Breaking




पत्रकारों को घोटालों का हिस्सा बनने की बजाय उनका पर्दाफाश करना चाहिए

Edited By ,Updated: 31 May, 2023 05:50 AM

journalists should expose scams instead of being part of them

यह देखते हुए कि असमी जनता की गतिविधियां पूरी तरह से मुख्यधारा मीडिया पर निर्भर हैं, क्या पत्रकारों को उन समस्याओं की ओर ध्यान दिलाने के लिए कपटपूर्ण चालों का इस्तेमाल करना चाहिए जो उनके अनुकूल हों?

यह देखते हुए कि असमी जनता की गतिविधियां पूरी तरह से मुख्यधारा मीडिया पर निर्भर हैं, क्या पत्रकारों को उन समस्याओं की ओर ध्यान दिलाने के लिए कपटपूर्ण चालों का इस्तेमाल करना चाहिए जो उनके अनुकूल हों? यदि गुवाहाटी स्थित कुछ टैलीविजन पत्रकार कथित रूप से एक बड़े वित्तीय घोटाले में शामिल हैं तो क्या मीडिया को जनता की चिन्ता को ध्यान में रखते हुए इसकी रिपोर्ट नहीं करनी चाहिए। क्या स्थानीय समाचार पत्र तथा  समाचार चैनल यह मान लेते हैं कि किसी घोटाले की पर्याप्त कवरेज, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक  द्वारा उसकी पहचान किए जाने के बावजूद,  नहीं किए जाने की इजाजत होनी चाहिए ताकि सामान्य लोग अंधेरे में रहें? 

जब मुख्यधारा मीडिया आऊटलैट्स जानबूझकर नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एन.आर.सी.) से संबंधित असम में हुए घोटाले के समाचारों को मात देते हैं तब सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले अग्रणी भूमिका में आ जाते हैं। किन्हीं प्रत्यक्ष प्रदर्शनों के बगैर, उन टैलीविजन हस्तियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का मुद्दा जनता के बीच पहुंच गया। वैकल्पिक मीडिया इस्तेमालकत्र्ता (जिनमें कुछ वरिष्ठ पिं्रट जर्नलिस्ट शामिल हैं) ने जोरदार तरीके से स्पष्ट कर दिया कि उन भ्रष्ट मीडिया कर्मियों को कानून के अंतर्गत सजा मिलनी चाहिए क्योंकि उन्होंने असम के लोगों के साथ एन.आर.सी. को सही करने के अभियान (सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के अंतर्गत) में धोखा किया है। 

यह विवाद तब शुरू हुआ जब राज्य एन.आर.सी. के पूर्व संयोजक ने अपने पूर्ववर्ती के खिलाफ दो एफ.आई.आर. दर्ज करवाईं, जिनमें असम में 1951 के एन.आर.सी. का नवीनीकरण करने के दौरान भ्रष्टाचार तथा धन शोधन का आरोप लगाया गया था। तत्कालीन शीर्ष एन.आर.सी. अधिकारी हितेष देवसरमा ने प्रतीक हजेला (जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2013 में राज्य एंड आर.सी. का संयोजक नियुक्त किया गया था, के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवाईं (एक असम पुलिस के अपराध जांच विभाग के पास तथा अन्य मुख्यमंत्री के सतर्कता एवं भ्रष्टाचार विरोधी विंग के पास)। 

देवसरमा ने आरोप लगाया कि एन.आर.सी. प्रमुख के तौर पर हजेला के कार्यकाल के दौरान भारी वित्तीय कुप्रबंधन हुआ। उन्होंने यह भी दावा किया कि एन.आर.सी. मसौदा (जिसे 31 अगस्त 2019 को जारी किया गया) में खराब सॉफ्टवेयर की मदद से हजारों की संख्या में अवैध प्रवासियों के नाम शामिल किए गए। उन्होंने मांग की कि इसकी देश विरोधी गतिविधियों के अंतर्गत गम्भीर अपराध के तौर पर जांच की जानी चाहिए। न केवल देवसरमा से, हजेला विभिन्न संगठनों की ओर से भी एफ.आई.आर. का सामना कर रहा है जिनमें असम पब्लिक वक्र्स (ए.पी.डब्ल्यू) शामिल हैं, असम एवं आर.सी. पर सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख याचिका दायरकर्ता। 

ए.पी.डब्ल्यू. के अध्यक्ष अभिजीत सरमा ने बाद में विप्रो लिमिटेड (जिसने प्रक्रिया में सिस्टम इंटैग्रेटर के तौर पर कार्य किया)के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करवाई जिसमें भ्रष्टाचार का हवाला दिया गया। विप्रो को एन.आर.सी. नवीनीकरण प्रक्रिया के लिए अस्थायी डाटा एंट्री आप्रेटर्स (डी.ई.ओज) उपलब्ध करवाने का कार्य किया गया था। फिर भी विप्रो को सिस्टम डिजाइन तथा डिवैल्पमैंट, एन.आर.सी. सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन्स की तैनाती तथा फैलाव, डॉटा सैंटर आप्रेशन आदि से संबंधित किसी भी गतिविधि के लिए उपअनुबंध की इजाजत नहीं थी, फिर भी इसने अधिकारियों की पूर्व स्वीकृति के बगैर एक उप ठेकेदार को शामिल किया गया। 

एक जाने-माने असमी उद्यमी ने भी विप्रो एंड इंटैग्रेटिड सिस्टम एवं सर्विसिज (जो उप ठेकेदारों के तौर पर काम कर रहे थे तथा जिन्हें मालिक उत्पल हजारिका द्वारा प्रतिनिधित्व दिया गया था) के साथ मिलकर हजेला के खिलाफ मुकद्दमा किया, नवीनीकरण प्रक्रिया के दौरान 155 करोड़ रुपए के धन शोधन में उसकी भूमिका के लिए। प्रसिद्ध फिल्म निर्माता तथा एक प्रत्यक्ष सोशल मीडिया यूजर लुइत कुमार बर्मन ने निजी तौर पर शहर के पलटन बाजार पुलिस स्टेशन पर एफ.आई.आर. दर्ज करवाई क्योंकि पुलिस स्टेशन द्वारा उनकी शिकायत कर कोई कार्रवाई नहीं की गई, बर्मन अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस को निर्देश देने की याचिका के साथ कामरूप (मैट्रोपोलिटन) मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट की अदालत में पहुंचे। 

मगर सी.जे.एम. अदालत  ने मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरोपों की जांच उसके क्षेत्राधिकार में नहीं है। 18 मई के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि ‘आरोपी को प्रस्तुत करने के लिए निर्देश देना उसके क्षेत्राधिकार में नहीं है।’ तथा ‘कानून के अनुसार कोई भी न्यायाधिकार आरोपी को सजा नहीं दे सकता।’ लेकिन अदालत ने बर्मन को उचित मंच पर जाने की छूट दी जो उनकी शिकायत का समाधान कर सके। मगर स्थानीय मीडिया आऊटलैट्स के एक वर्ग ने इस तरह रिपोर्ट दी कि जैसे अदालत ने न्याय के लिए रास्ता बंद कर दिया हो। हालांकि शिकायतकत्र्ता ने अन्य अदालत में जाने का फैसला किया।

उसका मानना है कि 31 मार्च 2019 को समाप्त हो रहे वर्ष के लिए कैग की रिपोर्ट, जिसमें किसने हजेला तथा विप्रो के खिलाफ न्यायिक कार्रवाई करने का सुझाव दिया, का सम्मान होना चाहिए। बर्मन का कहना है कि हजेला ने विप्रो को डी.ई.ओज. की आपूर्ति करने का कार्य में पारदर्शिता करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया। उन डी.ई.ओज को 2015-2019 के दौरान केवल 5500 से 9100 रुपए प्रतिमाह (प्रति व्यक्ति) चुकाए गए जबकि एन.आर.सी. अधिकारियों ने एक डी.ई.ओज के लिए प्रतिमाह 14,500 से 17,500 रुपए स्वीकृत किए थे। 

कैग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि एन.आर.सी. नवीनीकरण प्रक्रिया के दौरान उचित योजना के अभाव के कारण सैंकड़ों की संख्या में सॉफ्टवेयर यूटिलिटीज जल्दबाजी में शामिल की गई। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस सारी कार्रवाई के लिए अत्यंत सुरक्षित तथा विश्वसनीय सॉफ्टवेयर जरूरी था लेकिन उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। कैग ने अंतत: यह कहा कि एक त्रुटि रहित एन.आर.सी. का उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सका, यहां तक कि सरकार द्वारा 1,579 करोड़ रुपए खर्चे जाने थे (और इस प्रक्रिया में करीब 50,000 सरकारी कर्मचारी शामिल थे)। 

6000 डी.ई.ओज. के कम वेतन (जिन्हें देश के न्यूनतम वेजिज कानून के अंतर्गत वेतन के प्रावधान के अंतर्गत अभी अपनी बकाया राशि मिलनी है) बारे बाद में डिजिटल मीडिया आऊटलैट्स के बारे में चर्चा की गई जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में कुशल, अद्र्धकुशल तथा अकुशल कर्मचारियों के  रोजाना सरकारी न्यूनतम वेजिज की बात को उठाया गया है। यह कहा गया  कि असम में एक अकुशल कर्मचारी भी कानूनी तौर पर प्रतिदिन 240 रुपए का दावा कर सकता है (प्रति माह 7200 रुपए), जबकि कुशल कर्मचारी को प्रतिदिन कम से कम 350 रुपए  प्रतिदिन (10,500 रुपए प्रति माह) मिलने चाहिएं। जिम्मेदार व्यक्तियों ने इस पर टिप्पणी करते हुए दावा किया कि कम से कम 3 टैलीविजन पत्रकार भी एन.आर.सी. नवीनीकरण प्रक्रिया में धन शोधन के लाभार्थी थे। सोशल मीडिया पर उनके नाम बताए जाने तथा शॄमदा किए जाने के बावजूद वे आरोपों को लेकर चुप रहे। 

यद्यपि जैसा कि हजेला ने दावा किया है (जिसका शर्मनाक तरीके से कुछ पत्रकार प्रचार कर रहे हैं), एन.आर.सी. का जारी किया गया मसौदा अंतिम नहीं है और इसे अभी तक भारत में महापंजीयक द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है। विभिन्न स्थानीय संगठनों तथा प्रमुख व्यक्तियों ने असम में एन.आर.सी. के भाग्य को लेकर गम्भीर ङ्क्षचता जताई है और वे एन.आर.सी. में अनियमितताओं की उच्च स्तरीय जांच की आशा कर रहे हैं ताकि दोषियों को कानून के अनुसार सजा मिल सके। बड़ी संख्या में युवाओं ने असम की मूल जनसंख्या के सुरक्षित भविष्य के लिए अपनी जानें कुर्बान की हैं। स्थानीय मीडिया को आवश्यक तौर पर ईमानदारीपूर्वक अपनी भूमिका निभानी चाहिए ताकि असम (बाद में पूरा देश) एक असल एन.आर.सी. प्राप्त कर सके।-नवा ठाकुरिया

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Lucknow Super Giants

    Royal Challengers Bengaluru

    Teams will be announced at the toss

    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!