नव वर्ष 2024 में भारत के समक्ष चुनौतियां

Edited By ,Updated: 03 Jan, 2024 06:02 AM

challenges before india in the new year 2024

भारत ने नई आशाओं और नई चुनौतियों के साथ वर्ष 2024 में प्रवेश किया है। राजनीतिक दृृष्टि से इस वर्ष देश में विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद आम चुनाव होंगे। यह इस बात का प्रमाण है कि लोकतंत्र देश की रग-रग में बस गया है, जहां पर आठ दशक पूर्व केवल...

भारत ने नई आशाओं और नई चुनौतियों के साथ वर्ष 2024 में प्रवेश किया है। राजनीतिक दृृष्टि से इस वर्ष देश में विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद आम चुनाव होंगे। यह इस बात का प्रमाण है कि लोकतंत्र देश की रग-रग में बस गया है, जहां पर आठ दशक पूर्व केवल एक चौथाई लोग मतदान के लिए पात्र थे और साक्षरता का स्तर दोहरे अंक में भी नहीं था। यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का एक प्रमाण है। 

राजनीतिक दृृष्टि से यदि मोदी लगातार तीसरी बार 5 वर्ष के लिए प्रधानमंत्री बनते हैं तो वे कांग्रेस के नेहरू के बाद पहले ऐसे नेता होंगे। नमो ने 550 वर्ष की विरासत को विकास, आधुनिकता और परंपरा के साथ जोड़ा है, जहां पर विकसित भारत को नई आस्था और डिजिटल इंडिया के सम्मिश्रण से एक नई ऊर्जा मिलती है और इसका सम्मिश्रण नई अयोध्या में 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर देखने को मिलेगा। इसके साथ ही लाभार्थी की श्रेणी के अंतर्गत किसान, गरीब, युवा, महिलाएं शामिल हुई हैं और उन्होंने इन्हें इस देश की 4 सबसे बड़ी जातियां और मोदी की गारंटी को पूरा करने के लिए लक्षित योजनाओं की सांझी ताकत कहा है। इसके साथ ही अवसंरचना में सुधार, अनुच्छेद 370 को समाप्त करना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण 26 विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के लिए कठिन चुनावी चुनौतियां हैं। 

प्रश्न उठता है क्या विपक्ष द्वारा एकजुट मोर्चा बनाने से भाजपा का विजयी रथ रुकेगा? क्या कांग्रेस के राहुल और टी.एम.सी., राकांपा, जद (यू), राजद के क्षेत्रीय क्षत्रप अपने मतभेदों को भुलाएंगे? क्या वे भाजपा द्वारा नई नागरिकता को मंडल अर्थात जातीय जनगणना के आधार पर चुनौती दे पाएंगे और इस बात को रेखांकित करेंगे कि सामाजिक न्याय का एजैंडा पूरा नहीं हुआ। क्या वे सीटों के बंटवारे पर समझौता कर पाएंगे? चुनौती यह है कि भाजपा ने अपने मुख्य संदेश को और प्रखर बनाया और अपनी अपील बढ़ाई है। वर्तमान में मंदिर और मंडल का कोई टकराव नहीं है, अपितु दोनों सहयोगी हैं। निश्चित रूप से अधूरा सामाजिक एजैंडा उसके विरुद्ध एक रणनीति हो सकती है,किंतु क्या कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन उस दृृष्टिकोण को पूरा करने के विश्वसनीय वाहक हैं और क्या उनमें ऐसा करने की क्षमता है? 

संसद के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अविश्वास खुलेआम देखने को मिला। इस सत्र के दौरान सरकार के लिए विपक्ष के 146 सांसदों को निलंबित किया गया जो यह बताता है कि किस तरह विधायिका को ठप्प किया जा रहा है। संसद में लगातार गतिरोध है और एक-दूसरे पर बढ़त दिखाने के लिए हमेशा शोर-शराबा होता है और ये लोग अक्सर भूल जाते हैं कि संसद हमारे लोकतंत्र का पवित्र प्रतीक है। दोनों सदनों का सुचारू कार्यकरण सुनिश्चित करना सरकार और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। संसदीय लोकतंत्र चुनावों से शुरू होकर चुनावों पर खत्म नहीं होता। यह एक सतत प्रक्रिया है, जहां पर विपक्ष अपनी बात कहता है और सरकार अपने अनुसार कार्य करती है। मतदाता संसद से प्रेरणा लेते हैं। जो सदन वार्ता, विमत और वाद-विवाद के स्वस्थ वातावरण में कार्य करता है, वह लोगों को सकारात्मक संदेश देता है। 

इसके अलावा राजनीतिक धु्रवीकरण, बहुपक्षीयता और विभिन्न पहचानों के युग में हम अधिक जातिवादी और सांप्रदायिक हो रहे हैं, जिसके चलते देश पर असहिष्णुता और अपराधीकरण का प्रहार बढ़ता जा रहा है। आम आदमी रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष कर रहा है और उसका आक्रोश बढ़ता जा रहा है और जनता सरकार से उत्तर चाहती है। आज जनता हमारे नए महाराजाओं से खिन्न है क्योंकि वे ओरवेलियन सिंड्रोम से ग्रस्त हैं जिसके चलते वे हमेशा और अधिक मांगें करते रहते हैं। 

दुखद तथ्य यह है कि किसी के पास भी व्यवस्था से आम आदमी की निराशा का निराकरण करने के लिए समय नहीं है, जिसके चलते लोगों में आक्रोश पैदा हो रहा है। किसी भी मोहल्ले, जिले या राज्य में चले जाओ, कहानी एक जैसी है, जिसके चलते अधिक लोग कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और दंगों और लूट-खसूट की स्थिति बन रही है। देश की राजधानी दिल्ली में अपराध और हत्याएं बढ़ रही हैं। व्यवस्था इतनी रुग्ण हो गई है कि महिलाओं के साथ सहयात्रियों के बीच भीड़भाड़ भरी रेलगाडिय़ों में बलात्कार होता है और सहयात्री मूकदर्शक बने रहते हैं और कई बार ऐसा लगता है कि हमारा देश अंधेर नगरी बन गया है। महिलाओं का यौन उत्पीडऩ और उन पर हमले हमारी सामूहिक चेतना को नहीं जगाते। 

भारत को इस नव वर्ष में एक अस्थिर विश्व का सामना करना पड़ेगा क्योंकि यूक्रेन युद्ध और गाजा युद्ध और तेज हो सकता है। आज हिंसा के सबसे शक्तिशाली औजार राज्य और गैर-राज्य कारकों के पास उपलब्ध हैं, जिसके चलते अनियंत्रित हिंसा बढ़ रही है और इस हिंसा में प्रौद्योगिकी प्रगति का उपयोग किया जा रहा है, जिसके चलते कई बार सरकारें भी भौंचक्की रह जाती हैं। घरेलू मोर्चे पर सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा कि किस तरह जम्मू-कश्मीर और मणिपुर में सुरक्षा चुनौतियों का निराकरण किया जाता है और पुंछ जिले में सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला, नक्सली हिंसा और मणिपुर में उपद्रव से आक्रोशित जनता को किस तरह शांत किया जाएगा। 

स्पष्ट है केन्द्र सरकार को इन स्थितियों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना होगा ताकि हमारे बहुलतावादी समाज का धु्रवीकरण और भारतीय राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा न हो। विदेश नीति के मोर्चे पर भारत के चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधार नहीं हुआ और इस संबंध में हमें दृढ़ता से अपना दृृष्टिकोण रखना होगा। पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध को लेकर 22 महीने से सैनिक और कूटनयिक वार्ता के बावजूद चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपना दावा करता रहता है। पाकिस्तान और बंगलादेश में चुनाव दक्षिण एशिया में अस्थिरता का कारण बन सकते हैं, इसलिए भारत को इन दोनों देशों में राजनीतिक स्थिति पर नजर रखनी होगी। 

यह आज का विरोधाभास है कि जब हमारी चुनौतियां और खतरे वैश्विक बन गए हैं, तो हमारा दृृष्टिकोण संकीर्ण होकर राष्ट्रीय बन गया है। शासन के सशक्त संस्थानों के माध्यम से इन चुनौतियों का सहयोग के साथ सामना करने का कोई विकल्प नहीं है। नए वर्ष में प्रवेश के साथ हमारे नेताओं को सजग रहना होगा। उन्हें जिम्मेदारी लेनी होगी, अपने तौर-तरीकों में बदलाव करना होगा और शासन के मुद्दों का गंभीरता से निराकरण करना होगा। उन्हें समझना होगा कि भारत की लोकतांत्रिक शक्ति का मूल कारण उसके आम आदमियों का धैर्य है। 

हमारे नीति-निर्माताओं को लोगों के जीवन में सुधार के लिए दोगुने प्रयास करने होंगे क्योंकि जनता रोजगार, पारदॢशता और जवाबदेही चाहती है, जिसके अंतर्गत लोक स्वास्थ्य में सुधार और शिक्षा में आई खामियों को दूर किया जाए। मोदी या ‘इंडिया’ गठबंधन में से कौन जीतता है या कौन हारता है, इसके बावजूद हमारे नेताओं को सजग रहना होगा और दृृढ निश्चय के साथ एक नए भारत के निर्माण के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि इस देश का निर्माण बहुलतावादी समाज ने किया है, जहां विभिन्न समुदाय रहते हैं और यही हमारे राष्ट्र का जीवन है। 

हमारे शासकों को इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना होगा कि वे वर्ष 2024 को एक अच्छा वर्ष बनाएं। उन्हें बुनियादी चीजों पर कार्य करना होगा, देश में एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण करना होगा, अपने दृृष्टिकोण में अधिक मानवीय बनना होगा तथा सहिष्णुता तथा जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की विरासत को सुरक्षित करना होगा। हमें जस एद बेलम अर्थात सही प्राधिकार, सही इरादे और युक्तियुक्त आशाओं द्वारा हमारे प्रत्युत्तर का मार्ग निर्देशन के सिद्धान्तों को अपनाना होगा। नव वर्ष शुभ हो।-पूनम आई. कौशिश
 

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