कोरे दिखावे की शादियां

Edited By Updated: 16 Jul, 2024 05:35 AM

marriages of mere show

पिछले दिनों अपनी एक बचपन की मित्र से बात हो रही थी। वह राजस्थान के एक छोटे शहर में रहता है। अक्सर बातें होती हैं। उसने कहा कि बिटिया की शादी तय कर दी है। इस लेखिका ने कहा बधाई हो, ‘‘लड़का क्या करता है।’’उसने बताया कि कालेज में पढ़ाता है।

पिछले दिनों अपनी एक बचपन की मित्र से बात हो रही थी। वह राजस्थान के एक छोटे शहर में रहता है। अक्सर बातें होती हैं। उसने कहा कि बिटिया की शादी तय कर दी है। इस लेखिका ने कहा बधाई हो, ‘‘लड़का क्या करता है।’’उसने बताया कि कालेज में पढ़ाता है। फिर बातों ही बातों में कुछ उदास सुर में बोली, ‘‘मैंने अपना घर बेच दिया है।’’अरे लेकिन क्यों। तुम तो बता रही थीं कि अपनी सारी जमा पूंजी से घर बनवाया था। वह बोली, ‘‘क्या करूं मजबूरी है। शादी जो करनी है। तो क्या लड़के वाले दहेज मांग रहे हैं। लड़के वाले दहेज नहीं मांग रहे। लेकिन कहा है कि बारात का स्वागत किसी फाइव स्टार होटल में ही किया जाना चाहिए और शादी उन्हीं के शहर में जाकर करनी होगी। आजकल तो लड़के वाले नहीं, लड़की वाले लड़कों के शहर में बारात लेकर जाते हैं।हमें भोपाल दस दिन पहले ही जाना पड़ेगा फिर कहा कि लड़के वालों से भी ज्यादा मुसीबत लड़की की है।
‘‘क्या मतलब।’’ 

अब क्या-क्या बताऊं। मेरी एक ही बेटी है, लेकिन उसे जरा सी चिंता नहीं कि हम पर क्या गुजर रही है। वह कहती है कि उसे ऐसा हार चाहिए जो दीपिका पादुकोण ने अपनी शादी में पहना था। हर फंक्शन के लिए किसी बड़े डिजाइनर के कपड़े चाहिएं। जूते- चप्पल सब ब्रांडेड हों। हल्दी से लेकर मेहंदी तक के सारे आयोजन फाइव स्टार में ही हों। वर्ना वह अपने संगी-साथियों को क्या मुंह दिखाएगी कि उसके माता-पिता इतना भी नहीं कर सके, जबकि वह उनकी इकलौती लड़की है। यही नहीं, वह कह रही है कि उसे हनीमून के लिए फ्रांस जाना है। और कम से कम पंद्रह दिन वहां रहना है। 

इस यात्रा का इंतजाम भी हम ही करें। वह ससुराल वालों से इसकी मांग नहीं करेगी। ऐसे में पैसे कहां से लाएं। पैंशन तो बस इतनी ही मिलती है कि हमारा गुजारा हो जाए। सोचा कि आज नहीं तो कल, घर लड़की को ही मिलेगा तो क्या करें। बेचना पड़ा। इतना पैसा आखिर कहां से लाते। मना करते तो लड़की इतनी कलह करती कि जीना मुश्किल हो जाता। खुद सात साल से नौकरी करती है, मगर बचत किसे कहते हैं, नहीं जानती। मित्र की बात सुनकर आश्चर्य भी हुआ और गुस्सा भी आया। कहते तो ये हैं कि लड़कियां अपने माता-पिता की परेशानी पलक झपकते ही समझती हैं। मगर यहां उलटा ही दिखाई दे रहा था। 

यह भी लगा कि इन दिनों जिस तरह से शादियों में बेतहाशा खर्च और दिखावा बढ़ा है, उसमें उन्हें तो कोई परेशानी नहीं होती, जिनके पास बेशुमार दौलत है लेकिन उनकी देखादेखी मध्यवर्ग भी वैसा ही करने पर उतारू हो जाता है। उसके लिए चाहे उसे अपना घर बेचना पड़े या उधार लेना पड़े। जब से मीडिया में सैलीब्रिटिज की जीवनशैली को ज्यादा से ज्यादा दिखाने का चलन बढ़ा है, तब से अधिकांश नौजवान लड़के, लड़कियां वैसा ही करना चाहते हैं जो उन्हें दिख रहा है। एक बार बताया गया था कि अपनी शादी में अनुष्का शर्मा ने जो साड़ी पहनी थी और जिस दुकान से खरीदी थी, वैसी साडिय़ां एक दिन में ही चार सौ बिक गई थीं और उनकी भारी मांग थी।
एक तरफ शादियों में दिखावा न हो, दहेज न हो, इसकी मांग की जाती है, लेकिन ऐसा महसूस होता है कि जितना दहेज और दिखावे का विरोध होता है, वह उतना ही बढ़ता जाता है। वैसे भी इन दिनों दहेज के विरोध में बहुत कम आवाजें सुनाई देती हैं। 

इसके अलावा यह सोच कि शादी एक बार ही होती है, इसलिए वह ऐसी हो कि दुनिया कहे कि ऐसी शादी न कभी देखी न सुनी। और हमेशा याद रखें। मगर हम जानते हैं कि शादी के स्थान से बाहर निकलते ही अक्सर उसकी आलोचना शुरू हो जाती है। कोई खाने की बुराई करता है। कोई साज-सज्जा की तो कोई दूल्हा-दुल्हन की। और ये दिखावे सिर्फ उन शादियों में ही नहीं होते जो माता-पिता द्वारा तय की जाती हैं, उनमें भी होते हैं, जहां लड़के-लड़कियां अपनी पसंद से शादी करते हैं। समय के साथ शादियों के खर्चे इतने बढ़ गए हैं कि  माता-पिता त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। लेकिन ऐसा क्यों है कि बहुत से बच्चों को उनकी परेशानियां दिखाई नहीं देतीं।हाल ही में भारत में विवाह के व्यापार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। जिसमें बताया गया था कि भारत में विवाह का बाजार एक सौ तीस बिलियन डालर का है। इसी में यह कहा गया था कि अमूमन एक शादी में साढ़े बारह लाख रुपए खर्च होते हैं। 

इन दिनों जब आम तौर पर महंगाई और बेरोजगारी के कारण लोगों की आय लगातार कम होती जा रही है, तब साढ़े बारह लाख एक बड़ी रकम है। आज भी भारत में यह हर एक के पास नहीं हो सकती। मगर युवाओं को लगता है कि शादी ही वह आयोजन है जिसमें वे अपने बहुत से सपने पूरे कर सकते हैं। मध्य वर्ग में यह सोच जरूरत से ज्यादा है। वे आंख मूंदकर वही करते हैं जो देखते हैं। और कहते तो हैं ही कि जो दिखता है, उसे ही लोग अपनाते हैं, वही बिकता भी है। आखिर अपने देश में सादगी के प्रति इतनी उपेक्षा क्यों पैदा हो गई है कि दिखावे में बहुत कुछ बलि चढ़ रहा है।-क्षमा शर्मा
 

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