ब्रिटेन : महंगाई ने तोड़ी कमर, गर्मी ने छुड़वाए पसीने

Edited By Updated: 21 Jun, 2022 06:02 AM

britain inflation broke the waist the heat got rid of the sweat

ब्रिटेन इस वक्त महंगाई और गर्मी से त्रस्त है। दोनों का पारा दिन-ब-दिन चढ़ता जा रहा है। पिछले 40 वर्ष के रिकॉर्ड तोड़ते हुए महंगाई ने इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति) की दर 9 प्रतिशत तक पहुंचा दी...

ब्रिटेन इस वक्त महंगाई और गर्मी से त्रस्त है। दोनों का पारा दिन-ब-दिन चढ़ता जा रहा है। पिछले 40 वर्ष के रिकॉर्ड तोड़ते हुए महंगाई ने इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति) की दर 9 प्रतिशत तक पहुंचा दी है और गर्मी से तापमान 34 सैंटीग्रेड को छू गया है। इन्फ्लेशन अभी और बढ़ेगी, अगले महीने 11 प्रतिशत तक। गर्मी की गर्मी आने वाले कई दिनों तक यूं ही जारी रहेगी। 

जनता इन दोनों बातों से परेशान है क्योंकि महंगाई ने जनसाधारण की कमर तोड़ दी है और गर्मी ने पसीने छुड़वा दिए हैं। यहां के लोग इतनी गर्मी के आदी नहीं हैं। दिनचर्या की हर गतिविधि, हर पहलू पर दोनों का प्रभाव बड़ा गहरा है। खाद्य पदार्थ, बिजली, गैस, पैट्रोल-डीजल, यातायात, इत्यादि किसी भी वस्तु का नाम लीजिए, कीमतें हैं कि आसमान को छू रही हैं। आज कोई चीज किसी दुकान या स्टोर से लेकर आइए, कल वही वस्तु उसी जगह से खरीदने जाएं तो दाम बढ़े हुए होते हैं। तापमान का चढऩा-उतरना  तो खैर कुदरत के हाथ है, परन्तु कीमतों के यूं उछलने, छलकने पर किसी का कोई नियंत्रण न होना जनता  के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन रहा है। 

रोष-आक्रोश, प्रदर्शन और हड़तालें : रोष है, आक्रोश है, प्रदर्शन हो रहे हैं, हड़तालों की तैयारी है। शनिवार 18 जून को देश की सबसे बड़ी मजदूर जत्थेबंदी ट्रेड यूनियन कांग्रेस के आह्वान पर बढ़ती कीमतों के विरुद्ध लन्दन में एक प्रदर्शन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। महंगाई पर शीघ्र प्रभावी उपायों की मांग की गई और रोजमर्र्रा के बढ़ते खर्चों के अनुरूप वेतन बढ़ाए जाने की आवाज उठाई गई। 

बढ़ी हुई महंगाई के मुताबिक कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर इस सप्ताह देशव्यापी रेल हड़ताल हो रही है। 21, 23 और 25 जून, तीनों दिन रेलगाडिय़ों का आना-जाना बिल्कुल ठप्प रहेगा। यह एक बहुत बड़ी हड़ताल होगी, जिससे जनजीवन बहुत बुरी तरह प्रभावित होगा। रोजाना 25-30 लाख लोग रेल द्वारा यात्रा करते हैं। रेल हड़ताल से कितनी असुविधा होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। मांगें पूरी न होने पर रेल कर्मचारी संगठनों द्वारा रेल हड़तालों का सिलसिला जारी रखने की चेतावनी दी गई है। 

बढ़ती मुश्किलें : यदि कहीं जाना आवश्यक ही है तो रेल हड़ताल से उत्पन्न कठिनाई से निपटने के लिए अपनी कार या टैक्सी का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन यह भी इतना आसान कहां? कार के लिए पैट्रोल की प्रति लीटर कीमत 200 रुपए हो चुकी है। पैट्रोल की बढ़ती कीमतों के दृष्टिगत सरकार ने लोगों को परामर्श दिया था कि वे यातायात की सरकारी सुविधाओं, बसों, रेलगाडिय़ों द्वारा यात्रा करें। इतना महंगा पैट्रोल खरीदना मुश्किल हो रहा है और अब ऊपर से रेलगाडिय़ों की यह हड़ताल। टैक्सी के किराए बहुत महंगे हो गए हैं। जनसाधारण की मुश्किलें बढ़ रही हैं। गर्मियां हैं। 

‘हॉलीडे’ पर जाना यहां के लोगों की एक ऐसी परंपरा है, जिससे छुटकारा पा सकना मानो अपने-आप को बहुत बड़ी सजा देना है। कुछ भी हो, ‘हॉलीडे’ पर जरूर जाना है, उधार उठा कर या जिस किसी भी साधन से हो, गर्मी की छुट्टियां बिताने कहीं न कहीं, किसी न किसी पर्यटन स्थल, किसी सागर-तट पर जाए बिना चैन कहां। इन दिनों छोटे-बड़े हवाई अड्डे ‘हॉलीडे मेकर्स’ से भरे पड़े हैं। इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों से निपटने के लिए पर्याप्त स्टाफ जुटा पाना हवाई अड्डों के लिए मुश्किल हो रहा है। अधिकतर लोग ब्रिटेन के निकटवर्ती यूरोपीय देशों में जाने को बेताब हैं। 

विचित्र स्थिति : यह एक बड़ी विचित्र स्थिति है। एक तरफ तो सैर-सपाटे पर जाने को बेताब जमघट, दूसरी तरफ बढ़ती कीमतों, महंगाई से पीड़ित  और प्रयाप्त जीवन-साधनों से वंचित अपार जनसाधारण, जिनके लिए भोजन सामग्री, खाने-पीने का सामान खरीद पाना एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। यद्यपि इस देश में ऐसी व्यवस्था है कि मुश्किल भले ही कितनी बड़ी क्यों न हो, सरकार  द्वारा उसकी सहायता करने के साधन मौजूद हैं और साधनों की कमी की वजह से कोई भूखा भी मर सकता है, ऐसी कल्पना स्वीकार्य नहीं। फिर भी ऐसा हो रहा  है। स्वयं एक सरकारी संस्था फूड स्टैंडड्स एजैंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जिन लोगों को एक वक्त की रोटी नहीं मिल रही या सरकारी लंगरों से जो लोग भोजन लेते हैं, उन लोगों की संख्या पिछले वर्ष से चिंताजनक हद तक बढ़ गई है। 

इस संस्था ने अपने एक सर्वे में कहा है कि आने वाले 3 वर्षों में खाद्य सामग्री की कीमतें तीन-चौथाई आबादी (76 प्रतिशत) के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनने वाली हैं। इस संस्था का कहना है कि खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल आम लोग सावधानी और सत्कार से नहीं करते। भारी मात्रा में अन्न बेकार फैंक दिया जाता है। यदि सावधानी बरती जाए तो प्रतिवर्ष लगभग 2,00,000 टन अन्न बचाया जा सकता है, जो जरूरतमंद लोगों के काम आ सकता है।-लंदन से कृष्ण भाटिया
 

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