‘बी.टी. बैंगन’ को लेकर गम्भीर चिंताएं

Edited By ,Updated: 20 Jun, 2019 03:17 AM

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कीड़ों से बचाने के लिए अनुवांशिक रूप से संशोधित (जैनेटिकली मॉडीफाइड) बी.टी. (बेसिलस थिरुंजेनेसिस) बैंगन को  एक माह पूर्व हरियाणा में गैर-कानूनी तरीके से उगाते पाया गया है। यह भारतीय कम्पनी माहिको, जिसमें मोन्सैंटो की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है, द्वारा...

कीड़ों से बचाने के लिए अनुवांशिक रूप से संशोधित (जैनेटिकली मॉडीफाइड) बी.टी. (बेसिलस थिरुंजेनेसिस) बैंगन को  एक माह पूर्व हरियाणा में गैर-कानूनी तरीके से उगाते पाया गया है। यह भारतीय कम्पनी माहिको, जिसमें मोन्सैंटो की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है, द्वारा विकसित बी.टी. बैंगन से भिन्न था। माहिको के बी.टी. बैंगन पर 2010 से रोक है। इसके बावजूद कि सरकार गैर-कानूनी जी.एम. फसल पर धावा बोल रही है, किसानों के कुछ समूह माहिको के बी.टी. बैंगन तथा अन्य जी.एम. फसलों को नियामकीय प्रक्रिया के माध्यम से जारी करने की मांग कर रहे हैं। यह सच है कि जी.एम. फसलों की शीर्ष नियामक संस्था जैनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जी.ई.ए.सी.) द्वारा क्लीयर कर दिए जाने के बावजूद रोक उस समय के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा लगाई गई थी। 

इसका असर
रोक लगाने से पूर्व रमेश ने पर्यावरणीय प्रभावों से संबंधित विशेषज्ञों तथा संबंधित समूहों और उपभोक्ताओं व किसानों के लिए बाध्यताओं पर सुझाव लिए थे। कार्यकत्र्ताओं तथा समाज विज्ञानियों की ओर से मांग के बावजूद कृषि मंत्रालय ने इस बाबत कोई सबूत नहीं दिया कि बी.टी. बैंगन से किसानों को लाभ पहुंचेगा। विडम्बना यह है कि नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पालिसी रिसर्च ने पाया कि यदि बी.टी. बैंगन माहिको के प्रस्ताव के अनुसार कारगुजारी दिखाता है तो बैंगन का उत्पादन बढ़ेगा और खुदरा कीमतें कम होंगी, जिससे किसानों के मुकाबले उपभोक्ताओं को कहीं अधिक लाभ होगा। रिपोर्ट ने इस परिदृश्य को नजरअंदाज किया कि कम्पनियां बी.टी. बैंगन के बीजों के लिए अधिक कीमतें वसूल कर सकती हैं, जिससे किसानों को कतई लाभ नहीं होगा।

जैव सुरक्षा मुद्दों पर वैज्ञानिक राय बंटी हुई है। जहां दिल्ली विश्वविद्यालय के दीपक पेंटल जैसे कुछ वैज्ञानिक बी.टी. बैंगन को जारी करने के पक्ष में थे, वहीं दिवंगत पुष्पा भार्गव, अमरीकी कीट वैज्ञानी डेविड एंडो तथा आचार्य एन.जी. रंगा कृषि विश्वविद्यालय व डा. वाई.एस.आर. बागवानी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपतियों जैसे अन्यों ने बी.टी. बैंगन की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण खामियों तथा वातावरण पर इसके प्रभावों को रेखांकित किया। 

पर्यावरणविद् माधव गाडगिल ने भारत की विभिन्नतापूर्ण बैंगन प्रजातियों के संदूषण की चेतावनी दी है। पोषण तथा स्थिरता के लिए जैव विविधता अत्यंत महत्वपूर्ण है और बायोटैक्रोलॉजी पर सरकार के अपने कार्य बल (2004) ने सुझाव दिया था कि जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्रों में किसी भी जी.एम. फसल की इजाजत न दी जाए। इससे भी अधिक, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति (जी.एम. फसलों को लेकर जनहित याचिका पर) के अधिकतर सदस्यों ने उन जी.एम. फसलों पर प्रतिबंध का सुझाव दिया था जिनके लिए भारत एक मूल अथवा विविधता का केन्द्र है। बैंगन ऐसी ही एक फसल है। 

पोषण के मामले में बी.टी. तथा सामान्य बैंगन के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर दिखाई देते हैं। बहुत से स्वास्थ्य शोधकत्र्ता एवं प्रोफैशनल्स तथा अमरीका की साल्क इंस्टीच्यूट के प्रतिरक्षा विज्ञानी डेविड शूबर्ट तथा जीन कैम्पेन की सुमन सहाय जैसे विज्ञानियों ने दावा किया है कि बी.टी. बैंगन मानव स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं। एम.एस. स्वामीनाथन तथा इंडियन कौंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च के तत्कालीन महानिदेशक वी.एम. कटोच ने बी.टी. बैंगन पर कोई भी निर्णय लेने से पहले इस पर दीर्घकालिक विषाक्तता अध्ययन करने को कहा था। उन्होंने कहा था कि यह अध्ययन आंकड़ों के लिए पूरी तरह से माहिको पर निर्भर रहने की बजाय स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए। 

राज्यों का भी समर्थन नहीं
बी.टी. बैंगन को राज्य सरकारों से कोई समर्थन नहीं मिला। केरल तथा उत्तराखंड ने जी.एम. फसलों पर प्रतिबंध लगाने को कहा है। बैंगन की पर्याप्त फसल वाले पश्चिम बंगाल, ओडिशा तथा बिहार जैसे राज्यों ने लंबित कड़े तथा व्यापक परीक्षणों का हवाला देते हुए इसके जारी होने का विरोध किया है। ऐसा ही छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा अविभाजित आंध्र प्रदेश ने भी किया। इन राज्यों पर कई राजनीतिक दलों का शासन रहा है। 2012 तथा 2017 में क्रमश: कृषि पर स्थायी संसदीय समिति तथा विज्ञान, तकनीक, पर्यावरण तथा वनों पर समिति ने जी.एम. विवाद का आकलन किया। 

दोनों समितियों ने नियामक प्रणाली में खामियों को लेकर गम्भीर चिंताएं जताईं। दरअसल, कृषि पर समिति बी.टी. बैंगन के आकलन पर अनियमितताओं को लेकर इतनी ङ्क्षचतित थी कि इसने ‘प्रमुख स्वतंत्र वैज्ञानिकों तथा पर्यावरणविदों की एक टीम द्वारा व्यापक जांच’ का सुझाव दिया, जो कभी नहीं हुई। इससे बढ़कर दोनों समितियों ने उपभोक्ता के जानने के अधिकार की सुरक्षा हेतु जी.एम. खाद्य पदार्थों पर लेबङ्क्षलग करने को कहा। यद्यपि चूंकि खुदरा मार्कीटिंग मुख्य रूप से असंगठित है, वास्तविक लेबङ्क्षलग एक दु:स्वप्र ही है और कृषि मंत्रालय इसे अव्यावहारिक मानता है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथारिटी ऑफ इंडिया ने अभी हाल ही में लेबङ्क्षलग नियमों को लागू करवाना शुरू किया है। 

वैज्ञानिक सहमति नहीं
संक्षेप में, बी.टी. बैंगन पर फिलहाल रोक है क्योंकि इसकी सुरक्षा तथा प्रभावोत्पादकता को लेकर कोई वैज्ञानिक सहमति नहीं है और राज्यों तथा संसद में नियामकीय प्रणाली को लेकर गम्भीर संदेह हैं। हाल के वर्षों में कीड़ों ने बी.टी. काटन को लेकर प्रतिरोध क्षमता हासिल कर ली है, जिस कारण किसानों को जानलेवा कीटनाशक छिड़काव करने को मजबूर होना पड़ा है। इस कारण 2017 में विदर्भ में कीटनाशकों के जहर के कारण 50 से अधिक लोग मारे गए थे। कीट नियंत्रण की जी.एम. आधारित रणनीति लम्बे समय तक टिकने वाली नहीं है।-ए. आगा

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