पराली जलाने से वातावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव

Edited By Pardeep,Updated: 17 Oct, 2018 04:48 AM

side effect on the pollen burning environment

कृति के कानून अटल हैं। यदि हम प्रकृति के नियमों की उल्लंघना करते हैं तो वह इतनी बलवान है कि  उसकी सजा भी वह खुद ही तय करती है। बाढ़, भूकम्प तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं का आना प्रकृति के कहर के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। विश्व में हम जो कुछ भी देखते हैं वह...

प्रकृति के कानून अटल हैं। यदि हम प्रकृति के नियमों की उल्लंघना करते हैं तो वह इतनी बलवान है कि  उसकी सजा भी वह खुद ही तय करती है। बाढ़, भूकम्प तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं का आना प्रकृति के कहर के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। विश्व में हम जो कुछ भी देखते हैं वह प्रकृति के नियमों से बंधा है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि मनुष्य जाति के अतिरिक्त कोई भी प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं करता और हम यह भी देखते हैं कि जब भी मनुष्य प्रकृति के नियमों की अनदेखी या उसके नियमों में अपनी जरूरत से अधिक दखलंदाजी या नियमों को तोडऩे की हिमाकत करता है तो प्रकृति मनुष्य को अपने हिसाब से उचित सजा जरूर देती है। 

प्रकृति ने जिन अनमोल जड़ी-बूटियों तथा पेड़-पौधों से हमें इस धरती पर नवाजा है उन सब में मनुष्य की भलाई के लिए कोई न कोई गुण छिपा है, यह अलग बात है कि हमें उसका ज्ञान न हो मगर परमात्मा ने कोई भी चीज बेकार पैदा नहीं की। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी सरकार अपने सभी साधनों के माध्यम से किसान भाइयों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित करने हेतु बहुत कोशिशें कर रही है। मगर इस सबके बावजूद लोगों की ओर से पूरा सहयोग न मिलने के कारण सरकार के इरादे धरे रह जाते हैं, जिस कारण जहां सरकार द्वारा किसान भाइयों तथा आम लोगों को जागरूक करने के लिए विज्ञापनों आदि पर खर्च की जाने वाली भारी-भरकम राशि बेकार जाती है, वहीं इन दिनों सड़क दुर्घटनाओं में भी बहुत अधिक वृद्धि देखने को मिलती है। 

पिछले वर्ष की बात है जब धुएं से बने बादलों की चपेट में आए पंजाब सहित देश की राजधानी में भी कई दिनों तक अंधेरा छाया रहा जिस कारण पंजाब के बठिंडा शहर में हुई दुर्घटना में बहुत-सी कीमती जानें चली गई थीं। पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है। धान की बिजाई वाले क्षेत्र की यदि बात करें तो यहां लगभग 75 लाख एकड़ क्षेत्र धान की खेती होती है। धान की फसल प्राप्त करने के उपरांत जब खेतों में बची पराली को आग लगाकर जलाया जाता है तो उससे जो हमारा नुक्सान होता है उसके तथ्य निश्चित तौर पर चिंताजनक हैं। 

एक रिपोर्ट के अनुसार एक एकड़ में 2.5 से लेकर 3 टन तक पराली की पैदावार होती है, जिसे जलाने से लगभग 32 किलो यूरिया, 5.5 किलो डी.ए.पी. तथा 51 किलो पोटाश जलकर राख हो जाती है। इसके साथ ही कृषि के लिए सहायक मित्र कीड़े भी मर जाते हैं, जिससे धरती की उपजाऊ शक्ति में भारी कमी आती है। इससे पूर्व सड़कों के किनारे लगे कितने ही पेड़ पराली को लगी आग की भेंट चढ़ जाते हैं। पहले के समय में छोटी मक्खी का शहद आम मिल जाता था मगर जब से पराली जलाने की रिवायत चली है, उससे शहद की अनगिनत मक्खियां मर चुकी हैं जिसके परिणामस्वरूप आज शुद्ध शहद मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे पक्षी, जैसे कि चिडिय़ां आदि हमारे समाज से अलोप होती जा रही हैं तथा अन्य बहुत सारे पक्षी तथा जीव-जंतुओं की भी मौत हो जाती है। 

दूसरी ओर पराली जलाने से जहरीली गैसें कार्बन मोनोआक्साइड लाल कणों से क्रिया करके खून की आक्सीजन ले जाने की क्षमता घटाती हैं। इसके साथ ही कार्बन डाइआक्साइड आंखों तथा सांस की नली में जलन पैदा करती है। इसके अतिरिक्त सल्फर आक्साइड तथा नाइट्रोजन आक्साइड फेफड़ों, खून, त्वचा तथा श्वसन क्रिया पर सीधा असर करती है, जोकि कैंसर जैसी बीमारियों को निमंत्रण देता है। उक्त जहरीली गैसों के प्रकोप का शिकार सबसे अधिक बच्चे होते हैं, ये गर्भवती महिलाओं पर भी बहुत बुरा प्रभाव डालती है। इसके अतिरिक्त हर तरह का प्रदूषण हमारी पृथ्वी के गिर्द घेरा डाले बैठी ओजोन परत में छेद करता है, जिसका परिणाम यह होता है कि सूरज की जो किरणें ओजोन परत से छन कर हमारी धरती को रोशन करती हैं और हमें विटामिन डी उपलब्ध करवाती हैं, वे सीधी धरती पर पहुंचने लगती हैं जिसका मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी खतरनाक हद तक नुक्सान पहुंचता है। 

एक अनुमान के अनुसार पराली जलाने से हर वर्ष किसानों का लगभग 500 करोड़ रुपए का नुक्सान होता है। इसके अतिरिक्त पराली के धुएं तथा आग के कारण सड़कों पर सफर करने वाले कितने ही मुसाफिर दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पराली जलाने की समस्या के साथ निपटना अकेले राज्य सरकार के बस की बात नहीं बल्कि यह समस्त देश के लिए एक गम्भीर चिंता का विषय है। इसके समाधान के लिए राज्य तथा केन्द्र सरकार दोनों को ही सांझे रूप में मिलजुल कर कार्य करने की जरूरत है और साथ ही दोनों सरकारों को किसानों के सभी हितों को ध्यान में रखते हुए सुचारू तथा उचित समाधान खोजने चाहिएं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस धरती पर हम रहते हैं, इसके पर्यावरण तथा वातावरण की संभाल करना सरकारों का ही काम नहीं है बल्कि इसको दूषित होने से बचाने के लिए हम सभी को भी प्रयास कर अपना योगदान डालने की जरूरत है।-मोहम्मद अब्बास धालीवाल

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