अपराधियों से निपटने में विफल नीतीश सरकार देगी हथियार लाइसैंस

Edited By Updated: 01 Jul, 2025 05:22 AM

nitish government failed to deal with criminals will give arms license

राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, इससे बेशक राज्य का चाहे कितना ही नुकसान क्यों न हो। बिहार जैसा प्रदेश जो एक दौर में नस्लवाद और जातीय ङ्क्षहसा के लिए कुख्यात रहा, अब भी अपराधों के मामले में पीछे नहीं है। बिहार में सत्ता...

राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, इससे बेशक राज्य का चाहे कितना ही नुकसान क्यों न हो। बिहार जैसा प्रदेश जो एक दौर में नस्लवाद और जातीय ङ्क्षहसा के लिए कुख्यात रहा, अब भी अपराधों के मामले में पीछे नहीं है। बिहार में सत्ता में कोई भी राजनीतिक दल रहा हो, अपराधों से सभी का गहरा रिश्ता रहा है। बिहार में कानून-व्यवस्था हमेशा से एक चुनौती रही है। हालात ये हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार अपराध और अपराधियों पर लगाम लगाने में नाकाम रही है। इसका सरकार ने आसान विकल्प खोज लिया है। वह यह है कि अब मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य जैसे जनप्रतिनिधि आत्मरक्षा के लिए लाइसैंसी हथियार रख सकेंगे जिससे लगभग अढ़ाई लाख जनप्रतिनिधियों को फायदा मिलेगा। 

राज्य के गृह विभाग ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को इस संबंध में आवेदनों की प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश जारी किया है। बिहार में आगामी चंद महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नीतीश सरकार के इस फैसले को चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। बिहार सरकार ने यह फैसला राज्य में पंचायत प्रतिनिधियों पर हमले और हत्याओं की बढ़ती घटनाओं के कारण लिया है। इसके विपरीत सच्चाई यही है कि ऐसा करके नीतीश सरकार ने ग्रामीण जनप्रतिनिधियों को साधने की कोशिश की है। यदि नीतीश कुमार के इस फैसले को पंचायत प्रतिनिधियों की सुरक्षा के हित में भी माना जाए तब भी यह प्रदेश में अपराध की हालत को दर्शाता है। जिस प्रदेश में जनप्रतिनिधि ही सुरक्षित नहीं हैं, वहां आम अवाम की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा। सवाल यह भी है कि लाखों की संख्या में हथियारों के लाइसैंस देने से क्या राज्य में ङ्क्षहसा में बढ़ौतरी नहीं होगी? बिहार में यदि पुलिस तंत्र प्रभावी और मजबूत होता तो यह नौबत नहीं आती कि लाखों जनप्रतिनिधियों को हथियारों के लिए लाइसैंस दिया जाए। इससे जाहिर है कि मुख्यमंत्री नीतीश ने अपराध और अपराधियों पर नकेल कसने की बजाय हथियारों के लाइसैंस देने का आसान विकल्प चुना है। बड़ा सवाल यह भी है कि जनप्रतिनिधि अपनी सुरक्षा हथियारों से कर लेंगे, किन्तु प्रदेश की अवाम का क्या होगा। 

मुख्यमंत्री नीतीश का यह फैसला दर्शाता है कि बिहार में कानून-व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है।  बिहार में पिछले 10 वर्षों में राज्य में फर्जी शस्त्र लाइसैंस, अवैध बंदूकों और गोला व बारूद की अनधिकृत तौर पर बिक्री बढ़ी है और यह प्रदेश में बढ़ रही ङ्क्षहसा की बड़ी वजह है। राज्य के अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने इस दिशा में एक अध्ययन भी किया है। बिहार पुलिस ने यह अध्ययन बिहार पुलिस के महानिदेशक विनय कुमार के सुपुर्द किया। पुलिस ने राज्य में ङ्क्षहसक अपराधों में वृद्धि को सीधे तौर पर राज्य में अवैध हथियारों और गोला-बारूद की बढ़ती बिक्री से जोड़ा है और हत्या, फिरौती के लिए अपहरण, डकैती, लूट, बैंक डकैती और सड़क डकैती जैसे अपराधों के लिए इसे जिम्मेदार माना है। एन.सी.आर.बी. (राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो) के अनुसार, बिहार 2017 से 2022 के बीच ङ्क्षहसक अपराधों के मामले में लगातार शीर्ष 5 राज्यों में शुमार रहा है। 

इस अध्ययन में यह बात सामने आई कि प्रति वर्ष पटना में 82 ङ्क्षहसा के मामले औसतन रूप से सामने आए हैं और राज्य की राजधानी ‘ङ्क्षहसा की राजधानी’ बन चुकी है। पटना के बाद क्रमश: मोतिहारी में 49.53, सारण 44.08 गया 43.50, मुजफ्फरपुर 39.93 और वैशाली में 37.90 मामले प्रति वर्ष औसतन दर्ज किए जा रहे हैं। हिंसक अपराधों की सबसे अधिक संख्या वाले शीर्ष 10 जिलों में पटना, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर , समस्तीपुर, नालंदा और बेगूसराय शामिल हैं। ये उन शीर्ष 10 जिलों में से भी हैं जिनमें सबसे अधिक आम्र्स एक्ट के मामले हैं। 
अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अवैध आग्नेयास्त्र और ङ्क्षहसक अपराध के मामलों के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। एक दशक के अपराधों के अध्ययन के आधार पर विशेष कार्य बल ने बिहार के डी.जी.पी. से सिफारिश की है कि वह व्यक्तिगत गोला-बारूद कोटा को मौजूदा 200 से घटाकर न्यूनतम कर दें।  लाइसैंस प्राप्त मिनीगन कारखानों की निगरानी करें। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत में अपराधों के मामलों में शीर्ष पर उत्तर प्रदेश रहा।

इसके बाद अपराधों के पायदान पर क्रमश: केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार हैं। अपराधों की श्रेणी में चोरी के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए गए। इसके बाद दूसरे नंबर पर डकैती और उत्पीडऩ के मामले सामने आए। अपराधों में आंकड़ों के लिहाज से तीसरे नंबर पर बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। इन मामलों में चिंता की बात यह है कि इनमें वर्ष 2023 के मुकाबले 1.1 प्रतिशत की बढ़ौतरी दर्ज की गई है जबकि अपहरण के मामलों में पिछले वर्ष के मुकाबले 5.1 फीसदी की बढ़ौतरी दर्ज की गई है। बिहार सरकार द्वारा जारी बिहार आॢथक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ किए गए अपराधों से संबंधित दर्ज और निपटाए गए मामलों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में 2021-22 में क्रमश: 13.05 और 19.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि बिहार पहले से ही भ्रष्टाचार को लेकर बदनाम रहा है। लालू सरकार के चारा और जमीन के बदले रेलवे में नौकरी को लेकर लालू यादव जेल में हैं। नीतीश कुमार से उम्मीद थी कि बिहार में भ्रष्टाचार और अपराधों में सुधार होगा। किन्तु जिस तरह हथियारों की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे बिहार का भविष्य उज्ज्वल नजर नहीं आता।-योगेन्द्र योगी
 

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