पद्मनाभ स्वामी मन्दिर की ‘गरिमा’ बची

Edited By Updated: 27 Jul, 2020 02:23 AM

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पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने तिरुवनंतपुरम के इस विश्वविख्यात मंदिर की गरिमा बचा दी। विश्व के सबसे बड़े खजाने का स्वामी यह मंदिर पिछले 10 वर्षों से पूरी दुनिया के लिए कौतूहल बना हुआ था क्योंकि इसके लॉकरों में कई लाख  करोड़ रुपए के हीरे...

पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने तिरुवनंतपुरम के इस विश्वविख्यात मंदिर की गरिमा बचा दी। विश्व के सबसे बड़े खजाने का स्वामी यह मंदिर पिछले 10 वर्षों से पूरी दुनिया के लिए कौतूहल बना हुआ था क्योंकि इसके लॉकरों में कई लाख  करोड़ रुपए के हीरे जवाहरात और सोना चांदी रखा है। पिछले 2500 वर्षों से जो कुछ चढ़ावा या धन यहां आया उसे त्रावणकोर के राज परिवार ने भगवान की सम्पत्ति मान कर संरक्षित रखा। उसका कोई दुरुपयोग निज लाभ के लिए नहीं किया। 

जबकि दूसरी तरफ केरल की साम्यवादी सरकार इस बेशुमार दौलत से केरल के गरीब लोगों के लिए स्कूल, अस्पताल आदि की व्यवस्था करना चाहती थी। इसलिए उसने इसके अधिग्रहण का प्रयास किया। चूंकि यह मंदिर त्रावणकोर रियासत के राजपरिवार का है, जिसके पारिवारिक ट्रस्ट की सम्पत्ति यह मंदिर है। उनका कहना था कि इस सम्पत्ति पर केवल ट्रस्टियों का हक है और किसी भी बाहरी व्यक्ति को इसके विषय में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। राजपरिवार के समर्थन में खड़े लोग यह कहने में नहीं झिझकते कि इस राजपरिवार ने भगवान की सम्पत्ति की धूल तक अपने प्रयोग के लिए नहीं ली। ये नित्य पूजन के बाद, जब मन्दिर की देहरी से बाहर निकलते हैं, तो एक पारम्परिक लकड़ी से अपने पैर रगड़ते हैं, ताकि मन्दिर की धूल मन्दिर में ही रह जाए। इन लोगों का कहना है कि भगवान के निमित्त रखी गई यह सम्पत्ति केवल भगवान की सेवा के लिए ही प्रयोग की जा सकती है। 

इन सबके अलावा हिन्दू धर्मावलंबियों की भी भावना यही है कि देश के किसी भी मंदिर की सम्पत्ति पर नियंत्रण करने का, किसी भी राज्य या केन्द्र सरकार को कोई हक नहीं है। वे तर्क देते हैं कि जो सरकारें मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों व अन्य धर्मावलंबियों के धर्मस्थानों की सम्पत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकतीं, वे हिन्दुओं के मंदिरों पर क्यों दांत गढ़ाती हैं? खासकर तब जबकि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई सरकारें और नौकरशाह सरकारी धन का भी ठीक प्रबंधन नहीं कर पाते हैं। यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक गया, जिसने अपने फैसले में केरल सरकार के दावे को खारिज कर दिया और त्रावणकोर राजपरिवार के दावे को सही माना। जिससे पूरे दुनिया के ङ्क्षहदू धर्मावलंबियों ने राहत की सांस ली है। यह तो एक शुरूआत है। देश के अनेक मंदिरों की सम्पत्ति पर राजनीतिक दल और नौकरशाह अर्से से गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं। जिन राज्यों में धर्मनिरपेक्ष दलों की सरकारें हैं उन पर भाजपा मंदिरों के धन के दुरुपयोग का आरोप लगाती आई है और मंदिरों के अधिग्रहण का जोर-शोर से संघ, भाजपा व विहिप विरोध करते आए हैं। 

जैसे आजकल तिरुपति बालाजी के मंदिर को लेकर आंध्र प्रदेश की रैड्डी सरकार पर भाजपा का लगातार हमला हो रहा है, जो सही भी है और हम जैसे आस्थावान ङ्क्षहदू इसका समर्थन भी करते हैं। पर हमारे लिए ङ्क्षचता की बात यह है कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने ही अनेक हिंदू मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया है। और भाजपा अन्य राज्यों में भी यही करने की तैयारी में है। जिससे हिंदू धर्मावलंबियों में भारी आक्रोश है। जैसे हर धर्म वाले अपने धर्म के प्रचार के साथ समाज की सेवा के भी कार्य करते हैं, उसी प्रकार से पद्मनाभ स्वामी जी के भक्तों की एक समिति का गठन होना चाहिए। जिसमें राजपरिवार के अलावा ऐसे लोग हों, जिनकी धार्मिक आस्था तो हो पर वे उस इलाके की विषमताओं को भी समझते हों। ऐसी समिति दैविक धन का धार्मिक कृत्यों व समाज व विकास के कृत्यों में प्रयोग कर सकती है। 

इससे उस धर्म के मानने वालों के मन में न तो कोई अशांति होगी और न कोई उत्तेजना। वे भी अच्छी भावना के साथ ऐसे कार्यों में जुडऩा पसंद करेंगे। अब वे अपने धन का कितना प्रतिशत मन्दिर और अनुष्ठानों पर खर्च करते हैं और कितना विकास के कार्यों पर, यह उनके विवेक पर छोडऩा होगा। हां, इस समिति की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर देनी चाहिए ताकि घोटालों की गुंजाइश न रहे।-विनीत नारायण      
 

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