कश्मीर के लिए एक अर्थपूर्ण वार्ता की जरूरत

Edited By Updated: 19 Jun, 2021 04:58 AM

kashmir needs a meaningful dialogue

कश्मीर किधर जा रहा है? कश्मीर मामले की पेचीदगियों को देखते हुए केंद्र द्वारा ज मू-कश्मीर को दिए गए विशेष संवैधानिक दर्जे को खत्म करने के 20 महीनों बाद भविष्य के घटनाक्रमों की

कश्मीर किधर जा रहा है? कश्मीर मामले की पेचीदगियों को देखते हुए केंद्र द्वारा जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष संवैधानिक दर्जे को खत्म करने के 20 महीनों बाद भविष्य के घटनाक्रमों की दिशा बारे भविष्यवाणी करना कठिन है।

ऐसी रिपोर्ट है कि केंद्र गुपकार गठबंधन, जिसकी अध्यक्षता नैशनल कांफ्रैंस के अध्यक्ष डा. फारूक अब्दुल्ला कर रहे हैं, की 5 पाॢटयों के साथ वार्ता करने का रास्ता तलाश रहा है। गुपकार गठबंधन के सांझीदार 9 जून को श्रीनगर स्थित पी.डी.पी. अध्यक्षा महबूबा मु ती  के आधिकारिक आवास पर मिले थे। बैठक के बाद डा. फारूक अब्दुल्ला ने पत्रकारों को कहा था कि ‘‘हमने (वार्ता के लिए) दरवाजे बंद नहीं किए हैं। यदि बुलाया गया तो हम इस पर गौर करेंगे।’’ 

कश्मीर में स्थिति उतनी सामान्य नहीं है जितनी दिखाई देती है। यहां पहियों के भीतर पहिए हैं। कोई भी सुनिश्चित नहीं हो सकता कि कौन-सा राजनीतिक दल किसकी शह पर चल रहा है। महबूबा मु ती की स्थिति विशेष तौर पर समस्यापूर्ण है। उनकी पार्टी के कुछ महत्वपूर्ण नेता अभी भी सलाखों के पीछे हैं। केंद्र के साथ वार्ता के लिए राजी होने से पहले वह चाहेंगी कि उन्हें रिहा कर दिया जाए। 

दरअसल 5 अगस्त 2019 को संविधान की धारा 370 के तहत केंद्र द्वारा विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद से कश्मीर की कुल स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं हुए हैं। यह कोई रहस्य नहीं है कि केंद्र सरकार की कार्रवाई के बाद भाजपा नेतृत्व ने पार परिक कश्मीरी नेताओं को बदनाम करने तथा एक नया नेतृत्व खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मगर इनके प्रयास व्यर्थ साबित हुए हैं। इससे भाजपा नेताओं के पास गुपकार गठबंधन के स्थापित नेताओं के पास वापस लौटने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा। 

यह भी बताया जाता है कि भाजपा के कुछ नेता पीपुल्स कांफ्रैंस के सज्जाद लोन तथा ज मू-कश्मीर की अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी के स पर्क में हैं। मगर उनका घाटी में एक सीमित राजनीतिक आधार है और इसलिए गुपकार गठबंधन के नेता महत्वपूर्ण हैं। दरअसल क्षेत्रीय नेताओं तथा केंद्रीय नेतृत्व के बीच विश्वास बहाली का काम काफी बढ़ा है। कोई भी भविष्य के राजनीतिक रुझानों बारे सुनिश्चित नहीं हो सकता। बहुत कुछ केंद्र शासित क्षेत्र कश्मीर के लिए केंद्र के नए राजनीतिक पैकेज पर निर्भर करता है। 

क्या मोदी सरकार ने इस संबंध में होमवर्क किया है? मुझे संदेह है। अभी तक इसने कश्मीर के पुराने राजनीतिक प्रहरियों के व्यवहार का आकलन करने का प्रयास किया है। इस रोशनी में केंद्र को वर्तमान राजनीतिक गतिरोध को तोडऩे के लिए एक ल बा सफर तय करना है। सबसे पहले इसे अपना होमवर्क सही तरह से करना है तथा उसके बाद घाटी की जमीनी हकीकतों को ताॢकक रूप से लेना है। 

मैं नई दिल्ली के 5 अगस्त 2019 के कदम बारे बात नहीं करना चाहता जिसने धारा 370 के अंतर्गत ज मू-कश्मीर के लिए सभी विशेष प्रावधानों को समाप्त कर दिया था। हालांकि मेरा जोरदार तरीके से मानना है कि केंद्र सरकार का प्रमुख कार्य कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करना होना चाहिए। यह कश्मीर के लोगों के लिए एक स मान तथा गौरव का मामला है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निर्भर करता है कि वह कश्मीर को भारतीय गणराज्य के एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तथा स्थिति में उसके अनुरूप उपयुक्त सुधार लागू करें। मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी इतिहास के परीक्षण पर खड़े हैं। उन्होंने देश के हितों में कड़ाई तथा निर्णयपूर्वक कार्य नहीं किया। कश्मीर पर तर्कसंगत विचार के लिए उन्हें अपनी पार्टी की वोट बैंक राजनीति तथा संकीर्ण गणनाओं द्वारा निर्देशित नहीं होना चाहिए। 

निश्चित तौर पर विकल्प बहुत कम हैं। प्रधानमंत्री मोदी को यह तथ्य समझना चाहिए कि समय समस्याओं को नहीं सुलझाता, मगर राजनीतिक इच्छाशक्ति सुलझा सकती है। देश के सत्ताधारी वर्ग के साथ आज समस्या यह है कि वे एक कठोर ढांचे के भीतर काम करता है। व्यापक दूरदृष्टि के अभाव में उनके लिए आज से परे मामलों को देखना कठिन हो जाता है। अधिकतर वर्तमान समस्याएं अपनी खुद की गैर-प्रतिक्रियात्मक तथा गंभीर मनोस्थिति के अभाव की दर्दनाक कहानियां बयान करती हैं। 

कुछ विरोधाभासों को नजरअंदाज कर दें तो भारत काफी हद तक एक सहनशील समाज बना रहा है। एक व्यापक राष्ट्रीय परिदृश्य में देखें तो कश्मीर भारत के लिए एक रणनीतिक जरूरत से कहीं अधिक है। यह एक सांझे इतिहास के लिहाज से धर्मनिरपेक्षता का एक प्रतीक है। तीर्थयात्रा के एक ङ्क्षहदू केंद्र का हिस्सा होने के अतिरिक्त कश्मीर ने मेल-मिलाप की सूफी पर परा को भी समृद्ध किया है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद तथा मुस्लिम कट्टरवाद ने कश्मीर की पार परिक विरासत को छिन्न-भिन्न किया है। 

कश्मीर बिकाऊ नहीं है। सभी कश्मीरियों को इस साधारण तथ्य को समझना चाहिए। कश्मीर घाटी में सामान्य माहौल पंडितों तथा आतंकवाद के अन्य पीड़ितों की वापसी के लिए उचित स्थितियां बनाने से शुरू होना चाहिए। कश्मीर आज एक नई रणनीति की मांग करता है जो भारत के एक ऐसे देश के तौर पर उत्थान को प्रोत्साहित करता है जो इसकी एकता, स्वायत्तता तथा स मान को बचा सके।इतना महत्वपूर्ण है घाटी में नए आॢथक अवसर पैदा करना ताकि कश्मीरियों के लिए बेहतर नौकरियां उपलब्ध करवाई जा सकें। इस बड़े कार्य में गुपकार गठबंधन के नेताओं को भी बराबर की हिस्सेदारी निभाने की जरूरत है ताकि जिस नए कश्मीर की हम बात करते हैं उसके लिए सही स्थितियां पैदा की जा सकें।-हरि जयसिंह

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