ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को पुनर्जीवित करने का समय

Edited By ,Updated: 21 Jul, 2021 06:14 AM

time to revive industries in rural areas

उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण को 30 वर्ष पूर्व जुलाई 1991 में लागू किया गया था जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में अत्यंत जरूरी लचीलापन तथा गतिशीलता आई। इसने न केवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) को

उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण को 30 वर्ष पूर्व जुलाई 1991 में लागू किया गया था जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में अत्यंत जरूरी लचीलापन तथा गतिशीलता आई। इसने न केवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) को बढ़ावा दिया बल्कि व्यवसाय करने में भी सुधार किया क्योंकि इसके साथ बोझिल लाइसैंस संस्कृति को दूर कर दिया गया। इसका दूसरा पहलू हालांकि यह है कि उदारीकरण ने देश के ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को चोट भी पहुंचाई। 

उदारीकरण से पूर्व उद्योगों, यदि वे ग्रामीण तथा औद्योगिक रूप से वंचित क्षेत्रों में थे, को कई तरह के प्रोत्साहन तथा छूटें दी जाती थीं। इन उपायों को आॢथक सुधारों के मद्देनजर वापस ले लिया गया। परिणामस्वरूप उद्योग ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित हो गए, विशेषकर विकसित औद्योगिक शहरों के आसपास, जिसने गत 30 वर्षों में देश के ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिक विकास पर विपरीत प्रभाव डाला है। 

1970 के दशक में एक समय था जब जे.सी.टी., हॉकिन्स तथा महावीर स्पिनिंग मिल्स जैसे प्रमुख उद्योगों ने होशियारपुर में बहुत निवेश किया, जो पंजाब का एक अत्यंत पिछड़ा क्षेत्र था। इसका कारण केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा विशेष प्रोत्साहन तथा छूटें देना था। बिहार तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां कम आय वर्ग वाले लोग रहते थे, वहां कुटीर उद्योगों का एक व्यापक जाल था, जिनमें से अधिकतर वस्त्र तथा हैंडलूम कार्यों में संलग्र थे। समय के साथ उनमें से अधिकतर बंद हो गए क्योंकि वे बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा में खड़े नहीं रह सके जिन्होंने बड़े जोर-शोर से ग्रामीण बाजारों में प्रवेश किया था। बदले हुए परिदृश्य में औद्योगिक कलस्टर तथा गलियारे विकसित करने के लिए बहुत से प्रोत्साहन तथा छूटें हैं लेकिन किसी ऐसे उद्योगपति के लिए कुछ भी नहीं, जो दूर-दराज के क्षेत्रों में एक इकाई स्थापित करना चाहता है।

नए नियमों का युग : कोविड-19 महामारी ने रोजगार  पैदा करने के लिए हमारी रणनीतियों को नई दिशा देने के लिए मजबूर किया। एक अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत को स्थानीय कुशल तथा अद्र्धकुशल कार्य बल, गरीब किसानों तथा कृषि मजदूरों को समाहित करने के लिए बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में अवसर पैदा करने होंगे। समान रूप से वितरित सूक्ष्म स्तर की इकाईयां, जो सोलोप्रेन्योर तथा सूक्ष्म उद्यम पैदा कर सकती हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में उनका निर्माण तथा समर्थन करना चाहिए। उदाहरण के लिए शहरी मॉल्स में बिक्री के लिए सब्जियों की प्रोसैसिंग तथा पैकेजिंग एक माइक्रो उद्यम हो सकती है। जिसमें संभवत: अधिक पूंजी के निवेश की जरूरत नहीं होगी मगर इससे ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में ब्लाक तथा सब डिवीजन स्तरों पर मजदूरों को प्रोत्साहन मिलेगा। 

निवेश के लिए कम प्रयास : महामारी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने उत्पादन से जुड़ी हुई 1.96 लाख करोड़ रुपए की प्रोत्साहन योजनाएं लागू की हैं। इस बात की संभावना नहीं है कि बड़े अथवा मध्यम उद्योगपति दीर्घकालिक सतत प्रोत्साहनों के बिना  निवेश के लिए ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में कदम रखेंगे। केंद्र सरकार ने 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को 4 कोड्स में संहिताबद्ध किया है लेकिन इनमें से कोई भी नीति ऐसे क्षेत्रों में औद्योगिक निवेश आकॢषत करने के लिए उचित नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिल के करीब आत्मनिर्भर भारत के विचार को ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण के साथ जोड़ा जाना चाहिए जिसके लिए निवेशकों को विशेष प्रोत्साहन जरूर दिए जाने चाहिएं। ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं तथा स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण किए बिना सतत आत्मनिर्भरता हमेशा एक सपना बनी रहेगी। 

कृषि की अपनी सीमाएं : नि:संदेह भारतीय कृषि अधिकांश ग्रामीण जनता की जीवनधारा है लेकिन कृषि की अपनी सीमाएं हैं। स्वतंत्रता के 74 वर्षों के बाद भी हम सब-डिवीजनल तथा ब्लाक स्तरों पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित नहीं कर सके। विशेष प्रोत्साहनों के माध्यम से ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में निवेश आकॢषत करने से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहन मिलेगा तथा छोटे किसानों तथा कृषि मजदूरों की आय बढ़ेगी जो स्थानीय कारखानों में लचीली शि टों में 8 घंटे काम करके आसानी से प्रति माह 12,000 से 15,000 रुपए कमा सकते हैं। इससे कृषि पर पड़ता बोझ भी कम होगा। 

लंबे समय  तक एकतरफा विकास अपशगुन : यदि हम समग्र विकास सुनिश्चित करने में असफल रहते हैं तो हम पर मानव स्रोतों का दोहन करने की अकुशलता के आरोप लगेंगे। आज पंजाब, हरियाणा तथा अन्य राज्यों से बड़ी सं या में युवा कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा मध्य पूर्व जैसे विभिन्न देशों को पलायन कर रहे हैं जहां अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए वे हर तरह के काम करते हैं। अब कृषि उन्हें यहां रोके नहीं रख सकती क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि वे कृषि से होने वाली सीमित आय पर निर्भर नहीं रह  सकते। शहरी क्षेत्रों में उनके लिए कुछ अवसर होते हैं लेकिन वे इतना नहीं कमा पाते कि बचा सकें। 

आगे का रास्ता : विभिन्न स्तरों पर अपनी रणनीतियों पर विचार करने की बहुत जरूरत है, जिसमें जिला स्तर पर व्यवसाय करने की आसानी से लेकर ग्रामीण उद्यमियों को पहचानने, खड़ा तथा सक्षम बनाने के लिए ऋण तथा कानूनी ढांचे का पुनॢनर्माण शामिल है। किसी गांव अथवा कृषि क्षेत्र में एक सूक्ष्म उद्यम को लैंड यूज कन्वर्शन के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। ग्रामीण उद्यम ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरियां पैदा करेंगे तथा उन्हें बैंकों, एन.बी.एफ.सीज तथा नाबार्ड द्वारा मान्यता दिए जाने की जरूरत है। (सोनालीका ग्रुप के वाइस चेयरमैन एंव कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब योजना बोर्ड के वाइस चेयरमैन)-अमृत सागर मित्तल
 

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