अब गांधी विरासत की हत्या

Edited By Updated: 04 Jul, 2023 05:02 AM

now the murder of gandhi legacy

कुछ कुछ तो है गांधी में जो भाजपा के गले की हड्डी बना हुआ है। देश में भले ही भाजपा के नेता राष्ट्रपिता के हत्यारे का महिमामंडन कर लें, लेकिन विदेश में जाकर मोदी जी यह नहीं कह सकते कि मैं गोडसे के देश से आया हूं। प्रधानमंत्री को यह कहना ही पड़ता है कि...

कुछ कुछ तो है गांधी में जो भाजपा के गले की हड्डी बना हुआ है। देश में भले ही भाजपा के नेता राष्ट्रपिता के हत्यारे का महिमामंडन कर लें, लेकिन विदेश में जाकर मोदी जी यह नहीं कह सकते कि मैं गोडसे के देश से आया हूं। प्रधानमंत्री को यह कहना ही पड़ता है कि मैं बुद्ध और गांधी के देश से आया हूं। जवाहर लाल नेहरू पर भले ही हिंदू विरोधी होने की झूठी तोहमत लगा दें लेकिन इस सनातनी हिंदू महात्मा को कैसे गाली दें? 

संघ परिवार की यह दुविधा कोई नई नहीं है। गांधी न उनसे निगलते बनता है न उगलते बनता है। गांधी जी के जीवित रहते हुए तो फिर भी संघ के वैचारिक गुरु गोलवलकर और सावरकर महात्मा के खिलाफ विष वमन कर लेते थे, लेकिन महात्मा की शहादत और खास तौर पर उसके बाद सरदार पटेल द्वारा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद संघ परिवार ने गांधी जी पर हमले की रणनीति बदल दी। अब संघ परिवार ने ऊपर से गांधी जी की पूजा-अर्चना लेकिन अंदर से उनके खिलाफ अफवाह फैलाने की रणनीति अपनाई। सीधे-सीधे तो नाथूराम गोडसे का नाम लेने की हिम्मत नहीं होती थी, लेकिन कानाफूसी के जरिए उसके विचारों का प्रसार जारी रहा। गांधी जी की अहिंसा को कायरता बताना, सर्वधर्म सद्भाव को हिंदू विरोधी करार देना, भगत सिंह की फांसी का दोष गांधी जी पर मढऩा और देश के विभाजन के लिए गांधी जी को जिम्मेदार ठहराना इसी दुष्प्रचार अभियान के हिस्से थे। 

उन दिनों संघ परिवार ने अपने लोगों की घुसपैठ गांधीवादी संस्थाओं में करने की नाकाम कोशिश भी की। गांधी की हत्या के बाद गांधी विचार की हत्या का कुत्सित अभियान लगातार चलता रहा। 2014 में भाजपा द्वारा राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के बाद इस अभियान ने एक नई दिशा पकड़ी है। अब भाजपा के नेता बेशर्मी से नाथूराम गोडसे का नाम लेते हैं। संघ परिवार के कार्यकत्र्ता खुलकर राष्ट्रपिता के हत्यारे का महिमामंडन करते हैं। भाजपा का नेतृत्व उस पर लीपापोती कर आगे बढ़ जाता है। 2019 में स्वयंभू साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा लोकसभा में गोडसे की प्रशंसा के बाद मोदी जी को कहना पड़ा था कि वह मन से प्रज्ञा ठाकुर को माफ नहीं कर पाएंगे लेकिन वह बात उनके मन में ही रह गई। हाल ही में भाजपा के नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तिवेंद्र सिंह रावत द्वारा गोडसे को देशभक्त कहने पर प्रधानमंत्री ने एक मीठी झिड़की की जरूरत भी नहीं समझी। 

इस नए दौर में गांधीवाद की हत्या का मुख्य औजार गांधी जी की स्मृति को मिटाना और गांधीवादी विरासत की संस्थाओं पर कब्जा करना है। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम को 1200 करोड़ रुपए लगाकर एक पर्यटन स्थल बनाने का प्रोजैक्ट गांधी जी के प्रपौत्र तुषार गांधी सहित तमाम गांधीवादी व्यक्तियों और संगठनों के विरोध के बावजूद जारी है। इसी तरह वर्धा स्थित सेवाग्राम का भी ‘आधुनिकीकरण’ किया जा रहा है। गांधी विद्यापीठ सहित अनेक गांधीवादी संस्थाओं में साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल कर कब्जा करने की कोशिश हो रही है। 

इस सिलसिले में दो हालिया घटनाएं बहुत महत्व रखती हैं। बनारस में सर्वसेवा संघ का मुख्यालय है, जो देश में गांधीवादी संस्थाओं और गतिविधियों का केंद्र रहा है। सर्वसेवा संघ के इसी परिसर में जयप्रकाश नारायण ने गांधी विद्या संस्थान की स्थापना की थी। कोई 30 वर्ष पहले संघ परिवार के घुसपैठियों ने गांधी वादियों में भ्रम फैलाकर इस संस्थान पर कब्जा करने का काम शुरू किया था। वह प्रयास तो सफल नहीं हो पाया, लेकिन कानूनी विवाद में फंस कर यह संस्थान बंद जरूर हो गया और उसे सरकारी संरक्षण पर ताला लग गया। इस साल जून महीने में अचानक वाराणसी के कमिश्नर ने पुलिस बल भेजा और सर्वसेवा संघ के परिसर में स्थित गांधी विद्या संस्थान को कब्जे में लेकर उसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंप दिया जिसके अध्यक्ष संघ परिवार से जुड़े राम बहादुर राय हैं। सर्वसेवा संघ इलाहाबाद हाईकोर्ट गया लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने अपना कब्जा बनाए रखा। 

यही नहीं, गांधीवादियों के प्रतिरोध से तिलमिलाई सरकार ने अब पूरे सर्वसेवा संघ परिसर पर ही कब्जा करने का मंसूबा बनाया है। बुलडोजर वाले अंदाज में कार्रवाई करते हुए 30 जून को सर्वसेवा संघ की इमारत गिराने का नोटिस भी चस्पा कर दिया गया।  

गौरतलब है कि सर्वसेवा संघ की स्थापना डा. राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, आचार्य विनोबा भावे, जे.बी. कृपलानी, मौलाना आजाद और जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से हुई थी और रेलवे ने उसके लिए जमीन दी थी, लेकिन आज सरकार उलटे सर्वसेवा संघ पर आरोप लगा रही है कि यह जमीन फर्जी तरीके से ली गई है। फिलहाल यह कार्रवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्टे दिए जाने के चलते टल गई है, लेकिन पता नहीं कब तक यह स्थिति बनी रहेगी। यही नापाक कोशिश गीता प्रैस, गोरखपुर को इस वर्ष का गांधी शांति पुरस्कार देने के पीछे दिखाई पड़ती है। इसमें कोई शक नहीं कि गीता प्रैस, गोरखपुर ने हिंदू ग्रंथों के प्रचार- प्रसार के लिए बहुत काम किया है। लेकिन सच यह भी है कि गांधी जी का गीता प्रैस के संस्थापक सम्पादक हनुमान प्रसाद पोद्दार से गहरा वैचारिक मतभेद रहा। यही नहीं, गीता प्रैस के संपादक और प्रकाशक को गांधी जी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था। इसलिए इस संस्था को गांधी शांति पुरस्कार देना न सिर्फ एक संदेहास्पद अतीत पर पर्दा डालना है बल्कि गांधी जी की स्मृति को हड़पने की बेजा कोशिश भी है। 

लेकिन हर दुखद घटना का एक उजाला पक्ष भी होता है। गांधीवादी विरासत पर इस हमले का एक सुखद परिणाम यह हुआ है कि देश भर के सच्चे गांधीवादी अब इस विरासत हड़पो अभियान के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। 17 जून को देशभर के 70 संगठनों द्वारा राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा गया और इन सभी संगठनों ने मिलकर दिल्ली में पं. दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित राजेंद्र भवन में प्रतिरोध सम्मेलन किया। इसे 150 से अधिक गण्यमान्य नागरिकों ने समर्थन दिया। सर्वसेवा संघ की इमारत को तोडऩे की धमकी के खिलाफ सभी गांधीवादी प्रतिरोध के लिए परिसर में खड़े हो गए। महात्मा गांधी मजबूरी नहीं बल्कि मजबूती का नाम बनें, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बन सकें, यह गांधी जी की विरासत के लिए एक अच्छी खबर है।-योगेन्द्र यादव
 

Related Story

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!