कांग्रेस को लीपापोती की नहीं, बड़ी सर्जरी की जरूरत

Edited By ,Updated: 17 May, 2022 04:24 AM

congress doesn t need shaving it needs major surgery

उदयपुर चिंतन शिविर से कांग्रेस किस ओर जाएगी? क्या ङ्क्षचतन शिविर व्यर्थ की कवायद थी या यह पार्टी को पुनर्जीवित करेगा। यह सब इस शिविर में लिए गए निर्णयों को लागू करने पर नि

उदयपुर चिंतन शिविर से कांग्रेस किस ओर जाएगी? क्या ङ्क्षचतन शिविर व्यर्थ की कवायद थी या यह पार्टी को पुनर्जीवित करेगा। यह सब इस शिविर में लिए गए निर्णयों को लागू करने पर निर्भर करता है। 

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि शिविर को एक रस्म नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा ‘मैं यह सुनिश्चित करने के लिए आपके पूर्व सहयोग का अनुरोध करती हूं कि उदयपुर से जो एक स्पष्ट तथा ऊंचा संदेश जाता है वह यह कि हमारी पार्टी के त्वरित पुनरुद्धार के लिए एकता, एकजुटता, दृढ़ निश्चय तथा और प्रतिबद्धता की जरूरत है।’ यह अत्यंत जरूरी ङ्क्षचतन शिविर पहली ऐसी कार्रवाई के 9 वर्षों के बाद आयोजित हुआ है। 

यह शिविर लगातार पराजयों के बाद जी-23 विद्रोहियों द्वारा उठाए गए गंभीर मुद्दों, जिनमें नेतृत्व का संकट, संगठनात्मक कायाकल्प, पुनर्जीवन तथा चुनावी रणनीति शामिल हैं, के बीच आयोजित किया गया। इसके साथ ही पार्टी ने सामान्य व्यक्ति के साथ अपना संपर्क खो दिया है। संभवत: इसे ठीक करने के लिए शिविर में कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक पद यात्रा आयोजित करने की घोषणा की गई ताकि लोगों के साथ संपर्क फिर से बहाल किया जा सके। उदयपुर में प्रत्येक समूह के 6 वरिष्ठ नेताओं के साथ पार्टी 6 व्यापक क्षेत्रों में सिफारिश के बाद आगे आई। वे हैं संगठनात्मक सुधार, राजनीतिक मुद्दे, अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय, कल्याण, शिक्षा तथा रोजगार। 

कांग्रेस कार्य समिति ने रविवार को संगठनात्मक सुधारों के लिए अधिकतर सुझावों को स्वीकृति प्रदान कर दी। इनमें एक परिवार एक टिकट का नियम, कांग्रेस कार्य समिति सहित सभी स्तरों पर 50 वर्ष से कम आयु के लोगों का 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व तथा सभी स्तरों पर पदों पर बैठे लोगों के लिए 5 वर्ष के कार्यकाल की सीमा। कहने की जरूरत नहीं कि गांधियों को सभी नियमों से छूट प्राप्त है। 

हालांकि जिस चीज का अभाव है वह और भी अधिक चमकदार है। उदाहरण के लिए, सर्वाधिक महत्वपूर्ण  मुद्दों में से एक है शीर्ष पर नेतृत्व का संकट। पार्टी द्वारा 2019 के चुनाव हारने के बाद 6 अगस्त को राहुल गांधी ने पार्टी प्रमुख के तौर पर इस्तीफा दे दिया था तथा सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनीं। हालांकि गांधियों के वफादार यह मांग करते हैं कि राहुल को फिर से अध्यक्ष बनना चाहिए लेकिन उदयपुर घोषणापत्र इसे लेकर चुप है। 

दूसरा है एक परिवार एक टिकट के निर्णय के बारे में। आपको याद होगा कि 2019 के चुनाव परिणामों के बाद कैसे राहुल गांधी ने अशोक गहलोत तथा पी. चिदम्बरम जैसे वरिष्ठ  नेताओं की अपने परिवारों की सफलता के लिए काम करने हेतु आलोचना की थी। कांग्रेस को वंशवाद की राजनीति छोड़ देनी चाहिए। 

तीसरा है संसदीय बोर्ड को पुनर्जीवित करने बारे जो जी-23 समूह की मांगों में से एक है। पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभालने के बाद उन्होंने 1992 में बोर्ड को बंद कर दिया था। यद्यपि उपसमूहों ने संसदीय बोर्ड को पुनर्जीवित करने का सुझाव दिया था, कांग्रेस कार्य समिति ने इसे ठुकरा दिया था। महिला विंग, एन.एस.यू.आई. सेवादल आदि जैसी वर्तमान पार्टी इकाइयों को सक्रिय करने की बजाय शिविर में पार्टी को लड़ाई के लिए तैयार करने के लिए सार्वजनिक अंतरदृष्टि, चुनाव प्रबंधन तथा काडर प्रशिक्षण के नए विभागों के गठन का निर्णय भी किया गया। 

चौथे, राजनीतिक संकल्प ने गठबंधनों के लिए एक दरवाजा खुला रखा है। घोषणा में कहा गया है कि पहली प्राथमिकता घर को व्यवस्थित करना है। एक बार जब हम यह कर लेंगे तो फिर हम गठबंधनों का पता लगाने के लिए आगे बढ़ेंगे। 1998 के बाद से कांग्रेस अपनी सरकार नहीं बना सकी तथा राजनीतिक शक्तियों के उभार के बाद से यह भाजपा का विरोध करने के लिए गठबंधनों पर अधिक निर्भर हो गई है। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद से सत्ता में नहीं है। 

बिहार में 1990, तमिलनाडु में 1967, पश्चिम बंगाल में 1973, ओडिशा में जब से बीजद सत्ता में आई है, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में 2014 के बाद से सत्ता में नहीं है। सोनिया गांधी कांग्रेस नीत यू.पी.ए. को 2004 तथा 2009 में सत्ता में लाई थीं। पार्टी की करीब 180 लोकसभा सीटों पर लगभग कोई उपस्थिति नहीं है। यहां तक कि एक जूनियर पार्टनर के तौर पर भी इसे एक मजबूत चुनौती देने के लिए गठबंधन बनाने की जरूरत है। विरोधाभास यह है कि कांग्रेस बिना लाभ के सत्ता में नहीं आ सकी और फिर भी यह अपने सहयोगियों के साथ संघर्ष में आए बिना ऐसा नहीं कर सकती। 

कांग्रेस को यह पहचान करनी चाहिए कि भाजपा कहां कमजोर है और 2024 के लिए गठबंधन के साथ या उसके बिना चुनावी रणनीति तैयार करनी चाहिए। भाजपा लगातार कोशिशों के बावजूद पूर्व तथा दक्षिण में अपने पांव नहीं जमा पाई। अंतिम लेकिन आखिरी नहीं, शिविर ने दिखा दिया है कि पार्टी गांधियों के बिना नहीं हो सकती। इस वर्ष प्रारंभिक परीक्षा गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश में होगी और फिर कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्य 2023 में चुनावों के लिए जाएंगे। ये प्रमुख राज्य हैं जहां कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन करना और चुनाव जीतना है ताकि 2024 के आम चुनावों के लिए भाजपा के लिए चुनौती पेश कर सके। 

जहां राहुल ने यह कहा है कि ‘हम जीतेंगे’, सोनिया ने अपने समापन बयान में पार्टी कार्यकत्र्ताओं को एक स्पष्ट आह्वान किया और कहा कि ‘हम जीतेंगे, हम जीतने जा रहे हैं और यह हमारी इच्छाशक्ति तथा हमारा संकल्प है’। लेकिन इसके लिए कांग्रेस को एक नए नैरेटिव, स्पष्ट विचारधारा, सामरिक गठजोड़ों, नेतृत्व तथा स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, इन सभी का उसके पास अभाव है। कांग्रेस को चलते रहने और आगे बढऩे के लिए  महज एक लीपापोती की नहीं बल्कि एक बड़ी सर्जरी की जरूरत है।-कल्याणी शंकर

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