25 मई : पहले और उसके बाद

Edited By ,Updated: 04 Apr, 2024 05:40 AM

may 25 before and after

क्या दिल्ली सरकार 25 मई से पहले या उसके बाद बर्खास्त होगी? वास्तव में यही एकमात्र प्रश्न है। उस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव होंगे। इससे पहले कोई कार्रवाई करने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिल्ली सीट जीतने की संभावना प्रभावित हो सकती है।

क्या दिल्ली सरकार 25 मई से पहले या उसके बाद बर्खास्त होगी? वास्तव में यही एकमात्र प्रश्न है। उस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव होंगे। इससे पहले कोई कार्रवाई करने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिल्ली सीट जीतने की संभावना प्रभावित हो सकती है। समान रूप से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो अब सलाखों के पीछे हैं, और उप-राज्यपाल (एल.जी.) विनय कुमार सक्सेना के बीच तनातनी की लड़ाई जितनी लंबी चलेगी, उतनी ही देर तक केजरीवाल को अपनी बात साबित करनी होगी कि वह एक राजनीतिक कैदी हैं न कि भ्रष्ट घोटालेबाज जिसके बारे में भाजपा दावा करती है। हर दूसरे दिन, मुख्यमंत्री द्वारा जेल से दिए गए एक ‘निर्देश’ या ‘निर्णय’  की घोषणा बाहर उनके सहयोगियों द्वारा की जाती है। जवाब में, एल.जी. ने कहा है कि ‘दिल्ली सरकार जेल से नहीं चलेगी’। 

संविधान के आर्टिकल 239 ए.ए. और ए.बी. के अंतर्गत यह दिल्ली के उप-राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है कि  वह भारत के राष्ट्रपति को सूचित करें कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रशासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है और बर्खास्तगी की सिफारिश की जाती है। उसे इतना समय क्यों लग रहा है? आम आदमी पार्टी (आप) का दिल्ली से कोई लोकसभा सांसद नहीं है। भाजपा के पास 7 सांसद हैं। उप-राज्यपाल द्वारा प्रतिनिधित्व की गई केंद्र सरकार का वास्तविक लक्ष्य राज्य सरकार की विश्वसनीयता को कम करना होता है। 

लेकिन विनय कुमार सक्सेना इस कार्य को पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उन्हें 2022 में एल.जी. नियुक्त किया गया था, इससे पहले उन्हें 2015 में खादी और ग्रामोद्योग आयोग (के.वी.आई.सी.) का अध्यक्ष बनाया गया था। मूल रूप से कानपुर के रहने वाले, उन्होंने गुजरात में स्थानांतरित होने से पहले राजस्थान में एक निजी कंपनी में सहायक अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू किया था। वह 1995 में अडानी- पोर्ट्स और जे.के. व्हाइट सीमैंट द्वारा विकसित की जा रही धोलेरा पोर्ट परियोजना के महाप्रबंधक थे। उन्हें न केवल मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया गया बल्कि परियोजना के निदेशक के रूप में पदोन्नत किया गया। 

1990 के दशक में जब सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के खिलाफ कार्यकत्र्ता बाबा आमटे, मेधा पाटकर द्वारा नर्मदा बचाओ आंदोलन शुरू हुआ तो पाटकर उस समय शीर्ष पर थीं। सक्सेना ने नैशनल काऊंसिल फॉर सी लिबर्टीज (एन.सी.सी.एल.) नामक गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) बनाया। उन्होंने लेख प्रकाशित करके पाटकर की गतिविधियों के खिलाफ भुगतान किए गए विज्ञापन जारी किए, जिसमें आरोप लगाया गया कि वह राष्ट्रविरोधी हैं और उन्हें संदिग्ध विदेशी स्रोतों से धन प्राप्त हो रहा था। 

सुश्री पाटकर की मांग सरल थी। बांध की ऊंचाई बढ़ाने से नि:संदेह कई प्यासे गुजरात और राजस्थान क्षेत्रों को पानी मिलेगा। इससे मध्य प्रदेश के सैंकड़ों-हजारों परिवारों की भूमि भी जलमग्न हो जाएगी, जिन्हें बांध की ऊंचाई बढ़ाने और जलग्रहण क्षेत्र के विस्तार से पहले पुनर्वास की आवश्यकता थी। तर्कों की जो भी खूबियां हों, कुछ समय के लिए  गुजरात के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन एक बुरा शब्द बन गया था क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रुख के लिए समर्थन मांगने के लिए दर-दर भटक रहे थे। सक्सेना ने राज्य सरकार की ओर से मोर्चा संभाला और सुश्री पाटकर के खिलाफ मामले लड़े। बदले में उन्होंने मानहानि का मुकद्दमा दायर किया, जो अभी भी चल रहा है। 

सक्सेना का एन.जी.ओ. वह था जिसने सार्वजनिक बुद्धिजीवी आशीष नंदी के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद नंदी द्वारा लिखे गए लेख ने  राज्य को ‘खराब छवि’  में पेश किया और ‘हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। नंदी ने दलील दी कि एफ.आई.आर. दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई थी और इसका उद्देश्य उन्हें अपने सच्चे विचार व्यक्त करने के लिए दंडित करना था। जैसे ही गुजरात पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आगे बढ़ी, वह सर्वोच्च न्यायालय ही था जिसने अंतत: 2011 में नंदी को राहत दी। 

जुलाई 2022 तक, दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए सक्सेना ने शराब उत्पाद शुल्क घोटाले के मुद्दे को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) को भेज दिया। सक्सेना के नेतृत्व में,  के.वी.आई.सी. के खादी के विपणन के लिए रेमंड्स और अरविंद मिल्स जैसे प्रमुख कपड़ा ब्रांडों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए। पहली बार, 2017 में, फैब इंडिया और वैबसाइट अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को ट्रेडमार्क उल्लंघन के लिए कानूनी नोटिस दिया गया था क्योंकि के.वी.आई.सी. ने तर्क दिया था कि ये दुकानें जिस कपड़े को बेच रही थीं ‘उसमें कोई खादी नहीं थी।’ सक्सेना जैसे व्यक्ति के लिए जोकि इतना अथकवादी है, को केजरीवाल को पदच्युत करने के लिए कानून का उपयोग करने से कौन रोक रहा है? शायद 25 मई के बाद हमें इसका जवाब मिल जाएगा।-आदिति फडणीस 

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