‘सफलता या विफलता’ की सारी जिम्मेदारी मोदी पर

Edited By ,Updated: 03 Jun, 2020 12:15 PM

all responsibility of  success or failure  on modi

यदि आप उनकी उत्कृष्टता को नहीं पहचान सकते हो तो फिर उनकी सांडों के साथ लड़ाई कराआे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष के सम्पन्न होने पर उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों और आंकड़ों पर नजर डालने पर यह सच्चाई सामने आती है। हालांकि आंकड़े...

यदि आप उनकी उत्कृष्टता को नहीं पहचान सकते हो तो फिर उनकी सांडों के साथ लड़ाई कराआे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष के सम्पन्न होने पर उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों और आंकड़ों पर नजर डालने पर यह सच्चाई सामने आती है। हालांकि आंकड़े विश्वसनीय संख्याआें से प्राप्त अविश्वसनीय तथ्य हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपने वाक कौशल से आपको प्रभावित कर सकते हैं और आपको अच्छे दिन की एक नई व्यवस्था का सपना दिखाते रहते हैं किन्तु संदेश स्पष्ट होना चाहिए। यदि उनके पहले कार्यकाल में स्वच्छ भारत और मेक इन इंडिया पर बल दिया गया तो अब इस कार्यकाल में आत्मनिर्भर और गो वोकल ऑन लोकल पर बल दिया गया है। 

नमो निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। वस्तुत: वे इंदिरा गांधी के बाद सबसे स्मार्ट राजनेता हैं और उन्होंने दो बार पूर्ण बहुमत से विजय प्राप्त की है। वे स्वयं को संरक्षक और विकास स्वरूप प्रस्तुत करते हैं तथा लुटियन लॉबी और खान मार्कीट गैंग को नापसंद करते हैं। उनकी 56 इंच की छाती के व्यक्तित्व का निर्माण उनके वाक् कौशल, निर्णय लेने की क्षमता और आम आदमी के साथ जुडऩे की क्षमता के आधार पर हुआ है और शायद इसीलिए वे वन मैन रॉक बैंड की तरह शासन चला रहे हैं और सारी शक्तियां प्रधानमंत्री कार्यालय में सीमित हो गई हैं। 

आज विपक्ष खंडित, दिशाहीन और नेतृत्वविहीन है और वह मोदी के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष के समापन पर भी भाजपा का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। मोदी टी.वी. चैनलों, सोशल और डिजीटल मीडिया में छाए हुए हैं और वे निरंतर बदलाव की दिशा में प्रयासरत हैं। किंतु जब आप उनकी सरकार की बैलेंस शीट बनाते हो तो क्या प्रधानमंत्री इस स्थिति को नकार सकते हैं कि स्थिति यथावत बनी हुई है। क्या मोदी अपने इस वायदे को पूरा करने में सफल हुए हैं कि साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है? क्या वे समावेशी विकास लाने में सफल हुए हैं? क्या उन्होंने अल्पसंख्यकों में विश्वास जगाया है? वे रोजगार के अवसर, विकास, अवसंरचना विकास, अच्छी शिक्षा और यहां तक कि अच्छे दिन कहां हैं या उनके विरोधियों की मानें जो मोदी को एक कट्टरवादी पार्टी का नेता मानते हैं। 

महामारी ने यह उजागर किया कि भारत दो मोर्चों पर संकट से घिरा हुआ है। स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था और दोनों ही मामलों में संकट से उबरने के लिए सरकार की तैयारी नहीं देखी गई। हमारे देश में उदासीनता, भ्रष्टाचार के कारण स्वास्थ्य अवसंरचना जर्जर हालत में है। स्वास्थ्य सुविधाआें पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1 प्रतिशत खर्च किया जाता है जिसके चलते स्वास्थ्य सुविधाएं आई.सी.यू. में हैं। जबकि सरकार कह रही है कि आल इज वैल। देश में 6 लाख से अधिक डॉक्टरों और लाखों नर्सों की कमी है। देश में 10189 मरीजों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर और 2046 व्यक्तियों पर एक बिस्तर उपलब्ध है तथा 90343 लोगों पर एक सरकारी अस्पताल है। 130 करोड़ लोगों के उपचार के लिए केवल 10 लाख एलोपैथिक डाक्टर हैं और 70 करोड़ लोगों को विशेषज्ञ डाक्टरों की सेवाएं प्राप्त नहीं हैं क्योंकि 80 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टर शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। 

हैरानी की बात है कि मोदी सरकार को अभी विकास के मुख्य मुद्दों पर ध्यान देना है। इसके अलावा रोजगार, कानून और व्यवस्था, महिलाआें और बच्चों के विरुद्ध अपराधों को रोकना, महंगाई, अशिक्षा, बीमारी आदि पर ध्यान देना है जोकि रोटी, कपड़ा और मकान उपलब्ध कराने के वायदे की कसौटी हैं। हमारे देश में मोबाइल फोन हर हाथ में बजता दिखाई देगा किंतु फिर भी लोग भीख मांग रहे हैं। सरकार की सबसे बड़ी विफलता यह है कि उसका आकर्षक नारा न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन कहीं भी देखने को नहीं मिल रहा है। इसके अलावा मोदी द्वारा कट्टर हिन्दू ब्रिगेड पर अंकुश न लगाने के कारण राजनीतिक असंतोष व्याप्त है। 

शिक्षा के भगवाकरण के बारे में कम ही कहा जाए तो अच्छा है। राजनीतिक दृष्टि से क्या मोदी भारत में बदलाव ला सकते हैं। निश्चित तौर पर वे जादूगर नहीं हैं कि वे जादू की छड़ी घुमाकर भारत में 70 वर्षों से चली आ रही समस्याआें को तुरंत हल कर दें। इसके लिए उन्हें अपनी इस बात को ध्यान में रखना होगा कि राजनीति का वास्तविक अर्थ सत्ता नहीं अपितु सेवा है।  उन्हें हमारी व्यवस्था में एक नई जान फूंकनी होगी और लोकतांत्रिक संस्थाआें को मजबूत करना होगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी और उनकी हिन्दुत्व ब्रिगेड उदासीन नहीं रह सकती क्योंकि युवा पीढ़ी अपने लिए बेहतर भविष्य की मांग कर रही है। 

समय आ गया है कि वे ऑल इज वैल कहकर अपना पल्ला न झाड़ें। गो वोकल फोर लोकल और आत्मनिर्भरता की बातों से भूखे पेट नहीं भरेंगे। सभी को रोटी, कपड़ा, मकान और नौकरी चाहिए। जब तक सबका साथ और विश्वास न हो विकास के  अच्छे दिन नहीं आएंगे। कुल मिलाकर उनके समक्ष चुनौतियां कठिन हैं। समय आगे बढ़ता जा रहा है। कुशल मोदी को अपने वायदों को पूरा करना होगा। उन्हें ट्विटर, यू-ट्यूब, सोशल नैटवर्किंग साइट्स और मन की बात द्वारा पैदा की गई अपेक्षाआें को पूरा करना होगा। नि:संदेह उन्होंने राजनीति की एक नई परिभाषा दी है और बदलाव का वायदा किया है। किन्तु प्रश्र उठता है कि क्या मोदी लोकतंत्र की भाषा का पुनॢनर्माण कर सकते हैं क्योंकि लोकतंत्र का निर्माण नेता नहीं लोग करते हैं।   

-पूनम आई कौशिश
pk@infapublications.com 

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