नई विदेश व्यापार नीति : मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर बने निर्यात इंजन

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2021 05:29 AM

new foreign trade policy manufacturing sector becomes export engine

महामारी के दुष्प्रभाव से देश की अर्थव्यवस्था तेजी से उभर रही है। 6 महीने पहले तक जहां देश का लगभग हर उद्योग संघर्ष कर रहा था, वहीं लॉकडाऊन प्रतिबंधों में ढील के बीच तेजी से हुए

महामारी के दुष्प्रभाव से देश की अर्थव्यवस्था तेजी से उभर रही है। 6 महीने पहले तक जहां देश का लगभग हर उद्योग संघर्ष कर रहा था, वहीं लॉकडाऊन प्रतिबंधों में ढील के बीच तेजी से हुए टीकाकरण के साथ भारतीय निर्यात कारोबार ने भी गति पकड़ी है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई 2021 में भारत का निर्यात 35.2 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया, जो जुलाई 2019 की तुलना में 34 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2021-22 में 400 बिलियन अमरीकी डॉलर के महत्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्य को पूरा करना है। वहीं 2022-23 के लिए 500 बिलियन अमरीकी डॉलर और अगले 5 वर्षों में एक ट्रिलियन अमरीकी डॉलर निर्यात कारोबार लक्षित है। 

वर्तमान विदेश व्यापार नीति (2015-2020) में ऐसे कई कारक थे जिनकी वजह से भारत के निर्यात को गति नहीं मिल रही थी। भारत ने व्यापारिक निर्यात योजना (एम.ई.आई.एस.) और सेवा निर्यात योजना (एस.ई.आई.एस.) की सालाना 51,012 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि में से 12,454 करोड़ रुपए निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (आर.ओ.डी.टी.ई.पी.) प्रोत्साहन योजना में रखे, बाकी 38,558 करोड़ रुपए का लाभ चंद बड़ी कंपनियों को देने के लिए पी.एल.आई. (उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन) स्कीम में डाल दिए। यह भेदभावपूर्ण नीति संवैधानिक रूप से भी सही नहीं है। किसी भी तरह के प्रोत्साहनों को व्यावहारिक रूप देने से बहुत अधिक आॢथक प्रभाव पड़ता है, इसलिए इन्हें समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए बनाया और लागू किया जाना चाहिए। 

विदेश व्यापार नीति का मुख्य उद्देश्य लेन-देन और पारगमन (ट्रांजिट) लागत और समय को कम करके निर्यात को सुविधाजनक बनाना है। देश की बंदरगाहों और गोदामों जैसे अपर्याप्त निर्यात बुनियादी ढांचे के कारण भारत में जहाजों के लिए औसत ‘टर्नअराऊंड’ समय लगभग 3 दिन है जबकि वैश्विक स्तर पर यह औसत 24 घंटे है।

जुलाई 2020 के बाद से कोविड से संबंधित प्रतिबंधों के कारण विभिन्न बंदरगाहों पर कंटेनरों की अनलोडिंग में देरी और लॉकडाऊन प्रतिबंधों में ढील के बीच वैश्विक व्यापार में अप्रत्याशित रूप से त्वरित सुधार के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कंटेनरों की भारी कमी हो गई है। इससे कारोबारियों की कार्यशील पूंजी अटक गई है क्योंकि निर्यातकों को भुगतान में तीन से चार महीनों की देरी हुई। वैश्विक कंटेनर संकट के कारण अगस्त 2020 से माल ढुलाई भाड़े में 300 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जिसकी भरपाई ड्राई पोर्टस से समुद्री पोर्टस तक रेल माल भाड़े को न्यूनतम करके की जा सकती है। 

वाणिज्य विभाग से निर्यातकों के प्रारंभिक विचार-विमर्श से संकेत मिलता है कि सरकार नई विदेश व्यापार नीति में रिसर्च एंड डिवैल्पमैंट (आर. एंड डी.) सेवा की नई पहल करने जा रही है। यह आर. एंड डी. सेवाओं के निर्यात पर विशेष ध्यान देगा क्योंकि यह भारत के सेवा निर्यातों में सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है। सरकार ने देश में अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए एक प्रौद्योगिकी समूह की नियुक्ति की है और इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई) को बढ़ावा देने के लिए भी काम कर रही है। 

भारत को चीन जैसे प्रौद्योगिकी-उन्नत देशों से आगे रहने के लिए बंदरगाहों, गोदामों, उत्पादों की गुणवत्ता परीक्षण और प्रमाणन केंद्रों जैसे निर्यात बुनियादी ढांचे के उन्नयन में निवेश करने की आवश्यकता है। 2019 और 2023 के बीच चीन की बुनियादी ढांचे पर 1.4 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर खर्च करने की योजना है। इसी तरह, भारत को भी आधुनिक व्यापार प्रथाओं को अपनाने की जरूरत है, जिन्हें निर्यात प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के माध्यम से लागू किया जा सकता है। व्यापार प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण से समय और लागत दोनों की बचत होगी। 

आगे का रास्ता : ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ को बढ़ावा देने के लिए, विदेश व्यापार नीति का प्रोत्साहन की ओर अधिक झुकाव होना चाहिए। यह उन योजनाओं को शुरू करने पर भी केंद्रित हो जो तकनीकी उन्नयन, नवाचार और उत्पाद विकास जैसे क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों की क्षमताओं को बढ़ाए। निर्यातकों के लंबित टैक्स रिफंड की हाल ही में घोषित 56,000 करोड़ रुपए की आर.ओ.डी.टी.ई.पी. प्रोत्साहन योजना में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्यातकों को उन करों और शुल्कों पर रिफंड मिले, जो पहले वसूली योग्य नहीं थे। 

भारत एक शीर्ष कृषि प्रधान देश है। यहां फूड प्रोसैसिंग इकाइयों को विकसित करने की जरूरत है, जिससे न केवल फसल की बर्बादी रुकेगी बल्कि इनके साथ ही आपूॢत शृंखला, मार्कीटिंग और लॉजिस्टिक में भी सुधार होगा। उत्पादन और निर्यात में वृद्धि सहसंबद्ध हैं इसलिए नई विदेश व्यापार नीति के तहत मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में इन संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने की भी सुविधा होनी चाहिए। नई विदेश व्यापार नीति को कार्यान्वयन वाहन के रूप में कारगर होना चाहिए क्योंकि इससे मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर को निर्यात इंजन के रूप में परिवर्तित करने में मदद मिलेगी।(सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन, कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन)-अमृत सागर मित्तल

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