बलात्कार और वास्तविकता : देश अपने स्त्री धन की रक्षा करने में विफल

Edited By ,Updated: 03 Jul, 2025 05:28 AM

the country fails to protect its women

भारत में बालिकाओंऔर महिलाओं के विरुद्ध युद्ध छिड़ा हआ है। जघन्य बलात्कार, घरेलू दुव्र्यवहार और ङ्क्षहसा की खबरें हर दिन सुनने को मिलती हैं, किंतु पिछले 3 महीनों में 3 घटनाओं ने हमें पुन: विस्मित कर दिया है। कोलकाता के एक कालेज परिसर में तृणमल छात्र...

भारत में बालिकाओं और महिलाओं के विरुद्ध युद्ध छिड़ा हआ है। जघन्य बलात्कार, घरेलू दुर्व्यवहार और हिंसा की खबरें हर दिन सुनने को मिलती हैं, किंतु पिछले 3 महीनों में 3 घटनाओं ने हमें पुन: विस्मित कर दिया है। कोलकाता के एक कालेज परिसर में तृणमल छात्र परिषद के एक पूर्व नेता और उसके साथियों द्वारा एक 24 वर्षीय विधि छात्रा का सामूहिक बलात्कार न केवल एक दुखद विसंगति है, अपितु यह राज्य प्रणाली पर एक गंभीर आक्षेप भी है, जो महिलाओं की रक्षा करने में बारंबार विफल हो रहा है। आरजीकर मैडिकल कालेज में एक स्नातकोत्तर छात्रा के बलात्कार और हत्या के बावजूद यह घटना बताती है कि इस अवधि में कुछ भी नहीं बदला है। 

पश्चिम बंगाल में संस्थाएं अब खतरनाक रूप से असुरक्षित हो रही हैं और दोषी व्यक्तियों को अक्सर राजनीति बचा लेती है। हालांकि ममता की तूणमूल कांग्रेस ने इस जघन्य घटना की सार्वजनिक रूप से ङ्क्षनदा की है, किंतु छात्र सुरक्षा और राजनीतिक हस्तक्षेप के व्यापक मुद्दों पर उसकी चुप्पी बहुत कुछ बता देती है। राज्य में महिलाओं के विरुद्ध अपराध की दर प्रति लाख जनसंख्या पर 71.8 है, जो 66.4 प्रति लाख के राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जबकि दोष सिद्धि की दर अत्यधिक कम है।  मार्च में कर्नाटक के हंपी में 5 लोगों के लिए एक भयावह स्थान बन गया। इस घटना में 2 इसराईली महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और 3 पुरुषों को नहर में फैंक दिया गया। यह घटना हमें स्मरण कराती है कि एक दशक पहले निर्भया बलात्कार कांड जैसे जघन्य यौन हिंसा और अपराध देश भर में अभी भी जारी हैं और इस तरह की घटनाएं देश में असंख्य महिलाओं के साथ हो रही हैं।  जब इन मामलों पर शोर होता है तो हमारे देशवासी इन पर क्रोध और प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, किंतु सत्ता के गलियारों तक इस विरोध की आवाज नहीं पहुंचती। राजनीतिक मौन ऐसी घटनाओं को दोहराने का कारण बनता है। पिछले वर्ष जब झारखंड में स्पेन की एक पर्यटक और उसकी सहयोगी के साथ बलात्कार किया गया तो हमारा राष्ट्रीय महिला आयोग इस बारे में चिंतित था। 

हमारे पूरे देश को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। देश में 60 लाख से अधिक पर्यटक आते हैं, जिनमें से अनेक सिंगल होते हैं और उनकी सुरक्षा को गंभीरता से लिया जाता है। यह अलग बात है कि कर्नाटक के क्षेत्रफल के छठे भाग के बराबर अल्बानिया में 1 करोड़ 20 लाख पर्यटक आते हैं, किंतु वे सुरक्षित हैं। नि:संदेह भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक और असुरक्षित स्थानों में शीर्ष रैंकिंग में रखा गया है, जहां पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार बलात्कार एक राष्ट्रीय समस्या है। यह अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है, किंतु लगता है हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां पर वैवाहिक जीवन में बलात्कार कानूनी है और इसके चलते अगर यदि पत्नी की मृत्यु भी हो जाती है तो इससे पति प्रभावित नहीं होता। शायद इसका संबंध हमारी पितृ सत्तात्मक विरासत से है, जहां पर हम महिलाओं को सम्मान नहीं देते। हाथरस बलात्कार मामला उन लोगों की बर्बरता को दर्शाता है, जो ङ्क्षलग और जाति की सत्तारूढ़ पदानुक्रम प्रणाली में शीर्ष स्थान पर बैठे हुए हैं। 

स्पष्ट है कि एक ऐसे पश्चगामी सोच वाले समाज में, जहां महिलाओं के लिए स्वतंत्रता और समानता व्यभिचार के समान मानी जाती है, ऐसे में हम दो विपरीत परिस्थितियों में रह रहे हैं, जहां पर बालिका का जन्म एक बुरी खबर मानी जाती है और उसे एक निश्चित मानदंडों के साथ पाला पोसा जाता है, ताकि नौका न गड़बड़ाए और उन पर महिलाओं के संरक्षण के नाम पर अनेक प्रतिबंध लगाए जाते हैं, जहां पर पिता नियम बनाता है, पति उनको लागू करता है और पुरुष बॉस उन्हें दोराहते हैं। आज भी महिलाओं के एक बड़े वर्ग में उनके शरीर पर उनका कोई अधिकार नहीं है और उन्हें सैक्स की वस्तु और मानव के रूप में पशु जैसे पुरुषों के आनंद की वस्तु माना जाता है, जिन्हें हर कदम पर समझौता करना होता है। उन पर अनेक बंदिशें लगाई जाती हैं। जघन्य अपराधों के लिए अपराधियों को दंडित करने की बजाय पीड़ित को दोष देना और महिलाओं को अपनी पसंद के लिए उन्हें बदनाम करना कोई सम्मान की बात नहीं है। शादी करना और बच्चे पैदा करना आज महिलाओं का मुख्य कार्य रह गया है। बलात्कार केवल वासना या क्रोध का कार्य नहीं है, यह अक्सर वर्चस्व का प्रदर्शन भी है, जिसे व्यवस्था की विफलता और सांस्कृतिक मौन बढ़ावा देता है। जब तक सामाजिक और राजनीतिक तौर पर समस्या का मिलकर समाधान नहीं किया जाता, महिलाओं की सुरक्षा में सुधार केवल दिखावटी रह जाएंगे। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार प्रति मिनट महिलाओं के विरुद्ध अपराध होते हैं, प्रत्येक 5 मिनट में महिलाओं के साथ बलात्कार होता है, 77 मिनट में दहेज के कारण मौत होती है, पति या रिश्तेदारों द्वारा प्रत्येक मिनट में महिलाओं के साथ क्रूरता या अपराध होता है और इसी के चलते हमारे देश में बालिका भ्रूण हत्या या गर्भपात की घटनाएं बढ़ती हैं। नि:संदेह महिला सुरक्षा के लिए इस संबध्ंा में तत्काल कदम उठाए जाने चाहिएं। इस संबंध में पुलिस को बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के मामलों की जांच करने की स्वायत्तता दी जानी चाहिए। आंतरिक शिकायत समिति को शक्तियां दी जानी चाहिएं और संकट प्रकोष्ठों में महिलाओं के प्रति संवेदनशील पेशेवर लोगों को तैनात किया जाना चाहिए।  बलात्कार पीड़ितों को कानूनी सहायता, मानसिक स्वास्थ्य समर्थन उपलब्ध कराए जाने चाहिएं और ऐसे मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक न्यायालयों में होनी चाहिए। हमें यौन उत्पीडऩ के बारे में अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा। कानूनों को कठोर बनाया जाना चाहिए, जिसके चलते पुरुष ऐसे अपराध करने से पहले हजार बार सोचे। इसके अलावा पारदॢशता, जवाबदेही और सुशासन के लिए कदम उठाए जाने चाहिएं। 

हमारे नेताओं को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। सरकार ने महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने और फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के झूठे वायदे किए हैं। यदि भारत एक ऐसा देश बनना चाहता है, जहां पर समानता और न्याय को महत्व दिया जाता है तो उसे सत्ता के चंगुल से बाहर निकलना और कानून का शासन पुन: स्थापित करना होगा। हमें महिलाओं को पुरुषों की विलासिता की वस्तु मानने पर अंकुश लगाना होगा। क्या हम केवल सांकेतिक कदम उठाएंगे या नई दिशा दिखाकर महिलाओं को इससे मुक्त करेंगे? क्या महिलाओं की सफलता के लिए हम एक नई शुरुआत करेंगे?-पूनम आई. कौशिश    

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