Breaking




जमानत के मामलों में तेजी लाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला सराहनीय

Edited By ,Updated: 24 Nov, 2022 04:33 AM

supreme court s decision to speed up bail matters is commendable

जमानत याचिकाओं को प्राथमिकता देने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की एक पूर्ण अदालत की बैठक का निर्णय प्रशंसनीय और देश

जमानत याचिकाओं को प्राथमिकता देने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की एक पूर्ण अदालत की बैठक का निर्णय प्रशंसनीय और देश में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए एक लंबे समय से प्रतीक्षित उपाय है। 

भले ही हम एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में खुद पर गर्व करते हैं, भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे कमजोर तख्तों में से एक, कथित उल्लंघनकत्र्ताओं को लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखने की प्रवृत्ति रही है। अभियोजन की प्रतीक्षा में हजारों विचाराधीन कैदी महीनों और यहां तक कि वर्षों तक जेल में पड़े रहते हैं। बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं जब विचाराधीन कैदी आखिरकार बरी हो जाते हैं लेकिन उन्हें बिना किसी गलती के लंबे समय तक सलाखों के पीछे रहना पड़ता है। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में सलाखों के पीछे बंद लोगों में से 68 प्रतिशत विचाराधीन हैं। यह एक बड़ी संख्या है और एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार लगभग 4,27,000 कैदी विचाराधीन हैं। देश की लगभग सभी जेलें खचाखच भरी हुई हैं और ऐसा दिखाई देता है कि फट रही हैं। 

नए सी.जे.आई. चंद्रचूड़, जो सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के रूप में भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देते रहे हैं, ने घोषणा की कि उन्होंने सप्ताह के प्रत्येक दिन कम से कम जमानत के 10 मामलों की सुनवाई करने का संकल्प लिया है। प्रतिदिन कम से कम 10 तबादला याचिकाओं पर सुनवाई करने का भी निर्णय लिया गया। स्थानांतरण याचिकाएं वे हैं, जिनमें एक या दूसरा पक्ष उस अदालत में बदलाव की मांग करता है जहां सुनवाई हो रही है। ये याचिकाएं आमतौर पर तलाक के मामलों में दायर की जाती हैं और केवल उच्चतम न्यायालय को अदालत में बदलाव की याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार है। 

हालांकि यह जमानत याचिकाओं बारे निर्णय है, जो मानव अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। 2020 में एक जमानत मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि ‘एक दिन के लिए भी आजादी से वंचित करना, एक दिन भी बहुत है।’ हाल ही में एक अन्य सुनवाई के दौरान, उन्होंने कहा था कि, ‘‘गिरफ्तारी का कोई मतलब नहीं है और इसे एक दंडात्मक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह आपराधिक कानून से निकलने वाले सबसे गंभीर संभावित परिणामों में से एक है- व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हानि।’
अतीत में कई न्यायाधीश जमानत को आदर्श और जेल को अपवाद बनाने की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं। फिर भी न्यायिक अधिकारी और अभियोजन एजैंसियां अभियुक्तों को सलाखों के पीछे पहुंचाने में काफी उदार रही हैं। 

कुछ महीने पहले, सुप्रीम कोर्ट की एक बैंच, जिसमें जस्टिस संजय किशन कौल और एम.एम. सुंदरेश शामिल थे, ने कहा था कि भारत को कभी भी ‘पुलिस स्टेट’ नहीं बनना चाहिए, जहां जांच एजैंसियों को औपनिवेशिक युग के अवशेषों की तरह काम करें। पीठ ने सरकार से अनावश्यक गिरफ्तारी से बचने के लिए जमानत देने की सुविधा के लिए एक नया कानून बनाने पर विचार करने को कहा, खासकर ऐसे मामलों में, जहां कथित अपराध के लिए अधिकतम सजा 7 साल तक की जेल थी। 

यह इंगित करते हुए कि देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बाढ़ आ गई है, अदालत ने कहा था कि पुलिस नियमित रूप से गिरफ्तारियां करती है और यहां तक कि न्यायिक अधिकारी भी जमानत याचिकाओं को खारिज करने से पहले अपना दिमाग नहीं लगाते। अदालत ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण टिप्पणी की- कि अदालतें जमानत देने से इंकार करती हैं क्योंकि कई बार न्यायाधीशों को लगता है कि अभियोजन का मामला कमजोर था और अभियुक्त अंतत: बरी हो जाएंगे! इस प्रकार यह आरोपी को विचाराधीन कैदी के रूप में सजा देने का एक तरीका था।

अदालत ने यह भी कहा कि भारत में आपराधिक मामलों में सजा की दर बेहद कम है। ‘हमें ऐसा प्रतीत होता है कि जमानत आवेदनों के नकारात्मक अर्थ में निर्णय करते समय यह कारक अदालत के दिमाग पर भारी पड़ता है।’ 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकत्र्ता स्टैन स्वामी की मौत, जो हिरासत में हुई थी, की जमानत याचिका अदालतों में लंबित थी, कानूनों के दुरुपयोग का एक ऐसा ही उदाहरण है। 

अभी हाल ही में फेक न्यूज का पर्दाफाश करने वाले मोहम्मद जुबैर को जमानत न मिलने पर लंबे समय तक हिरासत में रखने की कड़ी आलोचना हुई थी। उन्हें 4 साल पहले किए गए एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया गया था और वह भी बॉलीवुड फिल्म के दृश्य पर आधारित था। अब निश्चित रूप से उनके खिलाफ योगी के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा 6 सहित कई अन्य मामले दर्ज किए गए। अंतत: जस्टिस चंद्रचूड़ ने उन्हें जमानत दे दी। एक अन्य मामले में उनका अवलोकन है कि देश भर की अदालतों को ‘यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकों की स्वतंत्रता से वंचित होने के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति बनी रहें।’ 

उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई पहल को उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों तक पहुंचना चाहिए। शायद मुख्य न्यायाधीश देश में विचाराधीन कैदियों के ऑडिट का निर्देश दे सकते हैं और जघन्य अपराधों के आरोपी नहीं होने पर जेलों में रखने का औचित्य मांग सकते हैं।-विपिन पब्बी

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!