हम देश के ‘चौकीदार’ नहीं, इसके ‘भागीदार’ बनें

Edited By ,Updated: 04 Feb, 2020 03:44 AM

we should not be the watchman of the country be its partner

यह देखकर अच्छा लगा कि सरकार ने एक ऐसा बजट प्रस्तुत किया जो आर्थिक वृद्धि को प्रेरित करेगा। मगर यहां पर मुझे बजट का आकलन नहीं करना बल्कि अपना ध्यान भारतीयों को विशिष्ट वृद्धि उन्मुख नीतियों के साथ-साथ अपनी मानसिकता में तबदीली लाने...

यह देखकर अच्छा लगा कि सरकार ने एक ऐसा बजट प्रस्तुत किया जो आर्थिक वृद्धि को प्रेरित करेगा। मगर यहां पर मुझे बजट का आकलन नहीं करना बल्कि अपना ध्यान भारतीयों को विशिष्ट वृद्धि उन्मुख नीतियों के साथ-साथ अपनी मानसिकता में तबदीली लाने पर लगाना है। 

पड़ोसन आंटी और बिल गेट्स
जब मैं छोटा था तब मेरी एक पड़ोसन आंटी ने अपने फ्रिज को लॉक कर दिया जोकि 80 के दशक में एक आम बात थी। यह लॉक इसलिए किया जाता था ताकि आंटी की अनुपस्थिति में नौकरानी फ्रिज से दूध या मक्खन न चुरा ले। इसके पीछे यह धारणा थी कि यदि फ्रिज को लॉक नहीं किया जाएगा तब नौकरानी यकीनी तौर पर दूध या फिर मक्खन चुरा लेगी। इस बात को लेकर आंटी कई बार ङ्क्षचतित रहती थी मगर फ्रिज में लॉक के चलते नौकरानी न तो दूध ले पाती और न ही मक्खन। भरोसे की कमी को लेकर नौकरानी कार्य के प्रति ज्यादा  प्रेरित नहीं दिखाई दी। 

इसके विपरीत मैं एक और उदाहरण देना चाहता हूं। कुछ वर्ष पूर्व मैंने एक कार्यक्रम के दौरान बिल गेट्स से मुलाकात की। मैंने उनसे पूछा कि आप इस बात को कैसे यकीनी बनाना चाहते हैं कि जो आपने करोड़ों रुपए चैरिटी को दिए उसका इस्तेमाल सही ढंग से हो पाया है या फिर इसकी चोरी हो गई है। वह हंस पड़े और कहा कि वह जानते हैं कुछ पैसा उचित ढंग से नहीं खर्चा गया। जैसे-जैसे सारा पैसा सही ढंग से इस्तेमाल हो गया तब वह इस बात को मानने को तैयार हुए कि इसमें से कुछ पैसा गायब या फिर चोरी हो गया। उनकी चैरिटी ने कुछ की जांच की मगर उनका लक्ष्य उन परियोजनाओं को देखने पर था जिसने विश्व को बदला तथा निवेश किए हुए पैसे में वृद्धि हुई। 

दोनों की मानसिकता में फर्क
अब देखना यह है कि आंटी और करोड़ों रुपए देने वाले बिल गेट्स में क्या अंतर है? बिल गेट्स में मानसिकता की भरमार है, वहीं आंटी की सोच जीवन के एक स्तर तक रुकी हुई है। बिल गेट्स तथा उनकी चैरिटी दिन-ब-दिन वृद्धि करेगी तथा व्यापक प्रभाव छोड़ेगी। यहां दिक्कत यह है कि ज्यादातर भारतीयों के पास मानसिकता का अभाव है या फिर यूं कहें कि उनकी संकीर्ण मानसिकता है। जब कभी संसाधनों की कमी रहती है तब एक विशाल अभाव वाली मानसिकता लोगों में विकसित होती है। हम फ्रिज को लॉक कर विकसित हुए हैं मगर हमारे लिए यह खोजना अभी भी मुश्किल है कि इस अभाव वाली मानसिकता को कैसे छोड़ा जाए। 

कम सोच वाली मानसिकता की हम हाल ही में आप्रवासियों पर हुए हमले के साथ व्याख्या कर सकते हैं। हम यह मान कर चलते हैं कि यह अतिक्रमण वाली दीमक है जिसने भारत में संसाधनों को सूखा कर दिया है। हम यह सोचते हैं कि उपहारों से भरा एक घड़ा है जिसे अवैध आप्रवासी चुरा रहे हैं। हम यह क्यों नहीं सोचते कि क्यों न हम ऐसे घड़े और बनाएं। भारत में प्रतिस्पर्धा वाली परीक्षा से लेकर नौकरी प्राप्त करने तक किसी एक को जीतने के लिए कुछ खोना पड़ता है। 

मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नाराजगी एक अभाव वाली मानसिकता के चलते उत्पन्न हुई
यहां तक कि हिंदुओं के एक वर्ग में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नाराजगी एक अभाव वाली मानसिकता के चलते उत्पन्न हुई है। हम कहते हैं कि जब उनके लिए पाकिस्तान है तो वह यहां क्यों हैं? यह ऐसा तर्क है जो यह सुझाता है कि संसाधन सीमित हैं और वे लोग इसको खत्म कर रहे हैं। मगर इससे पहले मुस्लिम तुष्टीकरण था। समय है कि चीजों को हम सही ढंग से स्थापित करें। वहीं पर कुछ ऐसे विचार भी हैं जो यह दर्शाते हैं कि मुसलमानों को पहले ही कुछ दे दिया गया है। अब उनसे वापस ले लिया जाए ताकि हमारे पास यह ज्यादा मात्रा में आ जाए। मानसिकता की कमी यह कहती है कि चीजों को वापस छीन लिया जाए क्योंकि नई चीजों को उत्पन्न नहीं किया जा सकता। 

कर चोरों और बेशर्म व्यापारियों की चौकीदारी क्यों न की जाए
क्या यह अच्छा नहीं होगा कि बुरे कर चोरों तथा बेशर्म व्यापारियों की चौकीदारी की जाए? हमें अवैध आप्रवासियों को यहां से क्यों नहीं हटाना चाहिए? या फिर ऐतिहासिक तौर पर ङ्क्षहदुओं के संग हुई ज्यादतियों के लिए मुसलमानों को क्यों जिम्मेदार ठहराया जाए? 

मैं उक्त बयानों की निहित कट्टरता में नहीं जाना चाहता। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि चाहे एक व्यक्ति या फिर देश हो, उसे आगे बढऩे के लिए उसके पास बहुतायत मानसिकता होनी चाहिए। व्यापार धन का सृजन करता है। आप्रवासी अवैध तरीके से प्रवेश करता है। वह जी.डी.पी. में अपना योगदान देता है और अपनी अहमियत भी रखता है। मुसलमान संतुष्ट थे। वे प्रतिभावान हैं तथा भारत की वृद्धि की कहानी लिखने में बड़ा योगदान रखते हैं। पहला बयान अभाव वाली मानसिकता से आता है और दूसरा बहुतायत वाली मानसिकता से आता है। पहली मानसिकता हमें धीमा कर देती है और आपस में लड़ाती है वहीं दूसरी मानसिकता भारत को आगे बढ़ाती है। 

आंटी को इस बात की चौकीदारी नहीं करनी चाहिए कि क्या चुराया जा रहा है बल्कि उसे तो अपनी ऊर्जा नौकरानी को दूध और मक्खन देने के लिए लगानी चाहिए और अपने फ्रिज को लॉक नहीं करना चाहिए। उसे अपना ध्यान अपने आराम तथा आध्यात्मिक वृद्धि पर लगाना चाहिए। निरंतर घर की जांच करने की बजाय उसे आनंदित होना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि प्रत्येक के लिए यहां पर बहुत कुछ है। आइए, हम बहुतायत वाली मानसिकता को गले लगाएं। अपने देश को शानदार बनाने के लिए हम कम चौकीदारी करें और ज्यादा भागीदार बनें।-चेतन भगत

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