‘अलग-थलग’ या फिर सशक्त हैं देवेंद्र फडऩवीस

Edited By ,Updated: 06 Nov, 2019 12:58 AM

isolated or devendra fadnavis is strong

कि भाजपा तथा शिवसेना में बातचीत का दौर चल रहा है, ऐसे में इसमें कोई विरोधाभास नहीं होना चाहिए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस और सशक्त होकर शिवसेना से पार पाएंगे या फिर अलग-थलग पड़ जाएंगे। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बातचीत पर विराम...

क्योंकि भाजपा तथा शिवसेना में बातचीत का दौर चल रहा है, ऐसे में इसमें कोई विरोधाभास नहीं होना चाहिए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस और सशक्त होकर शिवसेना से पार पाएंगे या फिर अलग-थलग पड़ जाएंगे। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बातचीत पर विराम लगाते हुए भाजपा को जोर देकर कहा है कि उसने शिवसेना के साथ बराबरी की हिस्सेदारी का वायदा किया था जिसमें मुख्यमंत्री पद पर दोनों पार्टियां अढ़ाई-अढ़ाई वर्ष तक अपना उम्मीदवार बिठाएंगी। वहीं दिल्ली से इस मुद्दे पर कुल मिलाकर चुप्पी साधी गई। यह भी नहीं पता चल रहा कि क्या अंदरखाते अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच कोई ऐसी डील पर समझौता हुआ कि नहीं।

वहीं फडऩवीस ने सेना पर जोर देकर कहा है कि उसके साथ 50-50 फार्मूले पर कोई डील नहीं हुई। इसी को लेकर उद्धव ठाकरे ने बातचीत आगे बढ़ाने से मना कर दिया और कहा है कि वह झूठ बोल रहे हैं। उधर नई विधानसभा बनाने की अंतिम तिथि 8 नवम्बर पास आ रही है। ऐसे में फडऩवीस अपने सभी दोस्तों तथा सहयोगियों से अलग-थलग पड़े दिखाई दे रहे हैं।

विधानसभा चुनाव के नतीजों के एक दिन बाद युवा भाजपा नेता फडऩवीस पार्टी की योजना तहत भविष्य के लिए प्रयासरत रहे। विधानसभा चुनावों में पार्टी को 130-140 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी। इसके बावजूद पार्टी 105 सीटें ही हासिल कर सकी। इसी परिणाम ने फडऩवीस के दोबारा मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को कमजोर कर दिया। इस पर फडऩवीस ने हंसी में कह डाला कि देखते हैं कि मैं नागपुर जाता हूं या फिर पुणे।

नागपुर फडऩवीस का गृह निर्वाचन क्षेत्र है और पुणे से भाजपा के राज्य प्रमुख तथा फडऩवीस को चुनौती देने वाले चंद्रकांत पाटिल आते हैं जिन्होंने कांटे की टक्कर में चुनाव जीता था। चुनावों में फडऩवीस ने प्रधानमंत्री मोदी स्टाइल में चुनावी मुहिम में जोरदार तरीके से यह नारा दिया कि ‘पुनह मीच’ मतलब कि मैं दोबारा सत्ता में लौटूंगा या एक बार फिर फडऩवीस सरकार।

उन्होंने चुनावों में आधा दर्जन ऐसे मामले जिसमें ग्रामीण क्षेत्र की मजबूरियां, बारिश के कारण बाढ़, बेरोजगारी शामिल थे, पर जोर दिया। ये मुद्दे सभी के लिए कार्य नहीं कर पाए और इन्होंने उनके दोस्तों तथा सहयोगियों को अलग करके रख दिया। शिवसेना से पार पाने के लिए उन्हें अच्छे दोस्तों की तलाश थी तथा उनका समर्थन हासिल करना जरूरी था मगर दिल्ली से भी उन्हें ये सब हासिल न हुआ और फडऩवीस अकेले पड़े दिखाई दिए।

महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे सफल मुख्यमंत्री होते हुए भी आज वह अकेले पड़ चुके हैं। 31 अक्तूबर 2014 को मुख्यमंत्री बनने के बाद से फडऩवीस मोदी की किताब का एक पन्ना उठाए हुए हैं। वह नौकरशाहों से घिरे हुए थे और अपने कार्यालय में ही अपनी कैबिनेट पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे। विरोधियों के पर काट दिए गए। भूमि घोटाले में नाम आने के बाद एकनाथ खड़से को इस्तीफे के लिए बाध्य होना पड़ा। शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े से पहले मैडीकल एजुकेशन एवं उसके बाद उनसे महत्वपूर्ण स्कूल एजुकेशन का मंत्री पद भी छीन लिया गया। पंकजा मुंडे से भी जल संरक्षण मंत्री पद वापस ले लिया और उनका नाम भी चिक्की घोटाले में आ गया है।

अब फडऩवीस के पास ले-देकर एक ही दोस्त बचा जोकि जल संसाधन एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री गिरीश महाजन हैं। उन्हें शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का समर्थन भी हासिल था। जब कभी भी मुश्किल हालात आए दोनों नेताओं ने फोन पर उस मसले पर बातचीत की। बातचीत के टेबल पर उद्धव जैसे नेता का साथ फडऩवीस के लिए फायदेमंद था। मगर फडऩवीस ने इन पुरानी बातों की खिड़कियों को बंद करते हुए अब कहा है कि भाजपा तथा शिवसेना के मध्य बराबरी की हिस्सेदारी की बात तो कभी हुई ही नहीं।

उद्धव अब फडऩवीस के दूतों के साथ बातचीत करने को तैयार थे। सूत्रों के अनुसार 50-50 का फार्मूला तो उद्धव तथा अमित शाह के बीच मातोश्री में हुआ था। जो फडऩवीस कह रहे हैं वही सत्य है और शाह को फडऩवीस के समर्थन में खुलकर सामने आकर बयान जारी करना चाहिए। मगर दिल्ली बिल्कुल ही मूकदर्शक बनी हुई है।

वहीं शिवसेना के एक नेता ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि यदि शाह हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा संग डील कर सकते हैं तो फिर महाराष्ट्र में क्यों नहीं। उन्हें इस समस्या का हल ढूंढना चाहिए। हालांकि ऐसे बयान की तह तक न पहुंचा जा सका और यह एक मशविरे की तरह ही लगा। फडऩवीस की आंखों में यह चुभ गया।

वहीं दिल्ली में कुछ अंदरूनी सूत्रों से पता चला है कि अमित शाह शिवसेना के साथ किसी भी बातचीत के लिए सामने नहीं आना चाहते। शाह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह तभी पिक्चर में आएंगे यदि इस मामले पर कोई वास्तविक प्रगति होगी। सूत्रों के अनुसार इस वास्तविक प्रगति का मतलब सेना को डिप्टी सी.एम. का पद देना और उनकी पार्टी को उनकी सीटों के अनुरूप मंत्री पद देने से है। वोटों की जीत के प्रतिशत में अंतर है। महाराष्ट्र में भाजपा का मकसद एक प्रमुख पार्टी के तौर पर उभरना और कांग्रेस की राह को बंद करना है।

राजनीतिक विशेषज्ञ प्रकाश अकोलकर का कहना है कि फडऩवीस ने चबाने से ज्यादा काट खाया है। प्रकाश का मानना है कि 2014 में शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा ने भाजपा को समर्थन देने की सोची थी मगर शिवसेना के साथ गठबंधन करना फडऩवीस की ही पसंद थी। अब पार्टी का उच्च नेतृत्व यह कहने पर मजबूर है कि फडऩवीस ने ही ये मुश्किलें पैदा कीं, अब वह ही इससे निपटें।     एम. गाडगिल (मुमि)

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