रावण को ज्ञान का अहंकार और श्री राम को अहंकार का ज्ञान

Edited By ,Updated: 04 May, 2024 05:10 AM

ravana has the ego of knowledge and shri ram has the knowledge of ego

थिएटर प्रस्तुति ‘हमारे राम’ को देखने का अवसर मिला। यह कहा जा सकता है यह एक बहुत ही शानदार और आधुनिक टैक्नोलॉजी को जोड़कर किया गया प्रभावशाली मंचन था। इसके निर्देशक दिल्ली के गौरव भारद्वाज तथा उनकी टीम बधाई के पात्र हैं।

थिएटर प्रस्तुति ‘हमारे राम’ को देखने का अवसर मिला। यह कहा जा सकता है यह एक बहुत ही शानदार और आधुनिक टैक्नोलॉजी को जोड़कर किया गया प्रभावशाली मंचन था। इसके निर्देशक दिल्ली के गौरव भारद्वाज तथा उनकी टीम बधाई के पात्र हैं। 

रामराज्य का आधार : हमारे राम कुछ ऐसे प्रश्न मन में उकेरते हैं जिनका उत्तर बहुत युग बीतने पर भी नहीं मिल सका। एक पात्र का संवाद है; रावण को अपने ज्ञान का अहंकार था और राम को अहंकार का ज्ञान था। संवाद नहीं बल्कि जीवन का तथ्य है। कदाचित् रामराज्य का आधार भी यही है। 

समझते हैं कि कैसे और एक उदाहरण से कोशिश करते हैं : रावण बहुत ज्ञानी, प्रतापी, पंडित, महापराक्रमी और त्रिलोक विजेता था। उसके बल, बुद्धि और युद्ध कौशल के सामने कोई टिक नहीं पाता था। अनन्य शिव भक्त था और समस्त देवता उसके सम्मुख सिर झुकाए खड़े रहते थे। जब किसी को अपनी बुद्धि और शक्ति के प्रयोग से सभी तरह के सुख-साधन, अस्त्र-शस्त्र तथा सुविधाएं प्राप्त हो जाएं तो वह अपने को भाग्यशाली ही नहीं गौरवान्वित भी समझेगा। अब यही गर्व जब सिर पर चढ़ जाए अपनी उपलब्धियों के ज्ञान का अहंकार हो जाए तो इसमें आश्चर्य किस बात का है? रावण को भी यही हुआ। अब राम जी की बात समझते हैं। वे एक राजवंश में उत्पन्न हुए, राजपुत्रों की भांति शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। अपने को सभी विधाओं में पारंगत किया, अनेक विद्याएं सीखीं, अस्त्र-शस्त्र का संचालन और युद्ध कौशल सीखा। राजा जनक के यहां सीता स्वयंवर के लिए रखा शिव धनुष भी तोड़ दिया जिसे रावण जैसा प्रतापी हिला भी न सका। 

पिता की आज्ञा से वनवासी बने तो वहां भी अपनी शक्ति राक्षसों के संहार और वनवासियों को सुरक्षा प्रदान करने में लगाई। यहां तक कि जब समुद्र पार करने की स्थिति पैदा हुई तो उसके अहंकार के सामने प्रार्थना करते रहे। जब नहीं माना तो दंड देने को उद्यत हुए। राम की विशेष बात क्या है, वह है अहंकार का ज्ञान। यही ज्ञान रावण पर विजय प्राप्त करने का कारण बना। अब इसे वर्तमान संदर्भ में देखते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में बहुत लोगों ने योगदान किया, सर्वस्व बलिदान किया और देश स्वतंत्र हुआ। आजादी के बाद होता यह है कि कुछ व्यक्तियों ने यह समझ लिया कि यह तो केवल उनकी वजह से हुआ है, इसमें किसी और ने अपना छोटा मोटा योगदान कर भी लिया होगा तो उसका क्या मूल्य, अधिक से अधिक उसे स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र या तमगा मिलना चाहिए। इस देश को चलाने का अधिकार केवल हमें है किसी और को नहीं। 

देश को आधुनिक और एक सशक्त राष्ट्र बनाने के प्रयत्न और बहुत से ऐसे काम किए जो अनूठे और अनोखे थे। अपने नेताओं के बलिदान और राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान का गर्व इस कदर हुआ कि सभी तरह के अधिकार हासिल कर लिए। मतलब यह कि कुछ लोगों को अपने पूर्वजों द्वारा किए कार्यों और अंग्रेजों को भगाने में उनकी भूमिका के ज्ञान ने कुछ ही समय में उनमें इतना अहंकार भर दिया कि वे अपने को इतना सर्वशक्तिमान समझने लगे कि उन्हें कोई हरा ही नहीं सकता। सामान्य नागरिक की व्यथा, उसकी कराहट और बेबसी से उन्हें कोई सरोकार न रहा। अब यहां रावण की बात करें जिसका सर्वनाश उसके ज्ञान के अहंकार के कारण हुआ था। वर्तमान समय में जिसे अहंकार का ज्ञान था, उसे राम की भांति विजय मिली। इसका अर्थ यही है कि रामराज्य की नींव, ज्ञान के अहंकार बनाम अहंकार के ज्ञान पर ही टिकी है। 

नारी का अपमान विनाश का कारण : हमारे राम का प्रसंग है। इसमें रावण द्वारा रम्भा का बलपूर्वक किया गया बलात्कार उसे मिले श्राप का कारण बना। श्राप था कि जैसे ही वह किसी नारी का उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श भी करेगा तो उसका सिर टुकड़ों में बिखर जाएगा। रावण ने छल से सीता का अपहरण तो कर लिया लेकिन वह सीता को अपनी स्त्री बनाने के लिए अनुनय विनय ही करता रहा। स्पर्श नहीं किया क्योंकि मृत्यु का भय था। एक दूसरा प्रसंग है। रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा के पति की हत्या कर दी और उससे कह दिया कि वह उसकी बहन के रूप में कहीं भी विचरण कर सकती है। अब जिसके पति की हत्या हुई हो वह कैसे चुप बैठती। अपने भाई रावण की मृत्यु के उपाय सोचने लगी। जब उसने राम, लक्ष्मण और सीता के वनवासी की तरह रहने के बारे में जाना तो उसे इसमें अपनी इच्छा पूरी होने के आसार दिखे। उसने सोचा कि यदि रावण के मन में यह बात बिठा दी जाए कि सीता जैसी सुंदर स्त्री तो केवल उसकी अंकशयनी होने योग्य है तो वह अवश्य ही सीता को प्राप्त करने का प्रयत्न करेगा। 

यही हुआ और वह सीता को हर लाया। अपनी मृत्यु का स्वयं कारण बना। महाज्ञानी होने के नाते उसे अपने और परिवार के सभी कुकर्मों का ज्ञान था। वह जानता था कि उसकी मृत्यु प्रभु श्री राम के हाथों होती है तो उसके पाप कट जाएंगे और मोक्ष प्राप्त हो जाएगा। रावण ने राम से बैर ठाना और अपनी मुक्ति की योजना बना कर उसमें सफलता पाई। 

ज्ञान का सम्मान : मृत्यु की प्रतीक्षा करते रावण से नीति, राजनीति का पाठ पढऩे और उसके ज्ञान से लाभान्वित होने के लिए राम ने लक्ष्मण को भेजा। लक्ष्मण अपने गर्व में चूर थे, सिरहाने खड़े होकर कठोर वचनों से ज्ञान देने का आदेश दिया। रावण ने देखा भी नहीं, क्रोधित होकर लक्ष्मण राम के पास गए और तब राम ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करना है तो गुरु के सामने शिष्य बनकर और हाथ जोड़कर विनम्र मुद्रा में जाना होता है। ऐसा करने पर ही रावण ने ज्ञान दिया। यह प्रसंग भी है। समुद्र के तट पर शिवलिंग की स्थापना के लिए राम ने पंडित और सर्वश्रेष्ठ पुरोहित रावण को आमंत्रित किया। यह स्थल रामेश्वरम कहलाया। इसका अर्थ यही है कि ज्ञान ही सर्वोत्तम है। इसका उपयोग और दुरुपयोग दोनों हो सकते हैं। जरा सोचिए कि अपने ज्ञान के अहंकार में अमरीका हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिरा सकता है और वही अणुशक्ति संसार के लिए वरदान है। 

देश की नीति, राजनीति, संविधान, कानून और प्रशासनिक व्यवस्था, चाहे राजा रामचंद्र हों, असुरराज रावण हो या फिर वर्तमान भारत की राजनीतिक व्यवस्था हो, केंद्र हो या राज्य, राष्ट्रीय दल हों या क्षेत्रीय, स्वदेशी विचारधारा पर आधारित हों या विदेशी जैसे कम्युनिस्ट और कैपिटलिस्ट या मोनार्क, उन्हें न्याय, नैतिकता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की नीति पर चलना ही होगा वरना पतन निश्चित है।(यह लेखक के निजी विचार हैं।)-पूरन चंद सरीन
 

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