शिवसेना बनाम शिवसेना, महाराष्ट्र में राजनीतिक ड्रामा

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2022 04:39 AM

shiv sena vs shiv sena political drama in maharashtra

क्या आप भारत के पूर्वी मोर्चे पर भारत और चीन के बीच सैनिक झड़पों को देखते हुए थक गए या बोर हो गए हैं? अब आपका ध्यान हम देश के पश्चिमी तट की ओर आकॢषत करते हैं जहां पर एक भावुक

क्या आप भारत के पूर्वी मोर्चे पर भारत और चीन के बीच सैनिक झड़पों को देखते हुए थक गए या बोर हो गए हैं? अब आपका ध्यान हम देश के पश्चिमी तट की ओर आकॢषत करते हैं जहां पर एक भावुक राजनीतिक नाटक चल रहा है। यह आया राम, गया राम की राजनीतिक कहानी है जिसमें लोकतांत्रिक मानदंडों का गड़बड़ घोटाला, सच्चा-झूठा और मिर्च-मसाला देखने को मिलेगा। जहां पर ऑपरेशन रिबेल्स के चलते ऑपरेशन ओरिजिनल और ऑपरेशन फेक साथ-साथ चल रहे हैं। 

अन्यथा महाराष्ट्र में चल रहे हास्यास्पद नाटक पर किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करें, जहां पर शिव सेना के 55 विधायकों में से 39 विधायकों ने शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के विरुद्ध विद्रोह किया? इन्होंने राज्य में राकांपा, शिवसेना और कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी सरकार को खतरा पैदा कर दिया है। हताश शिवसेना विधायकों को धमकी दे रही है तो विधानसभा के उपाध्यक्ष शिंदे और 16 अन्य विधायकों को अयोग्यता का नोटिस जारी कर रहे हैं। 

राजनीतिक स्तर पर शासन में आज निर्लज्जता से सौदे और परोक्ष सौदे करना आम हो गया है, जिसमें सत्ता सबसे बड़ा आकर्षण है और इसी के चलते एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखा जाता है। विधानसभा उपाध्यक्ष, जो राकांपा के विधायक हैं और अभी तक विधानसभा अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं हुआ, इसलिए वे अध्यक्ष के रूप में भी काम कर रहे हैं और 16 विधायकों को अयोग्यता नोटिस जारी करने के लिए महाविकास अघाड़ी के औजार बन गए हैं। जबकि बागी विधायकों ने उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की सूचना दी है। केन्द्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल की भी इस घटनाक्रम पर पैनी निगाह है। 

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में एक अंतरिम निर्देश में शिंदे समूह को 11 जुलाई तक अयोग्यता नोटिस का उत्तर देने का समय दिया है। न्यायालय ने कहा है कि वर्तमान सदस्यों को अयोग्य घोषित कर विधानसभा की सदस्य संख्या और संरचना में किसी तरह का बदलाव उस अवधि के दौरान, जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव की सूचना लंबित हो, अनुच्छेद 179 के स्पष्ट प्रावधानों के विरुद्ध होगा। न्यायालय का कहना है कि इसका तात्पर्य है कि वे विधायक, जिन्हें अयोग्य घोषित किया जा सकता है, उन्हें भी अध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव पर मतदान करने का अधिकार है। इसलिए वह ऐसे सदस्यों को पहले अयोग्य घोषित कर उन्हें ऐसे प्रस्ताव पर मतदान के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। 

यही नहीं, न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के नबाम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष के निर्णय को उद्धृत किया है, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि अध्यक्ष को संवैधानिक दृष्टि से इस बात की अनुमति नहीं होगी कि वह अपने को अध्यक्ष पद से हटाने के प्रस्ताव की सूचना के लंबित रहते हुए 10वीं अनुसूची के अधीन अयोग्यता की याचिका का निर्णय करे। इसके अलावा यदि 14 दिन की अपेक्षित अवधि के बाद अध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव को पहले लिया जाता है और यदि प्रस्ताव गिर जाता है तो अध्यक्ष इस स्थिति में होंगे कि वह विधानसभा द्वारा विश्वासमत पर विचार करने से पूर्व विधायकों की अयोग्यता का निर्णय कर सकें। यह सुनिश्चित करेगा कि जिन सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जाना है उन्हें विश्वासमत पर मतदान का अधिकार नहीं होगा। 

10वीं अनुसूची के अंतर्गत एक विधायक को 2 आधारों पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है। पहला, यदि वह उस पार्टी की सदस्यता को स्वेच्छा से त्याग देता है, जिसके टिकट पर वह चुन कर आया है और दूसरा, यदि वह पार्टी की पूर्व अनुमति के बिना विधानसभा में पार्टी व्हिप का उल्लंघन करता है या पार्टी के निर्देश के उल्लंघन कर मतदान या अनुपस्थिति रहने की वजह से 15 दिन के अंदर माफ नहीं किया जाता। बागी गुट के विधायक शिवसेना के 39 से अधिक विधायकों और निर्दलीय विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए राज्यपाल कोश्यारी से विधानसभा में शक्ति परीक्षण की मांग कर सकते हैं। 

शिंदे गुट के विधायकों का कहना है कि उद्धव ठाकरे अनुपलब्ध रहते हैं। वे केवल कुछ सलाहकारों पर निर्भर हैं। पार्टी नेतृत्व पूर्णकालिक राजनेता नहीं है और उनके पुत्र मोह के चलते विधायकों का मोह भंग हो गया है। इसके अलावा उद्धव ने ग्रामीण और मौफुसिल क्षेत्रों की उपेक्षा की है और मातोश्री केवल मुंबई और बृहन्न मुंबई नगरपालिका तक सीमित रह गई है। साथ ही पार्टी ने हिन्दुत्व की विधारधारा को त्याग दिया है और विरोधी राकांपा और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया है। 

बागी विधायक महाविकास अघाड़ी सरकार को हटाने और पूर्ववर्ती भाजपा-शिवसेना गठबंधन पुनर्जीवित करने से कम के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि वे सेना के चमत्कारिक संस्थापक ठाकरे के उत्तराधिकारी हैं, न कि उनके पुत्र के। किंतु शिवसेना के नेता इसे नकार देते हैं, क्योंकि उद्धव का अभी भी पार्टी के तंत्र पर नियंत्रण है। उनका कहना है कि 12 नेताओं में से किसी ने भी शिंदे का समर्थन नहीं किया। 32 उपनेताओं में से केवल 4, पांच सचिवों में से केवल 1 और 33 संपर्क प्रमुखों तथा 101 जिला प्रमुखों में से केवल कुछ लोगों ने शिंदे का समर्थन किया है। इसके अलावा आम शिव सैनिक आज भी ठाकरे परिवार के प्रति निष्ठावान है। 

ठाकरे आज दुविधा में फंसे हुए हैं। उन्हें सेना को बचाए रखना है और साथ ही अपने गुट को असली शिवसेना के रूप में स्थापित करना है और अपनी पार्टी को बचाने के लिए वे महाविकास अघाड़ी की बलि दे सकते हैं। किंतु लगता है शिवसेना में विभाजन अपरिहार्य है। इस स्थिति में शिंदे गुट या तो भाजपा में शामिल हो सकता है या असली शिवसेना होने का दावा कर भाजपा के साथ गठबंधन कर सकता है। 

2019 में शिवसेना से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा अवसर की तलाश में थी और वह वर्तमान स्थिति में प्रतीक्षा करो और देखो का दृष्टिकोण अपना रही है क्योंकि बागी विधायकों को असम में सुरक्षित ठिकानों में रखने और इस मामले में जांच एजैंसियों की सहायता लेने से उसको कोई नुक्सान नहीं होने वाला। राकांपा के 2 वरिष्ठ मंत्री पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं। इस राजनीतिक नाटक में अगला कदम क्या होगा? नि:संदेह दल-बदल राजनीति का अंग है।

तथापि खंडित जनादेश गद्दी और गद्दारी के लिए राजनीति करने का लाइसैंस नहीं देता और यह खेल रुक नहीं रहा। समय आ गया है कि हम उच्च संवैधानिक पदों के लिए स्पष्ट और सम्मानजनक परिपाटियां स्थापित करें, जिसके लिए तटस्थता, ईमानदारी और संवैधानिक मूल्यों का पालन करना आवश्यक है क्योंकि व्यक्ति नहीं अपितु संस्थाएं महत्वपूर्ण हैं। हमारे लोकतंत्र को पुन: पटरी पर लाना आवश्यक है।-पूनम आई. कौशिश 

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