चीन-नेेपाल नजदीकियां भारत के लिए ‘खतरा’

Edited By Updated: 06 Oct, 2019 01:15 AM

china nepal are a threat to india

चीन और नेपाल के बीच बढ़ रही नजदीकियां भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं। इतना ही नहीं, अभी जो नेपाल में भारतीय उत्पादों के बाजार की करीब 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, उसमें भी भारी कमी आ सकती है। नेपाल के चीन के प्रति बढ़ रहे झुकाव का...

चीन और नेपाल के बीच बढ़ रही नजदीकियां भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं। इतना ही नहीं, अभी जो नेपाल में भारतीय उत्पादों के बाजार की करीब 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, उसमें भी भारी कमी आ सकती है। नेपाल के चीन के प्रति बढ़ रहे झुकाव का ताजा उदाहरण काठमांडू में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विचारों के प्रसार-प्रचार हेतु एक सैमीनार का आयोजन है। गुजरे 23-24 सितम्बर को नेपाल के उप-प्रधानमंत्री व कम्युनिस्ट पार्टी के शिक्षा विभाग प्रमुख ईश्वर पोखरेल की देख-रेख में चीनी राष्ट्रपति के विचारों पर इस कार्यक्रम का आयोजन राजधानी के एक होटल में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में चीनी विदेश मंत्री मौजूद थे। कार्यक्रम की सफलता के लिए आयोजन से पहले चीन ने अपने 50 सदस्यों को काठमांडू भेजा था। 

नेपाली कांग्रेस ने कम्युनिस्ट सरकार के इस आयोजन का विरोध किया था। पार्टी के विदेश विभाग के प्रवक्ता का कहना था कि इससे नेपाल और भारत के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। नेपाली कांग्रेस के इस तर्क के जवाब में ईश्वर पोखरेल का कहना था कि यह आयोजन किसी भी दृृष्टि से अनुचित नहीं है क्योंकि नेपाल और चीन का लक्ष्य एक ही है। चीन और भारत के बीच इन दिनों रिश्तों की आंख-मिचौली चल रही है, ऐसे में भारत को यह तलाशना होगा कि आखिर नेपाल और चीन का कौन-सा लक्ष्य है जोएक ही है। नेपाल के राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे चीनकी विस्तारवादी नीति का हिस्सा बताया तो कार्यक्रम समर्थकों का कहना था कि इस भव्य आयोजन में भले ही चीनी राष्ट्रपति न आए हों लेकिन यह हाऊडी जिनपिंग था। 

रिश्तों में खटास-मिठास
भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में खटास-मिठास तो आती रही है लेकिन उच्च स्तरीय वार्ता के बाद संबंध फिर सामान्य हो जाया करते थे। यही वजह है कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को दुनिया रोटी-बेटी के रिश्ते के रूप में देखती रही है। अब तो सरकार के बनते-बिगड़ते रिश्ते के साथ दोनों देशों के नागरिकों के बीच मिठास भरा संबंध भी गायब हो रहा है। भारत के प्रति नेपालियों में इस बेरुखे बदलाव में तेजी दरअसल 2015 में उस वक्त के बाद आई जब भारत पर कथित नाकेबंदी का आरोप लगा। करीब 5 माह तक भारत-नेपाल सीमा के लगभग सभी नाकों पर हुई बंदी से नेपाल की दुश्वारियां बढ़ गई थीं। यह नाकेबंदी वास्तव में संविधान संशोधन को लेकर उस वक्त के नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ थी, जिसे नेपाल के ही मधेसी दलों ने कर रखा था। तब भी ओली के नेतृत्व में ही सरकार थी। इसकी तोहमत ओली सरकार ने बड़ी ही चालाकी से भारत सरकार पर मढ़ दी। 

कहना न होगा कि आम चुनाव में ओली के चुनाव प्रचार का प्रमुख बिन्दू ही भारत विरोध था। नरेंद्र मोदी ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सर्वाधिक बार नेपाल की यात्रा की। जाहिर है, इसके पीछे दोनों देशों के बीच की खटास मिटाना था लेकिन शायद नेपाल पर इसका कोई असर नहीं हुआ। नेपाल भारत के प्रति जैसी भी सोच रखे लेकिन सच यह है कि भारत सदैव ही अपने इस नन्हे पड़ोसी राष्ट्र के प्रति सहयोग और सद्भाव जैसा ही भाव रखता है। नेपाल में आया भूकम्प हो या अन्य सुख-दुख के अवसर, भारत ने इसे साबित भी किया है। वहीं नेपाल ने एक नहीं, कई बार भारत विरोध की अपनी मंशा का इजहार किया है। गत वर्ष पुणे में बिम्स्टेक के सैन्य अभ्यास में नेपाल का शामिल न होना उसके भारत से दूर रहने का संकेत था। इस सैन्य अभ्यास की मेजबानी भारत कर रहा था जबकि चीन द्वारा आयोजित सैन्य अभ्यास में नेपाल शामिल हुआ था। 

चीन की हर क्षेत्र में घुसपैठ
नेपाल और भारत के बीच संबंधों में दरार की ताक में तो चीन था ही। इसका उसने खूब फायदा भी उठाया। विकास के नाम पर नेपाल में चीन की हर क्षेत्र में बढ़ रही घुसपैठ से यह कहना उचित होगा कि नेपाल प्रो-चाइना की ओर बढ़ रहा है। नेपाल में एक-दो नहीं, चीन की सैंकड़ों परियोजनाएं चल रही हैं, जहां कई हजार नेपाली मजदूर कार्यरत हैं। जाहिर है, चीन इस माध्यम से नेपालियों को अपनी ओर आकॢषत कर रहा है जो धीरे-धीरे भारत से नफरत की वजह बनता जा रहा है। नेपाल में भारत तथा चीनी परियोजनाओं के प्रति भी नेपालियों में जबरदस्त भेदभाव देखा जा रहा है। वे जब भी आंदोलन पर होते हैं तो उनके निशाने पर नेपाल में स्थापित भारतीय परियोजनाओं के कार्यालय और भारतीय वाहन ही होते हैं जबकि चीन की परियोजनाओं के प्रति उनमें कोई गुस्सा नहीं होता। नेपाल में भारतीय उत्पादों के बाजार पर चीन पांव पसार रहा है।

नेपाल के मिल्क प्रोडक्ट बाजार पर कब्जा करने की दिशा में चीन तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इसका सबसे बड़ा नुक्सान भारत को उठाना पड़ेगा क्योंकि अभी तक नेपाल के मिल्क प्रोडक्ट बाजार पर भारत का कब्जा है। चीन 32 अरब की लागत से नेपाल में 3 काऊ फार्म खोलने जा रहा है। चीन के इस काऊ फार्म पर अफसर छोड़कर बाकी सब नेपाली होंगे। अब इस काऊ फार्म से विभिन्न प्रकार के मिल्क प्रोडक्ट नेपाल के बाजार में उपलब्ध होंगे ही, यहां उत्पन्नबछड़ों के लिए स्लाटर हाऊस भी होंगे। नेपाल के बाजार पर भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा नई नहीं है लेकिन चीन भारत से पीछे इसलिए हो रहा था कि उसके पास नेपाल में माल पहुंचाने के लिए सुलभ मार्ग नहीं था। चीन अब अपने ज्यादातर उत्पादन नेपाल में ही करने की रणनीति पर काम कर रहा है। साथ ही रेल तथा सड़क निर्माण में भी जुटा हुआ है। चीन का लक्ष्य काठमांडू तक 2020 तक रेल लाइन बिछा देना है। 

चीनी भाषा सिखाने के लिए कोचिंग सैंटर
नेपाल स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत की अपेक्षा चीन को अधिक तरजीह दे रहा है। चीन का प्रभाव भारत सीमा से सटे नेपाली भू-भाग तक तेजी से बढ़ रहा है। सीमावर्ती नेपाली कस्बों में नेपालियों को चाइनीज भाषा सिखाने के लिए मुफ्त में कई कोङ्क्षचग सैंटर चल रहे हैं। नेपाल के पूर्व पी.एम. माधव कुमार नेपाल कहते हैं कि नेपाल भारत के साथ मजबूत संबंध का पक्षधर सदैव रहा है और है। जहां तक चीन से बढ़ रहे संबंधों की बात है तो उनका देश आत्मसम्मान और सम्प्रभुता के आधार पर पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बनाना चाहता है। उन्होंने कहा कि भारत और चीन दोनों ही हमारे पड़ोसी देश हैं, ऐसे में यह कैसे संभव है कि एक से हमारे संबंध हों और दूसरे से न हों? उन्होंने साफ कहा कि दोनों देशों के बीच रिश्तों के सुधार के लिए लगातार काम करने की जरूरत है।-यशोदा श्रीवास्तव

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!