दोगलेपन की राजनीति ने देश को वर्तमान स्थिति में ला दिया

Edited By ,Updated: 03 Jun, 2023 04:59 AM

the politics of duplicity has brought the country to the present situation

भारत के नए संसद भवन ने अपना विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। वास्तुकार विमल पटेल कहते हैं कि इसका आकार एक त्रिकोण है। उनका कहना है कि यह श्री यंत्र और त्रिदेव में त्रिकोण पर आधारित है। 4 ऊपर की ओर शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं और 5 नीचे की...

भारत के नए संसद भवन ने अपना विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। वास्तुकार विमल पटेल कहते हैं कि इसका आकार एक त्रिकोण है। उनका कहना है कि यह श्री यंत्र और त्रिदेव में त्रिकोण पर आधारित है। 4 ऊपर की ओर शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं और 5 नीचे की ओर शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार भवन शिव शक्ति के सृजन के दिव्य मिलन का प्रतिनिधित्व करता है। भारत का ताज कश्मीर है इसलिए हम हमेशा कश्मीर को शिव और शक्ति की भूमि कहते हैं। इस संदर्भ में हमें भारत के मुकुट के रूप में कश्मीर के महत्व की सराहना करने की जरूरत है। 

भारत का कल निश्चित रूप से इतिहास का हिस्सा है। फ्रांसीसी दार्शनिक वॉल्टेयर का कहना है कि, ‘‘इतिहास  कलाओं का एक समूह है और हम मृतकों के ऊपर खेलते हैं।’’ हालांकि इतिहास भी एक जीवंत माध्यम है जो घटनाओं की निगरानी और सर्वेक्षण करता है और उन्हें भावी पीढ़ी के लिए निष्पक्ष रूप से वर्गीकृत और विश्लेषण करता है। इतिहास से सीख लेने वाले इसे दोहराते नहीं हैं जो लोग इसे अनदेखा करते हैं वे इसे दोहराने की ङ्क्षनदा करते हैं। इतिहास से सही इनपुट जटिल परिस्थितियों में निर्णय लेने में अंतर ला सकता है। यदि आज हम अपने सामने आने वाली महत्वपूर्ण समस्याओं को देखें तो हम महसूस करेंगे कि यह या तो पिछली भूलों का नतीजा है, पक्षपातपूर्ण या प्रेरित निर्णय लेने का परिणाम है या फिर आज से परे देखने की अक्षमता है। मेरा कहना सरल है। हमारी समस्याएं और परेशानियां अतीत में लिए गए गलत फैसलों की उपज हैं। फिर चाहे यह कश्मीर से संबंधित हो या पाकिस्तान से या चीन से। 

मैं अपने विचार सांझा करता हूं कि कैसे और क्यों हम अतीत में गलत फैसलों के लिए एक राष्ट्र के रूप में भारी कीमत चुका रहे हैं। सबसे पहले, हमारे महान आदर्शवादी नेता पं. जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर के भारत में विलय के सवाल पर अपने फैसले में देरी की। इसने पाकिस्तान को कबायली आक्रमण करने की अनुमति दी जिसके परिणामस्वरूप कश्मीर समस्या पैदा हुई। दूसरा, हमलावरों की घाटी को साफ करने की बजाय नेहरू ने भारतीय सैनिकों की रफ्तार पर रोक लगा दी और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जाना पसंद किया। अगर भारतीय सेना को आगे बढऩे से नहीं रोका होता तो पी.ओ.के. (पाक अधिकृत कश्मीर) की समस्या पैदा ही न होती। 

यह इतिहास के अगर-मगर में जाने लायक नहीं है। राष्ट्र को अतीत को निष्पक्ष रूप से देखने और प्रासंगिक निष्कर्ष निकालने की जरूरत है। अतीत की गलतियों को न दोहराने के लिए इतिहास प्रेरणा का स्रोत होने के साथ-साथ चेतावनियों का स्रोत भी है। चीन के साथ भारत की समस्याएं भी हमारे नेताओं की एशियाई दिग्गज के विस्तारवादी आग्रह के ऐतिहासिक ट्रैक रिकार्ड से समझने में असमर्थता का एक दुखद संकेत है। वास्तव में हिंदी-चीनी भाई-भाई, चीन के नारों के बीच 1962 में नेताओं ने अपना असली रंग दिखाया। चीन के विश्वासघात के बाद नेहरू एक बिखरे हुए व्यक्ति दिखाई दिए। इस तरह मैं 1971 में बंगाल की खाड़ी में राष्ट्रपति निकसन के 7वें बेड़े के शक्ति प्रदर्शन के सामने बंगलादेश की मुक्ति में इंदिरा गांधी के साहस और दृढ़ संकल्प की प्रशंसा करता हूं। 

एम.एफ. हुसैन ने तब उन्हें दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित किया। भारत एक जटिल इकाई है। दोगलेपन की प्रतिस्पर्धी राजनीति, दोगली बातों और अलग-अलग पार्टियों द्वारा अलग-अलग उद्देश्यों के लिए अपनाए गए दोहरे मानकों ने देश को वर्तमान स्थिति में ला दिया है। राजनीति आज एक बड़ा तेल से सना हुआ धंधा बन चुका है। इस जैट-सैट व्यवसाय की राजनीति में नैतिक और मानवीय मूल्य छूट पर हैं। 

विचार एक उदास चित्र को चित्रित करने का नहीं है। वास्तविकताओं का सामना किया जाना चाहिए और कल के भारत के लिए परिवर्तन का क्रम होना चाहिए। लोकतांत्रिक भारत को जाति, समुदाय, धर्म और ङ्क्षलग लेबल के किसी भी विचार के बावजूद सभी नागरिकों के लिए अवसर की भूमि के रूप में नए सिरे से पुनर्गठित करना होगा। मेरा मानना है कि प्रबुद्ध नागरिकों के नए भारत को जमीनी स्तर से अपनी ताकत खींचनी है, भ्रष्टाचार मुक्त चेहरा बनाना है, पारदर्शी, जवाबदेह और उत्तरदायी व्यवस्था बनानी है और सर्व-समावेशी, पर्यावरण के अनुकूल विकास के लिए काम करना है। 

भारत आज भी विरोधाभासों और समस्याओं का देश बना हुआ है। पुराना क्रम नि:संदेह बदल रहा है। हालांकि सदियों पुराने सामंतवाद का स्थान नव-सामंतवाद ले रहा है। नए वर्ग ने ‘फूट डालो और राज करो’ की पुरानी नीति की कला को शासन के एक बेहतरीन साधन में बदल दिया है। कल के भारत के संदर्भ में, मैं आरक्षण पर हार्दिक पटेल मामले में अपना निर्णय देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय के एक प्रतिष्ठित पारसी न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला द्वारा की गई टिप्पणियों को याद करना चाहूंगा। उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई मुझसे दो चीजों के नाम पूछे, जिन्होंने इस देश को बर्बाद कर दिया है या सही दिशा में आगे बढऩे नहीं दिया है, तो मेरा जवाब है आरक्षण और भ्रष्टाचार। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ देश के मेधावी दिमाग अभी भी जाति व्यवस्था में जकड़े हुए हैं। जितनी जल्दी वे इस जाति व्यवस्था से बाहर आएंगे देश के लिए उतना ही बेहतर होगा।’’ 

मोदी की भव्य परियोजना पर वापस आते हुए सवाल यह है कि क्या हमें नए संसद भवन की जरूरत थी? क्या यह प्रेरणा लेने या एक आधुनिक भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए है? या यह मोदी की शक्ति और अमरत्व प्राप्त करने की दिशा में सिर्फ एक और खोज है? खैर, वेदों और उपनिषदों की हमारी अमूल्य विरासत सामाजिक और आॢथक विकृतियों और उन लोगों के राजनीतिक पक्षाघात के लिए एक शक्तिशाली मार्क है जो केवल धन और शक्ति के झंकार से चलते हैं।-हरि जयसिंह
    

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