‘पी.के.’ का कांग्रेस बचाव फार्मूला

Edited By Updated: 20 Apr, 2022 06:28 AM

congress defense formula of pk

प्रशांत किशोर यानी पी.के. की कांग्रेस में जाने की चर्चा है। देखना यही है कि कौन-सा पद मिलता है, क्या-क्या जिम्मेदारियां मिलती हैं और उन्हें किसे रिपोर्ट करना होगा। तीन बातें तय हैं, एक, कांग्रेस

प्रशांत किशोर यानी पी.के. की कांग्रेस में जाने की चर्चा है। देखना यही है कि कौन-सा पद मिलता है, क्या-क्या जिम्मेदारियां मिलती हैं और उन्हें किसे रिपोर्ट करना होगा। तीन बातें तय हैं, एक, कांग्रेस आलाकमान की समझ में आ गया है कि जिस तरह पार्टी चल रही है उस तरह ज्यादा देर तक नहीं चल पाएगी। दो, आलाकमान को इस सच्चाई का एहसास हो गया है कि कांग्रेस में नए आइडिया लाने के लिए पी.के. जैसी शख्सियत का होना जरूरी है। तीन, चूंकि अब पी.के. को लेकर पहल हो या विपक्ष के साथ तालमेल, सारा काम सोनिया गांधी ही देख रही हैं तो ऐसा लगता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक उन्हें ही अध्यक्ष पद पर रखा जा सकता है। 

पी.के. के हिसाब से देखा जाए तो वह भी 3 बातों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। एक, कांग्रेस लोकसभा की सभी सीटों की बजाय 370 के आसपास सीटों पर ही पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़े। दो, यू.पी. जैसे राज्यों में अकेले अपने दम पर चुनाव  मैदान में उतरे। तीन, तमिलनाडु, बंगाल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गठबंधन का अंग बने। आगे पी.के. को 3 बातों पर ही खासा जोर देना होगा। एक, नेतृत्व। दो, नारा। तीन, नीति। यहां नैरेटिव यानी विमर्श को नीति और नारे के मिले-जुले हिस्से के रूप में देखा जा सकता है। 

अब सवाल उठता है कि रसातल में गई कांग्रेस को पी.के. आखिर कितना उबार पाएंगे। क्या जी-23 के नेताओं से उनका सामना नहीं होगा? क्या आलाकमान के करीबी पुराने नेता अपनी सलाहकार की भूमिका छोड़ देंगे? क्या पी.के. की हर बात राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मानने लगेंगे? क्या पी.के. के कांग्रेस के साथ आने से अन्य गैर भाजपा दलों के रुख में बदलाव आएगा? क्या पी.के. कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच पुल का काम करेंगे? 

सबसे बड़ा सवाल यही है कि बहुत संभव है कि पी.के. के कांग्रेस में आने से पार्टी कार्यकत्र्ता उत्साहित हों लेकिन क्या आम वोटर में भी वैसा ही उत्साह जगा पाएंगे पी.के.? आसान शब्दों में कहा जाए तो पी.के. के आने से क्या कांग्रेस का इस साल हिमाचल, गुजरात और अगले साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान जीतना तय हो गया है? क्या 2024 में कांग्रेस बाऊंस बैक कर पाएगी? 

कांग्रेस का एक धड़ा कहने लगा है कि सवा सौ साल पुरानी पार्टी को इस तरह आऊटसोर्स करना ठीक नहीं। बिना नाम लिए कहा जा रहा है कि कोई बाहरी आदमी कैसे पार्टी की विचारधारा और उसके डी.एन.ए. को समझ सकता है? क्या इसे कांग्रेस की कमजोरी के रूप में नहीं देखा जाएगा। क्या गैर भाजपा विपक्षी दलों की नजर में कांग्रेस आलाकमान और ज्यादा टूटा नजर नहीं आएगा? 

ये सवाल जाहिर हैं कि ऐसे हैं जो गलियारों में घूमते ही रहेंगे। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं पी.के. के सामने की चुनौतियों की। सबसे बड़ी चुनौती तो अलग-अलग राज्यों में खेमेबाजी और धड़ेबाजी की है। सुना है कि पी.के. के करीबियों का कहना है कि जब पूरी इमारत ही जर्जर हो तो एक कमरा ठीक करवाने से काम नहीं चलेगा। यह बात अपनी जगह सही है। लेकिन कांग्रेस पर भाजपा परिवारवाद का आरोप लगाती है, एक बड़ा वर्ग गांधी-नेहरू परिवार से सियासी घृणा करने लगा है और कांग्रेस नेताओं को लगता है कि गांधी-नेहरू परिवार ही जोडऩे वाली गोंद का काम करता है, जिसके नहीं रहने पर कांग्रेस पूरी तरह से बिखर जाएगी, कमजोर हो जाएगी, खेमेबाजी बढ़ जाएगी। 

बी.बी.सी. के संवाददाता रहे मशहूर पत्रकार मार्क टुली के सामने भी यही सवाल रखा गया था। उन्होंने एक अखबार में छपे अपने लेख में इसका जिक्र किया है। उनका कहना था कि गांधी-नेहरू परिवार के बिना कांग्रेस कमजोर हो जाएगी, खेमेबाजी की शिकार हो जाएगा, टूट जाएगी। यह बात अगर सही है तो अभी गांधी परिवार के रहते हुए भी तो कांग्रेस इसी कमजोरी, खेमेबाजी के दौर से गुजर रही है। ऐसे में क्या यह अच्छा नहीं होगा कि गांधी-नेहरू परिवार खुद को हाशिए पर रखे। 

रामचंद्र गुहा ने भी हाल ही में अपने लेख में गांधी-नेहरू परिवार से राजनीति से हटने की अपील की है ताकि कांग्रेस को बचाया जा सके। उनका यहां तक कहना है कि प्रियंका गांधी को अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए। राहुल गांधी को खेलकूद और एडवैंचर की तरफ ध्यान देना चाहिए। सोनिया गांधी को चूंकि शास्त्रीय संगीत पसंद है तो उन्हें इसी में ध्यान लगाना चाहिए। यह अपने आप में तल्ख अंदाज में लिखा गया लेख है लेकिन मोदी-योगी काल में हो रही राजनीति को देखते हुए गुहा को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता। तो क्या यह माना जाए कि पी.के. कांग्रेस की एक तरह से कमान संभाल लेंगे और यह संदेश देने की कोशिश होगी कि कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार के सीधे दखल से मुक्त हो गई है? क्या इसे बुजुर्ग नेता पचा पाएंगे? 

सबसे बड़ी बात है कि पी.के. आऊट ऑफ बाक्स कौन-सा आइडिया लेकर आते हैं। आपको ध्यान होगा कि कांग्रेस के साथ पिछली बार बातचीत के दौर फेल होने के बाद पी.के. ने गोवा में अपने कुछ करीबियों के बीच कहा था कि मोदी-अमित शाह वाली भाजपा जिस तरह की आक्रामक राजनीति कर रही है उसे पर लंबी लकीर आऊट ऑफ बाक्स आइडिया से ही खींची जा सकती है। 

उनका कहना था कि विपक्ष एक हो जाएगा तो मोदी हार जाएंगे, इस मुगालते में किसी को नहीं रहना चाहिए। पी.के. ने तब कहा था कि भाजपा जैसी पाॢटयां 30-32 फीसदी वोट लाने के बाद सत्ता के  केन्द्र में बनी रहती हैं और आसानी से हटती नहीं। ऐसे में राहुल गांधी की कांग्रेस को लंबा इतंजार करना पड़ सकता है। अब जब पी.के. कांग्रेस में आ जाएंगे तो भी क्या उनका यही रवैया रहेगा? सबसे बड़ी बात कि आऊट ऑफ बाक्स आइडिया कौन सा है जो 2024 में मोदी युग का अंत कर देगा? 

एक बात पी.के. करते रहे हैं जिस पर वह जोर दे सकते हैं। उनका कहना है कि अगर भारत के 2 हिस्से किए जाएं और एक हिस्से में असम, बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु को रखा जाए तो इन राज्यों में लोकसभा की कुल लगभग 200 सीटें आती हैं। भाजपा यहां से ज्यादा से ज्यादा 50 सीटें जीतने की क्षमता रखती है । ऐसे में 150 सीटें गैर भाजपा दलों के खाते में जाती हैं। 

बंगाल में ममता, ओडिशा में नवीन पटनायक, तेलंगाना में चन्द्रशेखर राव, आन्ध्र प्रदेश में जगनमोहन रैड्डी और तमिलनाडु में स्टालिन। आगे पी.के. कहते हैं बाकी की अब लगभग 350 सीटें बचती हैं। कांग्रेस अगर इन 350 सीटों में से 100 भी जीत जाती है तो विपक्षी खेमे की करीब 250 सीटें हो जाती हैं, जो मोदी की भाजपा में हलचल पैदा करने के लिए काफी हैं। अगर पी.के. कह रहे हैं कि कांग्रेस को 350-360 सीटों पर ही चुनाव लडऩा चाहिए तो इसके पीछे उनकी यह 150 और 100 सीटों वाली रणनीति है। अब यह काम कैसे हो पाएगा? 

यहां पी.के. को लगता है कि कांग्रेस को वहां जाना ही नहीं चाहिए जहां कोई एक गैर-भाजपा पार्टी मजबूत है। जैसे बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना। बदले में इन दलों को उन 350 सीटों पर नजर नहीं डालनी चाहिए जहां कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। कुल मिलाकर कुछ बलिदान कांग्रेस करे, कुछ बलिदान ममता, स्टालिन, जगन जैसे दल करें। यह एक ऐसा फार्मूला है जो कम से कम सुनने में अच्छा लग रहा है, कुछ-कुछ हकीकत के करीब भी लगता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या आज की तारीख में कांग्रेस 350 सीटों पर अपने सियासी दुश्मनों को चुनौती देने और 100 सीटें निकालने की क्षमता रखती है? 

देश में माना जाता है कि 200 के आसपास सीटें हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता है। लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव गवाह हैं कि भाजपा ने 92 से 94 फीसदी सीटों पर कब्जा किया। जानकारों का कहना है कि भले ही पी.के. कह रहे हों कि कांग्रेस को 350 से 360 सीटों पर लडऩा चाहिए, लेकिन आज की तारीख में क्या कांग्रेस के पास इतने योग्य उम्मीदवार हैं? सवाल उठता है कि पी.के. के फार्मूले में यू.पी. और बिहार कहां फिट बैठते हैं, जहां मायावती, अखिलेश और तेजस्वी जैसे मजबूत नेता हैं और जहां की कुल 120 सीटें लोकसभा चुनावों के नतीजे तय करती रही हैं? कुल मिला कर चुनौतियां बहुत हैं। कांग्रेस आलाकमान को लगता है कि पी.के. जैसे चुनाव जिताने वाले जादूगर का जादू चल गया तो बल्ले-बल्ले, नहीं तो थल्ले-थल्ले तो है ही।-विजय विद्रोही
 

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!