Edited By ,Updated: 20 May, 2023 04:40 AM
हाल के वर्षों में अपने खराब ट्रैक रिकार्ड के बाद, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जीत हासिल करना उल्लेखनीय है। 2018 के बाद हिमाचल प्रदेश को छोड़कर कांग्रेस सभी राज्यों के चुनाव हार गई। एक जीत निश्चित रूप से 2024 में आमने-सामने की स्थिति को...
हाल के वर्षों में अपने खराब ट्रैक रिकार्ड के बाद, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जीत हासिल करना उल्लेखनीय है। 2018 के बाद हिमाचल प्रदेश को छोड़कर कांग्रेस सभी राज्यों के चुनाव हार गई। एक जीत निश्चित रूप से 2024 में आमने-सामने की स्थिति को बदलने के लिए पर्याप्त नहीं है लेकिन यह विपक्ष के लिए अपनी किस्मत बदलने की कुछ उम्मीद की जा सकती है, बशर्ते वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ अपने पत्ते अच्छी तरह से खोले।
जिस बात की सराहना की जानी चाहिए वह यह है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दोहरे इंजन वाली सरकार के लिए भाजपा के व्यस्त चुनावी अभियान का नेतृत्व करने के बावजूद कांग्रेस ने कर्नाटक में बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने बजरंग दल का आह्वान कर ध्रुवीकरण का खेल भी खेला। यह चाल कर्नाटक में नहीं चल पाई। नि:संदेह भाजपा के लिए एक झटका था जिसने कर्नाटक को भारत के दक्षिणी प्रवेश द्वार के रूप में देखना शुरू कर दिया था।
यह स्मरण करने की जरूरत है कि 1990 के दशक में कर्नाटक में भाजपा का उदय असाधारण परिस्थितियों में हुआ था। इस बार पी.एम. मोदी के उत्साही चुनावी अभियान के बावजूद भाजपा ने राज्य भर में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। इसका कारण लोगों की मूलभुत समस्याओं की उपेक्षा थी जो उन्हें हर स्तर पर परेशान करती हैं। भाजपा सरकार ने मार्च में चुनाव से पहले दावा किया था कि कर्नाटक में ‘न्यूनतम बेरोजगारी’ है। मुख्यमंत्री बसव राज बोम्मई ने तब दावा किया था कि कर्नाटक में न्यूनतम बेरोजगारी है और पिछले 5 वर्षों में 33 लाख नौकरियों के सृजन के पीछे केंद्र सरकार है जिस दौरान अकेले पिछले वर्ष में 13 लाख नौकरियों का सृजन हुआ।
यह बात सच्चाई से बहुत दूर थी। चुनाव के बाद लोकनीति-सी.एस.डी.एस. की सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में मतदाताओं के लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा मतदान मुद्दा था। गरीबी दूसरे स्थान पर थी। अधिकांश मतदाताओं ने मूल्यवृद्धि को एक महत्वपूर्ण मुद्दा माना। वास्तव में मतदाताओं द्वारा आॢथक मुद्दों को प्राथमिक ङ्क्षचता के रूप में देखा गया। यह बेहद अफसोस की बात है कि अधिकांश राजनीतिक दल विकास की कमी और खराब शिक्षा प्रणाली को नजरअंदाज करते हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में मात्र 3 प्रतिशत मतदाताओं ने बेरोजगारी को एक मुद्दा बताया। 27 प्रतिशत मतदाताओं के लिए विकास सबसे बड़ा मुद्दा था। वास्तव में यह कहने की जरूरत है कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को राज्य में बेरोजगारी और गरीबी से निपटने में भाजपा की अक्षमता के लिए उसे आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यह उच्च वायदे करने लेकिन खराब प्रदर्शन करने का सामान्य पैटर्न है।
चुनाव से पहले भ्रष्टाचार और वोट विकल्प के बीच एक स्पष्ट संबंध था। बोम्मई सरकार को भ्रष्टाचार को नए स्तर पर ले जाते देखा गया था। कुल मिलाकर बोम्मई सरकार को जमीन पर नदारद देखा गया। लोगों के जीवन और कल्याण के संवेदनशील क्षेत्रों में नकारात्मक उपस्थिति दर्ज की गई। कोई आश्चर्य नहीं कि जिन मतदाताओं ने बेरोजगारी और गरीबी को केंद्रीय मुद्दा माना उन्होंने कांग्रेस को वोट दिया। 2024 के चुनावी मुकाबले से पहले भाजपा नेतृत्व अपनी चाल को कैसे सही करता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि केवल मोदी के नाम पर बयानबाजी इसे दूर नहीं ले जा सकती। इसे जमीनी स्तर पर लोगों से पर्याप्त रूप से जोड़ा जाना चाहिए। मोदी की गाड़ी पर हिन्दुत्व कार्ड का डिस्पले जमीन पर राज्य सरकार के खराब प्रदर्शन की भरपाई नहीं कर सकता था।
कर्नाटक के फैसले को अहंकार और आत्म संतुष्टता के खिलाफ वोट के रूप में देखा जाना चाहिए। इस आलोक में देखें तो भाजपा को एक बार फिर अपने खाके पर गौर करना होगा। यह समझना चाहिए कि लोग बड़े पैमाने पर जानते हैं कि कौन क्या है और कहां है। भाजपा नेतृत्व इस उम्मीद में प्रयोग करना जारी रखे कि उन्हें सही, कुशलतापूर्वक और ईमानदारी से नेतृत्व करने के लिए जमीनी स्तर पर सही नेता मिल जाए।
भाजपा के नेता शायद एक ऐसे राजा विक्रमादित्य की तलाश कर रहे हैं जिसने शासन किया हो और न्यायपूर्ण व्यवहार किया हो। इस खोज के लिए उच्च स्तर के विवेक की जरूरत होगी लेकिन दुर्भाग्य से नेताओं ने आज अपनी अंतर्रात्मा को या तो गिरवी रख दिया या व्यक्तिगत गौरव और धन के व्यापार की चूहा दौड़ में मार दिया है। हमारे जैसी लोकतांत्रिक राजनीति के लिए यह लगभग विनाशकारी है क्योंकि सम्पूर्ण सामाजिक-आॢथक संरचना को मौलिक रूप से पुनर्गठित करना होगा और बदलती जरूरतों और परिस्थितियों के अनुसार तेजी से नया रूप देना होगा। जो दांव पर लगा है वह भविष्य के लिए एक विजन है और उस विजन को दूर करने के लिए एक आवश्यकता आधारित कार्यक्रम है।
विचारणीय बिंदू यह है कि हमें एक ऐसा नेता कैसे मिलता है जो बवंडर में सवारी करता है और तूफान को निर्देशित करता है? आखिरकार एक नेता ‘मेड टू ऑर्डर’ आधार पर कारखाने में उत्पादित होने वाले उपभोक्ता उत्पाद की तरह नहीं है। नेता में कुछ आवश्यक गुण अवश्य होने चाहिएं। आज देश को मूल्य आधारित लोकतंत्र और समतावादी विकास के प्रति प्रतिबद्ध, दृढ़, निष्पक्ष, परिपक्व, दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत है।-हरि जयसिंह