भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को ‘सबक’ लेने की जरूरत

Edited By ,Updated: 12 Sep, 2019 12:27 AM

national highways authority of india needs to take  lessons

जिस किसी ने भी गत 3 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय उच्च मार्ग के कालका-कुमारहट्टी खंड पर सफर किया होगा, उसे उच्च मार्ग को चौड़ा करने के लिए अवैज्ञानिक तरीके से किए गए कार्य तथा पर्यावरण को पहुंचाए व्यापक नुक्सान को देख कर हैरानी होती होगी। 2015 में शुरू...

जिस किसी ने भी गत 3 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय उच्च मार्ग के कालका-कुमारहट्टी खंड पर सफर किया होगा, उसे उच्च मार्ग को चौड़ा करने के लिए अवैज्ञानिक तरीके से किए गए कार्य तथा पर्यावरण को पहुंचाए व्यापक नुक्सान को देख कर हैरानी होती होगी। 2015 में शुरू की गई इस परियोजना के 30 महीनों में पूरा होने का अनुमान था। यद्यपि समयसीमा को डेढ़ वर्ष से अधिक लांघ लेने के बावजूद कार्य अभी तक पूरा नहीं हुआ। इस निर्माण कार्य के लिए जिम्मेदार कम्पनी अब यह दावा कर रही है कि इसे अगले 6 महीनों के भीतर पूरा कर लिया जाएगा। 

पर्यावरण को नुक्सान चिंताजनक
जहां परियोजना में देरी के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, वहीं उच्च मार्ग को चौड़ा करने की संदिग्ध तथा घटिया कार्रवाई से पर्यावरण को पहुंचा दीर्घकालिक नुक्सान अत्यंत ङ्क्षचता का विषय है। कालका-कुमारहट्टी खंड पर पूरी तरह से विकसित 23,785 पेड़ काटे गए तथा कैथलीघाट तक की बाकी परियोजना में 21,581 और पेड़ काटे जाएंगे। यह संख्या निश्चित तौर पर बढ़ेगी क्योंकि प्रत्येक बारिश के साथ भूस्खलन होते हैं और कई पेड़ उखड़ जाते हैं। अंतत: उच्च मार्ग को चौड़ा करने के लिए 50,000 से अधिक पेड़ों की बलि दी जाएगी।

लगभग ये सभी पेड़ कई दशक पुराने थे और नई पनीरी को बड़ी होने में बहुत वर्ष लगेंगे। जब तक पनीरी बड़ी होकर मिट्टी को बांधने के काबिल नहीं होती तब तक इस क्षेत्र में भूस्खलन होने की सम्भावना बनी रहेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जमीन स्थिर होने में कम से कम 12 वर्ष तथा भूस्खलन के अवसर कम करने के लिए कई और वर्ष लगेंगे। 

एन.जी.टी. व अन्य एजैंसियां क्यों नहीं जागीं
हालिया बारिशों के बाद बड़े पैमाने पर भूस्खलन होने के कारण उच्च मार्ग का कुछ हिस्सा लगभग पूरी तरह से अवरुद्ध हो गया था। यह जनता के धन की बहुत बड़ी बर्बादी है और हैरानी होती है कि क्यों राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एन.जी.टी.) तथा अन्य एजैंसियां घटिया कार्य तथा पारिस्थितिकी को निरंतर हो रहे नुक्सान को देख कर भी नहीं जागी हैं। भारी मशीनरी की मदद से पहाड़ों पर सीधी कटाई भी कम्पनी द्वारा की गई बड़ी गलतियों में से एक है जिसे प्रशासन द्वारा नजरअंदाज किया गया। भू-विज्ञानियों का कहना है कि भूस्खलनों से बचने के लिए पहाड़ी को एक विशेष कोण पर काटने की जरूरत थी। 

विशेषज्ञों से सलाह नहीं ली
जाहिर है कि न तो निर्माण कार्य में लगी कम्पनी ने और न ही भारतीय राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) ने भू-विज्ञानियों तथा अन्य विशेषज्ञों की सलाह ली। यहां तक कि एक सामान्य व्यक्ति को भी पता होगा कि 2-3 मीटर की दीवार भी भूस्खलनों से बचने के लिए अपर्याप्त होती है। अब दीवारों को ऊंचा किया जा रहा है जिसने परियोजना की लागत में 748 करोड़ से 882 करोड़ की वृद्धि कर दी। क्यों नहीं किसी को घटिया योजना बनाने तथा परियोजना के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता, यह एक बड़ा प्रश्र है। 

दरअसल सड़क अभियांत्रिकी विशेषज्ञ तथा पर्यावरणविद् ऐसी परियोजना तथा इसके कार्यान्वयन की जरूरत पर ही प्रश्न उठाते हैं। जहां कोई भी आने वाले वर्षों में समाज की जरूरतों के मद्देनजर विकासात्मक परियोजनाओं के खिलाफ नहीं है, वहीं पारिस्थितिकी को होने वाले नुक्सान को न्यूनतम करने के लिए कदम क्यों नहीं उठाया गया? कुमारहट्टी तक पूरे खंड में कोई भी टनल नहीं है और रेलवे लाइन पर महज एक ओवरब्रिज है। टनल्स तथा फ्लाईओवर्स के निर्माण से निश्चित तौर पर प्रकृति को होने वाला नुक्सान सीमित किया जा सकता था। उदाहरण के लिए, आधे किलोमीटर से भी कम का फ्लाईओवर धर्मपुर नगर को बचा सकता था और इस ऐतिहासिक नगर में दुकानों तथा आवासों को उजाडऩे से बचा सकता था। 

जब अधिकतर देश पेड़ों को काटने से बच कर तथा सुरंगें व पुल बनाने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके पर्यावरण को बचाने का प्रयास कर रहे हैं और यहां तक कि मोदी सरकार भी एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठा रही है, हमें ऐसी परियोजनाओं को अंतिम रूप देने से पहले दो बार सोचने की जरूरत है। अब जबकि नुक्सान किया जा चुका है, सरकार तथा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को अवश्य ही इससे सबक सीख कर कैथलीघाट तक उच्च मार्ग के दूसरे खंड में ऐसी क्षति से बचना चाहिए। अब देर हो चुकी है लेकिन इतनी भी अधिक देर नहीं हुई है कि नुक्सान से बचा न जा सके।-विपिन पब्बी

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