्वारा चुनाव में भी अकाली दल बादल 27 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा और लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुआ। कहते हैं कि कितने भी बुरे दौर क्यों न हों, पार्टी का वोट बैंक 32 से 35 प्रतिशत के बीच कायम रहता है। 

दिल्ली में एक और धार्मिक पार्टी का जन्म : शिरोमणि अकाली दल बादल के टिकट पर गुरुद्वारा चुनाव जीते सदस्यों ने मिलकर आज एक नई धार्मिक पार्टी बना ली। पार्टी का नाम शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली स्टेट) है। कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका इसके मुख्य संरक्षक हैं, जबकि एम.पी.एस. चड्ढा अध्यक्ष, भजन सिंह वालिया और हरविंदर सिंह के.पी. संरक्षक बनाए गए हैं। 

पार्टी के नेताओं का दावा है कि यह सिख कौम के धार्मिक मामलों के लिए पंथक परंपराओं के मुताबिक काम करेगी। पार्टी की कोर कमेटी सहित संगठनात्मक ढांचे को मुकम्मल करने के लिए 5 सदस्यीय कमेटी बनाई गई है, जो 10 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी। इस कमेटी में आत्मा सिंह लुबाणा, बलबीर सिंह विवेक विहार, अमरजीत सिंह पप्पू, अमरजीत सिंह पिंकी और हरविंदर सिंह के.पी. को शामिल किया गया है। 

1984 पर भी फिल्म बनाने की उठी मांग : कश्मीरी पंडितों के दर्द और मुसीबतों को दर्शाती फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तरह 1984 सिख विरोधी दंगों को लेकर भी फिल्म बने, इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी के सिख नेता मनजिंदर सिंह सिरसा सरगर्म हो गए हैं। सिरसा ने इसे लेकर मामला उठा दिया है। उन्होंने फिल्म मेकर्स से अपील की है कि जैसे आपने दुनिया को कश्मीरी पंडितों के पलायन और उनके कष्टों का कटु सच दिखाया है, ठीक उसी तरह ‘1984 फाइल्स’ भी बनाई जानी चाहिए, ताकि कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं के कृत्यों को दुनिया के सामने लाया जा सके। 

सिख कर्मचारियों को कृपाण ले जाने की अनुमति : केंद्र सरकार ने सिख नववर्ष के शुभारंभ पर सिखों को एक बड़ा तोहफा दिया है। अब वे हवाई अड्डा परिसर के भीतर व्यक्तिगत रूप से कृपाण लेकर जा सकते हैं। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के विमानन सुरक्षा नियामक बी.सी.ए.एस. ने यह अनुमति दी है। सरकार के इस फैसले से सिखों में खुशी की लहर है।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 

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