पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की जन्म शताब्दी पर ‘श्रद्धांजलि’

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2020 03:58 AM

tribute  on the birth centenary of former prime minister narasimha rao

तेलगांना प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री के. चंद्रशेखर राव ने घोषणा की है कि उनका प्रदेश 28 जून, 2020 से 28 जून 2021 तक पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव जी की जन्म शताब्दी मनाएगा। समाचार पढ़ कर बहुत कुछ याद आ गया। हिमाचल प्रदेश को भी उनकी  याद करनी...

तेलगांना प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री के. चंद्रशेखर राव ने घोषणा की है कि उनका प्रदेश 28 जून, 2020 से 28 जून 2021 तक पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव जी की जन्म शताब्दी मनाएगा। समाचार पढ़ कर बहुत कुछ याद आ गया। हिमाचल प्रदेश को भी उनकी  याद करनी चाहिए और उन्हेें श्रद्धांजलि देनी चाहिए क्योंकि श्री नरसिम्हा राव ने हिमाचल प्रदेश को एक ऐसा उपहार दिया था जिसके कारण आज प्रतिवर्ष हिमाचल प्रदेश को कई सौ करोड़ रुपए की वार्षिक आय हो  रही है। इतना ही नहीं यह उपहार ऐसा है जिसमें यह आय प्रति वर्ष बढ़ती जाएगी। मेरा सौभाग्य है कि हिमाचल को यह उपहार तब मिला था जब मैं प्रदेश का मुख्यमंत्री था। मैं पाठकों को उस समय का वह संस्मरण बता कर भारत के उस महान प्रधानमंत्री को अपनी श्रद्धांजलि देना चाहता हूं। 

नरसिम्हा राव एक विद्वान, विचारशील और उदार मन के नेता थे।  दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद हिमाचल के विकास के लिए नए साधन जुटाने का विचार करने लगा। कुछ नया सोचने और करने की आदत रही है। एक विचार आया कि हिमाचल में पन बिजली पैदा करने की अपार क्षमता है। कुछ योजनाएं लगीं। हिमाचल  की जमीन डूबी। लोगों को उजडऩा पड़ा। बिजली पैदा हुई और उससे देश का विकास हो रहा है। हिमाचल का पानी और हिमाचल की भूमि लोगों को फिर से बसाने की समस्या। परन्तु इन योजनाओं से हिमाचल प्रदेश को कभी कुछ नहीं मिलता। कुछ योग्य अधिकारियों से बात की। 

एक अधिकारी ने बहुत सराहा और उस विषय पर एक महत्वपूर्ण विवरण बना कर मुझे दिया। मंत्रिमंडल में यह निर्णय किया कि हिमाचल प्रदेश को सभी पन बिजली परियोजनाओं में रायल्टी मिलनी चाहिए। इस संबंध में विधानसभा में प्रस्ताव रखा। विपक्ष ने यह कह कर विरोध ही नहीं किया बल्कि उपहास भी किया कि पानी की रायल्टी न कहीं मिलती है और न कभी मिलेगी। मैंने उत्तर दिया था कि हिमाचल का पानी केवल पानी नहीं बिजली पैदा करने के लिए एक कच्चे माल की तरह है। हिमाचल के पानी से बिजली पैदा होती है। हिमाचल की भूमि डूबती है। लोग उजड़ते हैं। देश में विकास होता है परन्तु हिमाचल को बदले में कुछ नहीं मिलता। प्रस्ताव पास करवाने के बाद इस संबंध में हिमाचल की जनता को शिक्षित करने की कोशिश की। हमारी यह बात पूरे प्रदेश को बहुत अच्छी लगी, प्रबल समर्थन मिला। 

केंद्र में बिजली मंत्री कल्पनाथ राय थे। उनसे लम्बी बात की। सारी बात सुनकर कहने लगे जो भारत में कहीं नहीं दिया जाता वह हिमाचल को कैसे दिया जा सकता है। मैंने कहा जिन प्रदेशों में लोहा, चांदी, सोना जैसे अन्य खनिज पदार्थ होते हैं, उन प्रदेशों को उनकी रायल्टी मिलती है। हिमाचल का पानी केवल पानी नहीं बिजली पैदा करने का साधन है। उन्होंने बात सुनी परन्तु साफ इंकार कर दिया। मैं केंद्र के अपने नेताओं से भी मिला। बातचीत का क्रम मैंने जारी रखा। कल्पनाथ राय आयु में मुझसे बहुत बड़े थे। उनसे बार-बार मिला। कुछ मास के बाद हालत यह हो गई है कि अब कभी उनके सामने आता था एकदम मुस्करा कर कहते थे-देखो रायल्टी की बात मत करना। उनके साथ मेरे अच्छे संबंध हो गए थे। मुझे स्नेह करने लगे थे। 

रायल्टी के संबंध में कुछ पत्रकार मित्रों के सहयोग से मीडिया में भी चर्चा करवाई। मुझे प्रसन्नता है कि कुछ अधिकारियों ने इस संबंध में मुझे इतनी सामग्री दी थी कि मेरी तर्कपूर्ण बातचीत के आगे किसी को कोई उत्तर नहीं सूझता था। मुझे विश्वास हो गया कि हमारी मांग बिल्कुल उचित है। उस पर हमें लगातार कोशिश करते रहना चाहिए। मैं भाजपा का मुख्यमंत्री था परन्तु केंद्र की कांग्रेस सरकार के विरुद्ध मैं कभी बड़ी आलोचना नहीं करता था। इस संबंध में एक बार श्री अटल जी की बहुत प्यारी डांट खाई थी। उसके बाद और भी अधिक सावधान रहता था। कुछ समय पहले दिल्ली बोट क्लब पर पाकिस्तान के विरुद्ध भाजपा की बहुत बड़ी रैली थी। मेरा भाषण भी हुआ। 

मैंने अपने भाषण में पाकिस्तान के विरुद्ध बहुत कुछ कहने के बाद अंत में कहा था-पाकिस्तान ने अब सभी सीमाएं लांघ दी हैं अब तो द्रौपदी का चीरहरण भी हो गया है अब महाभारत हो ही जाना चाहिए। मेरे भाषण पर खूब तालियां बजीं। सभा समाप्त होने के बाद मंच से उतरते समय कुछ नेता मुझे भाषण के लिए बधाई देने लगे। तभी श्री अटल जी ने किनारे बुला कर गुस्से से कहा, ‘‘तुम भूल जाते हो कि तुम एक प्रदेश के मुख्यमंत्री हो-इस प्रकार खुले आक्रमण की बात करना अच्छा नहीं लगता।’’ अपनी प्रशंसा सुनने के एकदम बाद श्री अटल जी की डांट से थोड़ा सहम गया परन्तु जाते-जाते श्री अटलजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुस्करा कर बोले-‘‘वैसे तुम्हारा भाषण बहुत अच्छा था।’’ मैं श्री अटल जी के प्यार की डांट को समझ गया। उसका परिणाम यह हुआ कि केंद्र के सभी नेताओं से मेरे बड़े अच्छे संबंध रहे। 

समय बीतता गया। कुछ मास के बाद मैं एक बार फिर कल्पनाथ राय जी को मिलने गया। बड़ी गंभीरता से रायल्टी की बात की। उन्होंने फिर वही कहा। उनके साथ मेरे स्नेह के ऐसे संबंध थे कि मेरे बहुत आग्रह पर कहने लगे। इस संबंध में वे कुछ नहीं कर  सकतेपरन्तु वे मुझे प्रधानमंत्री जी से मिला देंगे। मैं प्रसन्न हुआ। उन्होंने तभी समय लिया और मुझे लेकर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी के पास ले गए। हम ज्यों ही कमरे में गए वे दूसरी ओर से प्रवेश कर रहे थे। मैंने नमस्कार किया और कहा, ‘‘हूं तो मैं भाजपा का मुख्यमंत्री-परन्तु आपसे आज अपने प्रदेश की एक बहुत गंभीर समस्या लेकर आया हूं।’’ सुनते ही प्रधानमंत्री एकदम गुस्से से देखने लगे और कहा, ‘‘ठहरो खड़े रहो-ऐसा दोबारा कभी मत कहना-याद रखो पाॢटयों की सरकारें होती हैं परन्तु सरकार की कोई पार्टी नहीं होती-न तुम्हारी सरकार की कोई पार्टी है न ही मेरी सरकार की कोई पार्टी है।’’ मैं थोड़ा सहम गया था पर आश्वस्त भी हुआ था। 

नरसिम्हा राव जी ने इस एक वाक्य में लोकतंत्र का सबसे बड़ा आदर्श कह दिया था। मैं बैठ गया अपने आपको संभाला और फिर अपनी पूरी बात की। बिल्कुल नई मांग सुन कर उन्हें भी हैरानी हुई। बीच-बीच में मुझसे कुछ सवाल करते रहे। मैंने विस्तार से अपनी बात कही। बड़े धैर्य से उन्होंने बात सुनी। चाय पिलाई और फिर श्री कल्पनाथ राय जी से कहा, ‘‘छोटे प्रदेश की बात समझ कर अनसुना न करना भले ही कभी कहीं पानी की रायल्टी नहीं दी गई हो परन्तु उनकी बातों में दम है। अधिकारियों की समिति बनाओ। पूरा विचार करके मुझे बताओ।’’ 

मैं बहुत प्रसन्न और आश्वस्त होकर वहां से आया। मुझे याद आया कि अटल जी के साथ प्रधानमंत्री जी के निकट के संबंध हैं। एक कार्यक्रम में वे दोनों मंच पर थे। नरसिम्हा राव जी ने अपने भाषण में श्री अटलजी को ‘गुरुदेव’ कह कर पुकारा था और उनकी बहुत प्रशंसा की थी। अटल जी ने भी अपने भाषण में उनके लिए बहुत कुछ कहा था। मैंने समय लिया और कुछ देर के बाद सीधा श्री अटलजी के पास चला गया। उन्हें कहा कि जो उन्हें गुरुदेव कहते हैं उनसे हिमाचल को एक बहुत बड़ा वरदान मिल सकता है। सारी बात बताई-उन्होंने कहा वे अवश्य बात करेंगे। उन्होंने कुछ दिन के बाद उनसे विस्तार से बात की थी। शिमला आकर कुछ योग्य अधिकारियों को कहा और वे दिल्ली गए। केंद्रीय अधिकारियों के साथ बातचीत की और 6 मास के अंदर चम्बा के बैरास्यूल और चमेरा योजना में 12 प्रतिशत मुफ्त बिजली मिलने का समझौता हुआ और कुछ समय के बाद सभी योजनाओं में 12 प्रतिशत बिजली मिलने का समझौता हो गया। 

इस समय कुल 1200 करोड़ प्रतिवर्ष रायल्टी का धन प्राप्त हो रहा है। इसके लिए कोई विभाग, अधिकारी, कर्मचारी नहीं। सरकार की करोड़ों की आय का कम से कम 70 प्रतिशत उसके लिए बने विभाग के वेतन भत्ते आदि पर खर्च होता है। शुद्ध आय केवल 30 प्रतिशत ही होती है। उस दृष्टि से यह 1200 करोड़ 4000 करोड़ के बराबर है। यह आय वैसे ही है जैसे बैंक में एफ.डी. का ब्याज जमा हो जाता है। परन्तु नई योजनाएं लगने से यह आय प्रतिवर्ष बढ़ती जाएगी। इस दृष्टि से उस समय का वह निर्णय हिमाचल के भविष्य के लिए एक वरदान सिद्ध होगा। 

एक और महत्वपूर्ण संस्मरण याद आ रहा है। नरसिम्हा राव ने मुझे और भैरों सिंह शेखावत जी को विशेष रूप से बुलाया, कहने लगे वे हम दोनों से बहुत महत्वपूर्ण बात करना चाहते हैं। मुझे याद है हम दोनों की ओर देख कर बड़ी भावुकता से बोले, ‘‘क्या आप यह समझते हैं कि मैं ङ्क्षहदू नहीं? मैं भी ङ्क्षहदू हूं किसी से कम नहीं। आप सबके साथ राम मंदिर बनाना चाहता हूं परन्तु आपकी पार्टी उस विवाद की जगह पर ही क्यों अड़ी है। उस जगह को छोडि़ए वहां और बहुत बढिय़ा स्थान है। मैं चलूंगा आगे-सब मिलकर भव्य मंदिर बनाते हैं।’’ उनके साथ इस संबंध में लम्बी बात हुई। पता नहीं उन्हें कैसे पता लगा कि हम दोनों भी लगभग उसी विचार के थे। उन्होंने कहा कि भव्य मंदिर बनाने में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहेगी। विवाद की उस जगह को छोड़ देने से पूरे देश में सद्भाव का वातावरण भी बनेगा। हम दोनों ने सहमति जताई। 

उन्होंने आग्रह किया कि हम दोनों बाकी मुख्यमंत्रियों से भी बात करें और फिर अटल जी तथा अडवानी जी को भी कहें। कुछ दिन के  बाद हमने श्री कल्याण सिंह तथा सुंदर लाल पटवा जी से बात की। हम चारों अटलजी के पास गए। वे बहुत प्रसन्न हुए परन्तु मुस्करा कर कहने लगे उन्हें मनाओ जो कहते हैं-कसम राम की खाते हैं। अडवानी जी से बात हुई। उन्हें हमारी बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने थोड़ा बुरा भी मनाया। हम सब अपने-अपने स्तर पर केंद्र के नेताओं से बात करते रहे। उन दिनों राम मंदिर का विषय बहुत ज्वलंत था। 6 दिसम्बर अयोध्या में कार सेवा के बड़े कार्यक्रम की तैयारी हो रही थी। मुझे याद है भैरों सिंह शेखावत जी ने बातचीत में यह भी कहा था कि उस मस्जिद को राजनीतिक रूप से बनाए रखना भी जरूरी है। 

भविष्य की पीढिय़ों को यह याद रहे कि विदेशी आतताइयों ने हमारे मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई थी। उस मस्जिद में 1948 के बाद कभी कोई नमाज नहीं पढ़ी गई थी। उससे थोड़ी दूरी पर भव्य राम मंदिर बनाने के बाद वह एक ढांचा मात्र रह जाएगा। 6 दिसम्बर से पहले राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक शायद बेंगलूर में थी। कल्याण सिंह जी के कहने पर हम मुख्यमंत्री एक दिन पहले पहुंच गए। चारों बैठे-कल्याण सिंह जी ने अपनी चिंता प्रकट की। उन्होंने कहा कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने न्यायालय में मस्जिद की रक्षा करने के लिए शपथ पत्र दिया है। 6 दिसम्बर को हजारों कार सेवक इक_े होंगे।  उनकी बात पर सबको लगा कि 6 दिसम्बर को मस्जिद की रक्षा करना कठिन होगा। 

कल्याण सिंह जी ने कहा कि वे बल का प्रयोग करना नहीं चाहते और उसके बिना मस्जिद को बचाना कठिन है। सबका यह मत बना कि कार्यसमिति में भैरों सिंह शेखावत इस विषय को उठाएं और कोई समाधान निकाला जाए। कार्यसमिति में जय श्री राम का ऐसा जोश भरा वातावरण था कि किसी को बात करने का साहस नहीं हुआ। हम एक-दूसरे को इशारे करते रहे। बैठक समाप्त होने लगी। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उठ कर कहा-उत्तर प्रदेश में हम विपक्ष में नहीं सत्ता में हैं-शपथ पत्र दिया है इतने लोग इकट्ठे होंगे। आगे कुछ नहीं कह सका-डांट पड़ी और बैठ गया। 

अटल जी तथा नरसिम्हा राव जी ने इस संबंध में गहन चर्चा की थी। कुछ और नेताओं से बात भी की थी। हमारी आशंका ठीक निकली, 6 दिसम्बर 1992 को मस्जिद ध्वस्त हो गई। आज भी मेरा यह निश्चित मत है कि 6 दिसम्बरको मस्जिद तोड़ कर हिंदुत्व का भला नहीं हुआ बहुतबड़ा नुक्सान हुआ था। बाद में दंगे हुए। सैंकड़ों लोग मरे। भाजपा की चार सरकारें भंग की गईं और इतिहास में पहली बार हम ङ्क्षहदुओं पर मस्जिद तोडऩे का आरोपलगा। लम्बे 28 वर्ष बीत गए मंदिर अभी नहीं बना। इस संबंध में श्री अटल जी की एक प्रसिद्ध कविता ‘‘हिदूतन मन हिंदू जीवन’’ की ये पंक्तियां याद आ रही हैं :-
होकर  स्वतंत्र मैंने कब चाहा
मैं कर लूं जग को गुलाम
मैंने तो सदा सिखाया है
करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामों पर
कब मैंने अत्याचार किया?
कब दुनिया को हिंदू करने
घर-घर में नरसंहार किया?
कोई बतलाए काबुल में
जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी?
भू-भाग नहीं शत-शत मानव के
हृदय जीतने का निश्चय।
जग के ठुकराए लोगों को
लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ मैं लुटा चुका
फिर भी अक्षय है धनागार
6 दिसम्बर की घटना ने अटलजी को भी गलत सिद्ध कर दिया। 

नरसिम्हा राव जी की जन्म शताब्दी के इस अवसर पर यह दो अति महत्वपूर्ण संस्मरण दो ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी हैं। काश दो प्रसिद्ध महान प्रधानमंत्रियों की सलाह मान ली होती। अयोध्या में भव्य मंदिर बन गया होता। ङ्क्षहदुत्व आरोपित न होता।-शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री)
 

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