Edited By ,Updated: 23 Apr, 2021 01:13 AM
ऑक्सीजन की कमी के कारण नासिक के अस्पताल में हुई 24 लोगों की मौत दिल दहलाने वाली खबर है। ऑक्सीजन की कमी की खबरें देश के कई शहरों से आ रही हैं। कई अस्पतालों में मरीज सिर्फ इसी की वजह से दम तोड़ रहे हैं। कोरोना से रोज हताहत होने वालों की संख्या इतनी...
ऑक्सीजन की कमी के कारण नासिक के अस्पताल में हुई 24 लोगों की मौत दिल दहलाने वाली खबर है। ऑक्सीजन की कमी की खबरें देश के कई शहरों से आ रही हैं। कई अस्पतालों में मरीज सिर्फ इसी की वजह से दम तोड़ रहे हैं। कोरोना से रोज हताहत होने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि कई देशों के नेताओं ने अपनी भारत-यात्रा स्थगित कर दी है। कुछ देशों ने भारतीय यात्रियों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
लाखों लोग डर के मारे अपने गांवों की तरफ दोबारा भाग रहे हैं। नेता लोग भी डर गए हैं। वे तालाबंदी और रात्रि-कफ्र्यू की घोषणाएं कर रहे हैं लेकिन बंगाल में उनका चुनाव अभियान पूरी बेशर्मी से जारी है। ममता बनर्जी ने बयान दिया है कि ‘‘कोविड तो मोदी ने पैदा किया है।’’
इससे बढ़कर गैर-जिम्मेदाराना बयान क्या हो सकता है? यदि मोदी चुनावी लापरवाही के लिए जिम्मेदार हैं तो उससे ज्यादा खुद ममता जिम्मेदार हैं। ममता यदि हिम्मत करतीं तो मुख्यमंत्री के नाते चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगा सकती थीं। उन्हें कौन रोक सकता था?
यह ठीक है कि बंगाल में कोरोना का प्रकोप वैसा प्रचंड नहीं है, जैसा कि वह मुंबई और दिल्ली में लेकिन उसकी चुनाव-रैलियों ने सारे देश को यही संदेश दिया है कि भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है। डरने की कोई बात नहीं है। जब हजारों-लाखों की भीड़ बिना मुखपट्टी और बिना शारीरिक दूरी के धमाचौकड़ी कर सकती है तो लोग बाजारों में क्यों नहीं घूम सकते, कारखानों में काम क्यों नहीं कर सकते, अपनी दुकानें क्यों नहीं चला सकते और यात्राएं क्यों नहीं कर सकते? उन्हें भी बंगाली भीड़ की तरह बेपरवाह रहने का हक क्यों नहीं है?
लोगों की यह लापरवाही ही अब वीभत्स रूप धारण करती जा रही है। इस जनता के जले पर वे लोग नमक छिड़क रहे हैं, जो रेमिडिसिवर का इंजैक्शन 40 हजार रुपए और ऑक्सीजन का सिलैंडर 30 हजार रुपए में बेच रहे हैं। ऐसे कालाबाजारियों को सरकार ने पकड़ा जरूर है लेकिन वह इन्हें तत्काल फांसी पर क्यों नहीं लटकाती और टी.वी. चैनलों पर उसका जीवंत प्रसारण क्यों नहीं करवाती ताकि वह भावी नरपशुओं के लिए तुरंत सबक बने।
जहां तक ऑक्सीजन की कमी का सवाल है, देश में पैदा होने वाली कुल ऑक्सीजन का सिर्फ 10 प्रतिशत ही अस्पतालों में इस्तेमाल होता है। सरकार और निजी कंपनियां चाहें तो कुछ ही घंटों में सारे अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन मुहैया हो सकती है। इसी तरह कोरोना के टीके यदि मुफ्त या सस्ते और सुलभ हों तो इस महामारी को काबू करना कठिन नहीं है। महामारी के अप्रत्याशित प्रकोप के कारण सरकार ने अपनी पीठ खुद ठोकनी बंद कर दी है लेकिन यह सही समय है, जब जनता आत्मानुशासन, अभय और आत्मविश्वास का परिचय दे। यह भी जरूरी है कि नेतागण कोरोना को लेकर दंगल करना बंद करें।
-डा. वेदप्रताप वैदिक